जलना या पिघलना
जलना या पिघलना
"जीवन की आपाधापी में"
रात की उदासी में
मैंने खुद को देखा
ज़िन्दगी के कुशल
अभिनेता को देखा |
निगाहों की गहराई में डूबा
तो पता लगा
भीतर हर पल
ज्वालामुखी की लपटें लिए
मैं खौल रहा हूँ
या
ठन्डे बर्फ की मानिंद
शांत हूँ बिलकुल
अब फ़र्क़ नही पड़ता
जान गया हूँ मैं
जलना या पिघलना
दोनों का अंत एक ही है
समाप्त होना !
अब तो आँखों में आंसू भी
आकर पूछते हैं
बोलो -
गले में ही सूख जाऊं
या पलकों पर ढलक जाऊँ ?