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Unknown Writer

Children Inspirational

0.5  

Unknown Writer

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परीक्षा

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गाँव की आबादी से दूर सुनसान जगह पर स्थित भगवान शिव के मंदिर में एक पंडित रोज सुबह आकर अपने साथ ताँबे के लोटे में लेकर आए जल से भगवान शिव की मूर्ति को स्नान कराता था और उसके बाद मंत्रोंच्चार करते हुए बेलपत्र, पुष्प, कुमकुम, हल्दी, चावल आदि मूर्ति पर चढ़ाकर विधि-विधान से भगवान का पूजन करता था।

उस मंदिर के आसपास के जंगल में एक ग्वाला गाय-भैस चराने आता था और वह भी रोज भगवान शिव की पूजा करता था, लेकिन उसका पूजन करने का तरीका पंडित के पूजन के तरीके से काफी अलग था। वह पंडित से पहले आकर मंदिर के पास अपनी गाय-भैस इकट्ठा करके पास के तालाब से सूखी लौकी के खोल में जल भरकर लाता था और भगवान की मूर्ति का स्नान कराता था और फिर आसपास मौजूद पेड़-पौधों से बेलपत्र और फल-फूल तोड़कर भगवान को समर्पित कर देता था। इसके बाद दोनों हाथों जोड़कर प्रभु से कुछ देर विनती करके अपनी गाय-भैस की खबर लेने चला जाता था।

भगवान शिव उसकी श्रद्धा और भक्ति के साथ किए जाने वाली प्रतिदिन की इस पूजा से काफी प्रसन्न होते थे, लेकिन उनकी अर्धांगिनी माँ पार्वती उस ग्वाले की पूजा के तरीके से बिलकुल भी खुश नहीं थीं। उन्हें इस बात पर तो बेहद गुस्सा आता था कि वो ग्वाला उनके स्वामी को चढ़ाने वाले फलों को पहले चखकर जूठा करता था और फिर प्रभु को भेंट करता था।

एक दिन उन्होंने अपने मन की बात भगवान शिव से कहने का फैसला किया और बोली- "आप इस मूर्ख ग्वाले का मंदिर में आना-जाना बंद करा दो। एक तो विधि-विधान पूजा नहीं करता, ऊपर आपको जूठे फल भेंट करता हैं। हाँ, उस पंडित का आना-जाना बंद मत करवाना, क्योंकि विधि-विधान से पूरी पवित्रता के साथ आपका पूजन करता हैं।"

"पार्वती, मैं तुम्हारी बात मानकर अपने उस ढोंगी भक्त पंडित का मेरे पास आना-जाना तो जारी रहने दे सकता हूँ पर अपने इस सच्चे भक्त ग्वाले को मेरे पास आने से नहीं रोक पाऊँगा।" माता पार्वती की बात का उत्तर देते हुए भगवान शिव ने कहा।

"आप केवल नाम के भोलेनाथ नहीं हैं, अपितु आप मन से भी पूरे भोलेनाथ हैं। आपको किस कोण से वह ग्वाला अपना सच्चा भक्त और वह पंडित ढोंगी भक्त लगता हैं ?"

"भोलेनाथ नाम तो मेरा हैं, पर वास्तव में भोली हो, इसलिए सच्चे को गलत और ढोंगी को सच्चा समझ रही हो। मैं तुम्हें अपने तर्को से दोनों के बीच अंतर को समझाऊँगा तो तुम मेरी बात से सहमत नहीं होंगी, इसलिए मैं तुम्हें कल तुम्हारे सामने हीं दोनों की मुझमें श्रद्धा और भक्ति का परीक्षण करके दिखा दूँगा।"

अगले दिन भगवान शिव ने अपनी दिव्य शक्तियों से ग्वाले के एक पैर में मोच पैदा कर दीं, इसकी वजह से अपनी गाय-भैस को लेकर मंदिर के करीब पहुँचने में ग्वाले को थोड़ा विलम्ब हो गया और तब तक पंडित मंदिर में आ गया। पंडित के डाँटने के डर से ग्वाले ने उसके पूजा करके वापस जाने के बाद अपनी पूजा शुरू करने का फैसला किया और मंदिर से कुछ दूर खड़े रहकर पंडित के मंदिर से बाहर निकलने की प्रतीक्षा करने लगा। कुछ पलों के बाद उसे अचानक मंदिर जोर-जोर से हिलता हुआ नजर आया।

"मंदिर गिर गया तो मेरे भगवान दबकर मर जाएँगे, इसलिए मुझे मंदिर के अंदर जाकर भगवान को बचाना चाहिए।" मन हीं मन ये बात कहता हुआ ग्वाला तत्काल मंदिर की ओर दौड़ पड़ा।

"अबे बेवकूफ, कहाँ जा रहा हैं ?" मंदिर से घबराकर बाहर निकले पंडित ने उसे मंदिर के अंदर जाते देख चिल्लाकर पूछा।

"भगवान को बचाने।" ग्वाले ने बिना रूके जवाब दिया और मंदिर के अंदर जाकर भगवान शिव की मूर्ति पर इस तरह से झुक गया कि मंदिर के किसी भाग के गिरने से मूर्ति को चोट न पहुँचे।

"अरे अक्ल के अंधे, वो भगवान नहीं हैं, पत्थर की मूर्ति हैं, इसलिए उस पर मंदिर गिरने से उसे कुछ नहीं होगा, लेकिन तू अंदर रहा तो जरूर दबकर मर जाएगा। जल्दी से बाहर आ जा।" इस बार ग्वाले ने पंडित की बात का कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन वह अपनी जान की चिंता न कर पूर्ववत मूर्ति के ऊपर झुका रहा। इसके बाद अचानक मंदिर का हिलना-डुलना बंद हो गया।

"मेरे भगवान बच गए।" मंदिर गिरने का खतरा टलता देख ग्वाला खुशी से चिल्लाया।

"शायद भूकंप आया था।" कहते हुए पंडित ने मंदिर के अंदर दुबारा प्रवेश किया और ग्वाले को बाहर भगाकर पूजा करने लग गया।

पंडित के पूजा पूरी करके जाने के बाद ग्वाले ने पूजा की और अपनी गाय-भैस चराने चला गया। इसके बाद भगवान शिव ने मुस्कुराकर माँ पार्वती से पूछा- "अब बताओं कि मेरा कौन-सा भक्त सच्चा और कौन-सा ढोंगी हैं ? मुझे पत्थर की मूर्ति समझने वाला वो पंडित जो अपनी पंडितगिरी का धंधा चलाने के लिए जरूरी होने के कारण मेरी पूजा करने आता हैं या ये ग्वाला जो बिना किसी स्वार्थ के मुझे वास्तविक भगवान समझकर रोज सच्ची श्रद्धा और भक्ति से अपनी सामर्थ्य के अनुसार मेरी पूजा करता हैं और आज मुझ पर संकट आया देखकर अपने प्राणों की चिंता किए बिना मुझे बचाने आ गया ?"

"मैं अपनी भूल के लिए क्षमा चाहती हूँ प्रभु। इस बात को लेकर अब मेरे मन में कोई संशय नहीं रहा कि ये ग्वाला हीं आपका सच्चा भक्त हैं, पर एक बात मेरी समझ में नहीं आयी कि ये फलों को आपको भेंट करने से पहले चखकर जूठे क्यों करता हैं ?" भगवान शिव के प्रश्न का उत्तर देते हुए माता पार्वती ने पूछा।

"प्रिये, वो फल जूठे करने के लिए नहीं चखता, अपितु ये जानने के लिए चखता हैं कि मुझे जो फल वह भेंट कर रहा हैं, कहीं उनमें से कोई खट्टा या कड़वा तो नहीं हैं।"

"तब तो ये आपका ये भक्त सचमुच बहुत हीं श्रद्धावान हैं लेकिन आप क्या अपने इस श्रद्धावान भक्त को जीवन भर गाय-भैस हीं चराने लगाएँगे ?"

"नहीं, मैं इसे धनवान बनाना चाहता हूँ।"

"तो बना दीजिए न।"

"कैसे बनाऊँ प्रिये, स्वयं मेरे पास धन के नाम पर एक चाँदी का सिक्का तक नहीं हैं। ऐसा करता हूँ, ये जिम्मेदारी गणेश को दे देता हूँ। वो जरूर कहीं से कहीं से इस ग्वाले को इतना धन दिला हीं देगा कि ये अपने परिवार के साथ सारी उम्र आराम से अपनी जिंदगी बिता सके। तुम एक काम करों, ध्यान लगाकर गणेश से सम्पर्क करों और उससे कहो कि मैंने उसे याद किया हैं।"

"जी स्वामी।" कहकर माता पार्वती ध्यानमग्न हो गई।

"कहिए पिताश्री, आपने मुझे आज अचानक किसलिए याद किया ?" अपने वाहन मूषकराज के साथ प्रकट होकर गणेश जो ने भगवान शिव के सामने प्रकट होकर प्रश्न किया। गणेश जी के प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान शिव ने उसे अपने परम भक्त ग्वाले के बारे में बताया और उन्हें ग्वाले को इतना धन दिलाने का आदेश दिया, जिससे ग्वाले और उसके परिवार का जीवन आराम से कट सके।

"आप निश्चिंत हो जाइए, मैं ग्वाले को दो दिनों के भीतर कहीं से कहीं से उसके व उसके परिवार के आराम से जीवनयापन करने लायक धन दिला दूँगा।" भगवान शिव को आश्वस्त करने के बाद गणेश जी उन्हें और अपनी माता पार्वती को पार्वती की चरण वंदना करके मूषकराज के साथ अदृश्य हो गए।

कुछ पलों के बाद वे मूषकराज के साथ पास की एक पहाड़ी पर प्रकट हुए और कुछ ध्यानमग्न होकर अपने पिता के आदेश का पालन करने का उपाय सोचने लगे।

कुछ क्षणों के बाद चेहरे पर ऐसे भाव उभरे, जैसे आमतौर पर लोगों के चेहरों पर किसी समस्या का हल मिलने पर उभरते हैं। उन्होंने आँखें खोलकर मूषकराज से कहा- "भाई, जिस ग्वाले रघु को पिताश्री ने धन दिलाने के लिए कहा, उसके पिता बहुत धनवान थे, लेकिन उसके गाँव के दीनानाथ नाम के सेठ ने ग्वाले के पिता को दी गई कर्ज की मामूली-सी रकम न चुका पाने के कारण उसका रहने के मकान को छोड़कर उसकी बाकी की सारी सम्पत्ति हड़प ली थीं। यदि हम ग्वाले को वह सम्पत्ति वापस दिला दे तो ग्वाले ऐसे हीं काफी धनवान बन जाएगा। इसके लिए मेरे दिमाग में एक योजना हैं, जिस पर हम आज रात को क्रियान्वित करेंगे।"

इसके बाद गणेश जी ने मूषकराज को अपनी योजना समझा दीं और योजनानुसार गणेश जी ने मध्य रात्रि के समय सेठ दीनानाथ के दिवंगत पिता का रूप धारण करके दीनानाथ के स्वप्न में प्रवेश किया और उससे कहा- "अरे तू कैसा मूर्ख व्यक्ति हैं, तुझे रघु के पिता को दिए कर्ज की एवज में उसकी दस-बारह लाख की जमीन नहीं, बल्कि उसका रहवासी मकान लेना चाहिए था, क्योंकि उस मकान के नीचे उसके पूर्वजों का बीस-बाईस करोड़ रूपये का खजाना दबा हुआ हैं। खैर, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा हैं। तू एक काम कर, रघु को मुँहमाँगी कीमत देकर उसका मकान खरीद ले और उसकी खुदाई कराकर वो खजाना निकाल लें। मैं जो कह रहा हूँ उसे तू मिथ्या स्वप्न समझने की भूल मत करना, नहीं तो करोड़ों की सम्पत्ति प्राप्त करने का अवसर गँवा बैठेगा। चल, मैं तुझे मूषकराज के रूप में प्रत्यक्ष दर्शन देकर तुझे भरोसा दिला देता हूँ कि मैंने सचमुच तेरे स्वप्न में आकर तुझे ये जानकारी दी। अब उठ और मेरे दर्शन कर।"

गणेश जी की दीनानाथ के पिता के रूप में अपनी बात खत्म करते हीं दीनानाथ हड़बड़ा कर उठा और अपने कमरे का लाइट जलाकर बेचैनी से इधर-उधर देखने लगा।

वह ये देखकर बेहद हैरान हुआ कि कमरे के एक कोने में किसी हष्ट-पुष्ट बछड़े के आकार का एक चूहा खड़ा हैं।

"पिता जी ?" उसने चूहे से सवाल किया, जिसके चूहे ने 'हाँ' की मुद्रा में सिर हिलाकर जवाब दिया और अदृश्य हो गया। इसके बाद दीनानाथ पूरी रात जागकर सुबह होने का बेसब्री से इंतजार करता रहा, ताकि वह जल्दी से रघु के पास जाकर उससे उसका मकान खरीदने का सौदा कर सके।

गणेश जी उसके स्वप्न से निकलने के बाद रघु के स्वप्न में उसके पिता बनकर पहुँचे और उससे कहा- "रघु, कल सुबह तेरे पास सेठ दीनानाथ हमारा मकान खरीदने के लिए आएगा। तू उसे अपना मकान तब तक बेचने के लिए तैयार मत होना, जब तक कि वह इस मकान की कीमत एक करोड़ देने के लिए तैयार न हो।"

अपना संदेश रघु तक पहुँचाने के बाद गणेश जी उसके स्वप्न से भी बाहर निकल गए। इसके बाद रघु भी हैरान-परेशान सा स्वप्न की सत्यता परखने के लिए बाकी की रात सो न सका।

दूसरे दिन सुबह सेठ दीनानाथ ने रघु के घर पहुँचकर उससे उसका मकान पाँच लाख रूपये में खरीदने की इच्छा जाहिर की तो रघु को पूरा विश्वास हो गया कि उसका स्वप्न सच था।

उसने अपने पिता की आज्ञानुसार दीनानाथ से कह दिया कि वह अपना मकान बेचना नहीं चाहता। ये सुनकर दीनानाथ अपनी करोड़ों का खजाना पाने की तमन्ना पर पानी फिरता देख निराश हो गया, लेकिन वह आसानी से इतना बड़ा फायदा अपने हाथ से निकलने देने वालों में से न था। उसने मकान की कीमत पाँच लाख से बढ़ाकर दस लाख कर दीं और रघु से जब उसे पिछले बार जैसा हीं जवाब मिला तो उसने मकान की बीस लाख कर दीं।

दो-ढाई लाख रूपये के जीर्ण-शीर्ण मकान को बीस लाख रूपये में खरीदने की बात सुनकर रघु का मन विचलित होने लगा, लेकिन उसने अपने स्वप्न पर दृढ़ विश्वास रखते हुए अपने मन में उठ रहे विचारों पर काबू करके दीनानाथ को इस बार भी मकान बेचने से मना कर दिया, लेकिन दीनानाथ पर खजाना प्राप्त करने का लालच हावी था, इसलिए उसने पहले मकान की कीमत बीस लाख से बढ़ाकर पचास लाख कर दीं और रघु से नकारात्मक जवाब मिलने के बाद मकान की कीमत सीधे एक करोड़ कर दीं।

"मुझे सौदा मंजूर हैं लेकिन इस शर्त पर कि आपको आज ही मकान की एकमुश्त कीमत देकर रजिस्ट्री करवानी पड़ेगी।" मकान की कीमत एक करोड़ सुनते हीं रघु ने एक शर्त रखकर दीनानाथ का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

"मुझे भी तुम्हारी शर्त मंजूर हैं। तुम ठीक साढ़े दस बजे मकान के कागजात और तुम्हारा एक परिचय का प्रमाण पत्र लेकर तैयार रहना। मैं अपनी कार लेकर आऊँगा और तुम्हें अपने साथ शहर ले जाकर आज ही मकान की रजिस्ट्री करा लूँगा।" कहकर दीनानाथ खुशी-खुशी घर लौट गया।

एक करोड़ रूपये लेकर अपने मकान की रजिस्ट्री दीनानाथ के पक्ष में करने के बाद रघु ने अपने परिवार के साथ वो मकान छोड़ दिया और गाँव में एक नया मकान और बहुत-सी जमीन खरीदकर आराम से रहने लगा। अब उसे अपने परिवार का जीवनयापन करने के लिए दूसरे की गाय-भैस चराने की जरूरत नहीं थीं, लेकिन उसने भगवान शिव के मंदिर में जाकर पूजा-पाठ करना बंद नहीं किया बल्कि अचानक किस्मत के करवट लेकर उसे ढेर सारी सम्पत्ति भेंट कर देने से उसके मन में ईश्वर के प्रति श्रद्धा व विश्वास और अधिक बढ़ गया। दूसरी दीनानाथ को पचास-साठ हजार रूपये खर्च करके पूरे मकान के फर्श की खुदाई करने पर मिट्टी, मुरम और पत्थर के अलावा कुछ नहीं मिला तो उसने इसे अपने पिता की आत्मा की अपने साथ की गई धोखाधड़ी समझकर अगले साल से अपने पिता का श्राद्ध करना बंद करने का फैसला कर लिया।


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