सपना
सपना
दहशत वो हड़बड़ा कर जाग गई, सर्द हवा मे पसीने से लथपथ। रह रह कर बिजली कौंध जाती, मुसलाधार बारिश का पानी छत की मोरियों से बहता, लगता सांसों को बहाकर ले जा रहा है। भीगने से बचने के लिये कहीं ठौर न मिलने के कारण आवारा कुत्तों के रोने की आवाज़, दिल बैठ सा रहा उनका। घड़ी की ओर देखा, रात के दो बज रहे। सपने मे क्या देखा याद नहीं आ रहा। पर बड़ा डरावना था। पास मे सोये पति की तरफ उन्होने देखा। बिल्कुल शान्त, सांसों के ऊपर नीचे होने का कोई चिन्ह, कोई आवाज़ नही, हे भगवान कहीं ये------ आधी रात,खराब मौसम, अकेली मैं, हफ्ता भर ही तो हुआ इन्हे अस्पताल से डिस्चार्ज हुए, बाहर सर्विस वाले बच्चे, कब तक रुकते, दो दिन पहले ही तो सब गये। कौन सा सपना था, पर था अजीब सा, याद भी तो नही आ रहा, और ये कुत्ते चुप क्यो नही होते। उन्हे लगा एक अनजाने भय से उनकी भी धडकनें रुकने लगी है ,वो धीरे धीरे पति की छाती की तरफ अपने कान ले जाते हुए झुकने को हुई कि पति की आँखें खुली। "अरे तुम अब भी जाग रही हो। इतनी चिंता न करो मेरी, ठीक हूँ मैं, सो जाओ आराम से" राहत की सांस ले, मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया। और तकिये को सिरहाने लगा आँखें बंद कर ली।।