रहस्य की रात भाग 4
रहस्य की रात भाग 4
चारों इस रहस्योद्घाटन से बुरी तरह सहम गए और गिड़गिड़ाकर बाबा से बचा लेने का अनुरोध करने लगे। तब बाबा जी बोले, "चिंता मत करो बालकों! मेरे होते वह दुष्ट झरझरा तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकती। मैं तुम्हें बचाऊंगा पर तुम्हें भी मेरा एक काम करना होगा जिसमें मानव जाति का भी भला है। मंदिर के गर्भगृह में एक आले पर स्वर्ण मंजूषा में एक स्फटिक पत्थर रखा हुआ है, उसे जाकर ले आओ बस!
फिर मंदिर में जाने की बात सुनकर चारों के प्राण तालू में समा गए तो बाबाजी ने उनकी कलाई पर मंत्राभिसिक्त कलावा बांधते हुए अभय दिया और बोले तुम लोग निर्विघ्न जाओ अब वो तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगी। वह स्फटिक ही उसके जादू की ताकत है, वह मिलते ही वह अशक्त और दीन हो जायेगी और मैं आसानी से उसका वध कर दूंगा। फिर समूचे संसार का कल्याण होगा।
बाबाजी द्वारा पीठ थपथपाने पर उन चारों में असीम बल और साहस का उदय हुआ और वे मंदिर में प्रवेश कर गए, पर उनके अदृश्य होते ही लोमहर्षक घटना हुई। बाबा जी का रूप परिवर्तित होने लगा। उनका सौम्य रूप बदल कर विकराल होने लगा और वे जोर से अट्टहास कर उठे।
इधर आशी अनुज वासू और सावा मंदिर में प्रविष्ट हुए तो उनका हृदय धाड़ धाड़ कर रहा था। यद्यपि बाबा जी द्वारा दिया गया अभय उन्हें थोड़ा संभाले हुए था, पर जादूगरनी झरझरा का आतंक उनपर हावी हो रहा था। इससे पहले जब वे मंदिर में आये थे, तब ऊपर वाले बरामदे में ही बैठे थे, पर अब उन्हें बीस पच्चीस सीढ़ियाँ उतर कर गर्भगृह तक जाना था और वे सीढ़ियाँ काई से आच्छादित थीं। पहला कदम रखते ही सावा का पैर फिसला और वह बेसाख्ता पीठ के बल गिर पड़ा। तीसरी सीढ़ी की कोर उसकी कमर से टकराई तो उसके मुंह से एक दर्द भरी चीत्कार निकली। वो तो उन चारों ने एक दूसरे का हाथ जकड़कर पकड़ रखा था अन्यथा सावा कई सीढ़ियाँ फिसलता हुआ नीचे जा गिरता। वह किसी तरह कराहता हुआ उठा और दीवार का सहारा लेकर हांफने लगा। अब वे सब सावधान होकर कदम-कदम रखते हुए उतरने लगे। सीलन और बदबू गर्भगृह में भरी हुई थी। उन चारों का जी मतलाने लगा, पर ईश्वर का नाम लेकर वे धीरे-धीरे उतरते रहे।
कहानी अभी जारी है!!
क्या हुआ भीतर
क्या वे झरझरा से बच सके?
पढ़िए भाग 5