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ARUN DHARMAWAT

Drama

2.1  

ARUN DHARMAWAT

Drama

"बांझ"

"बांझ"

3 mins
1.7K


अपने नवजात शिशु को गोद में लिए हंसती मुस्कुराती रुपाली मालकिन के घर आती है । पैर छू कर आशीर्वाद लेते समय उसकी आँखें छलछला जाती है। आज उसकी आँखों मे तिरस्कार और प्रताड़ना के दर्द भरे आँसू नहीं बल्कि खुशी से छलकते सुकून के पल हैं ।

अभी एक - डेढ़ बरस पहले की ही तो बात है। जब रोज़ की तरह चहकती रहने वाली रुपाली एक दिन सूजी आंखों और चोटिल चेहरा लिए चुपचाप आ कर अपने झाड़ू पोंछा बर्तन के काम में लग जाती है। उसकी दशा देख कर घर की मालकिन स्वाति पूछती है ...

"अरे रुपाली क्या हुआ, क्या बात है, आज ये क्या हाल बना रखा है तूने "

इतना सुनते ही रुपाली की रुलाई फूट पड़ी और हिचकियाँ लेते हुए बोली ....

"मेरा मर्द मेरे को छोड़ रहा है दूसरी शादी कर रहा है, अब मैं क्या करूँ कहाँ जाऊँ मायके में भी कोई नहीं। एक बहन है छोटी उसकी भी शादी हो गई वो अपने आदमी के साथ रहती है"

फिर स्वाति सवाल करती है "अरे लेकिन तेरा वो निकम्मा आवारा शराबी लापरवाह मर्द क्यों छोड़ रहा तुझे। सारा दिन तू घर घर जाकर काम करती है और वो तेरी कमाई पे ऐश कर रहा है, तू उसका सारा ख़र्चा उठाती है और उसकी मार भी सहती है फिर क्या दिक्कत है"

रोते हुए रुपाली बताती है ....

"मेरा मर्द बोलता है हमारी शादी को 8 साल हो गया तेरे को बच्चा नहीं हुआ तू बांझ है। तू मेरे को बच्चा नहीं दे सकती इसलिए तेरे को छोड़ कर दूसरा शादी करूँगा"

"अरे अभी तो तेरी उम्र क्या हुई है 25 या 26 साल बस, हो जाएगा बच्चा भी। उससे पूछ तो सही क्या बनाएगा बच्चे को कैसे पालेगा ?"

स्वाति बेहद रहम दिल और संवेदनशील महिला होने के कारण रुपाली की दशा देख कर दुःखी हो जाती है। अपनी परिचित स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क करके रुपाली को दिखाने ले जाती है। जांच में पता चलता है रुपाली माँ बनने में सक्षम है बस एक मामूली से ऑपरेशन की जरूरत है ।

डॉक्टर के समझाने और आश्वस्त करने पर रुपाली ऑपरेशन के लिए तैयार हो जाती है ।

डॉक्टर, स्वाति और रुपाली दोनों को बताती है कि चिकित्सा विज्ञान ने आज इतनी तरक्की कर ली है कि अब दुर्लभ पेचीदा मामलों का भी निवारण करके बांझ कही जाने वाली स्त्रियों को भी मातृत्व सुख मिल सकता है। अफ़सोस की बात लेकिन ये है कि जानकारी के अभाव एवं अज्ञानता के कारण आज भी गांव देहात की स्त्रियां आधुनिक चिकित्सा का समुचित लाभ नहीं उठा पाती इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि चिकित्सा विज्ञान की नई खोजों का सघन प्रचार प्रसार करके असंख्य स्त्रियों को बांझ के कलंक और परित्यक्त होने से बचाया जा सकता है ।

स्वाति की तन्द्रा भंग होती है जब रुपाली कहती है 

"मेमसाहब आपका ये उपकार मैं कभी नहीं भूल सकती आपने मुझे नया जीवन दिया है और स्त्री होने की पहचान दिलवाई है। मेरा मर्द तो मुझे छोड़ने को तैयार था"

स्वाति रुपाली के बच्चे को लिफाफा और कपड़े देते हुए बोलती है ...

"चल चल बहुत हो गया तेरे उपकार का भाषण, अब बच्चे को अच्छे से पाल और काम काज की सोच उसके बिना तेरा गुजारा नहीं हो पायेगा"

स्वाति सोचने लगे जाती है ईश्वर ने नारी का क्या जीवन बनाया है, मातृत्व सुख के बिना उसे अधूरा क्यों माना जाता है ?




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