दो कप चाय
दो कप चाय
[ मेरे जीवन का एक अनमोल हिस्सा ]
आज भी याद आता है वह दिन, मेरी शादी पक्की हो गई थी। तीन महीने बाद शादी होनी थी। इन्हीं तीन महीनों में वे मुझसे मिलने के लिए नासिक से तीन बार भुवनेश्वर आए थे। ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर मेरे घर से कुछ घंटे की दूरी पर है। जब पहली बार वे मुझे मिलने के लिए आने वाले थे, तो हम दोनों के मन में बहुत बेचैनी थी। मैं तो सोच रही थी कि किस - किस जगह पर इन्हें घुमाने के लिए लेकर जाऊँ ? यह दिसम्बर की बात है। पहली बार जब वे मुझे मिलने के लिए पहुंचे, तब अजीब - सी घबराहट और खुशी का मिला - जुला भाव था। और मैं यही सोच रही थी कि बात कहाँ से शुरू करूं ? यह सोचते - सोचते मैंने कहा कि चाय पीने चलते हैं।
चाय पीते - पीते हम दोनों कनखियों से एक दूसरे को देख रहे थे। फिर हम दोनों बहुत जगह घूमे लेकिन दो कप चाय में जो मज़ा था, वह और कहीं नहीं मिला। दो दिन रुक कर वे वापिस नासिक चले गए। सगाई और शादी के बीच के तीन महीनों में वे मुझसे तीन बार मिलने के लिए आए थे। जब - जब वे भुवनेश्वर पहुंचते थे, हम दोनों के मुंह से एक साथ एक ही बात निकलती थी कि दो कप चाय हो जाए !
फिर अप्रैल में हमारी शादी हो गई। शादी के इतने साल बीत गए हैं, अब यह अपने काम में इतने व्यस्त रहते हैं कि हमारा साथ में समय व्यतीत कर पाना भी मुश्किल हो जाता है। वे ऑफिस के काम में और मैं अपने घर व बच्चों के काम में फँस के रह गई। कभी - कभी तो यह सोचती हूँ कि काश ! शादी के पहले वाले वे दिन वापिस आ जाएँ !
इतने सालों में अगर कोई एक चीज़ नहीं बदली थी तो वह थी, दो कप चाय जो वे सुबह ऑफिस जाने से पहले और ऑफिस से आने के बाद हमारे साथ पीया करते हैं। वही दस मिनट हम एक दूसरे को आज भी देते हैं जिसमें वे कुछ अपने ऑफिस की बातें और मैं कुछ अपने घर की बातें किया करती हूँ। बातें मज़ाकिया हो तो हँस देते हैं और दुखदायी हो तो एक दूसरे को सांत्वना देते हैं।
यह वही दो कप चाय है जो अभी भी हम दोनों को एक डोर में बाँध कर रखती है। इसी दस मिनट में हम दोनों अपना पूरा दिन जी लेते हैं। जितना भी चाहें, इस दो कप चाय का ऋण कभी भी नहीं चुका पाएंगे।
चलिए कहानी खत्म करती हूँ। इनकी गाड़ी का हॉर्न सुनाई दे रहा है, शायद घर आ गये हैं।
हमारी दो कप चाय का समय हो गया है।
[ आप सबकी मिताली ]