द्वंद्व युद्ध - 08
द्वंद्व युद्ध - 08
रेजिमेंट के लिए बैरेक्स बनाने का काम रेल्वे लाइन के पीछे, कस्बे की सीमा पर स्थित चरागाह में हाल ही में शुरू हुआ था, और उनके पूरा होने तक रेजिमेन्ट, अपने तमाम कार्यालयों सहित कई प्राइवेट घरों में रखी गई थी।अफ़सरों की मेस एक छोटे से एक मंज़िला घर में थी जिसकी रचना रूसी अक्षर Г के समान थी : लंबी वाले भाग में, जो सड़क के समांतर था, नृत्य के लिए हॉल और ड्राइंगरूम थे, और छोटे वाले हिस्से में, जो गंदे आंगन में अंदर तक जाता था, डाइनिंग हॉल, किचन और बाहर से आने वाले अफसरों के लिए “रूम्स” थे। ये दोनों हिस्से आपस में जुड़े थे एक क्लिष्ट से,संकरे, टेढ़े-मेढ़े, कोहनी के आकार के कॉरीडोर द्वारा: हर मोड़ एक दूसरे से दरवाज़ों द्वारा जोड़ा गया था और इस तरह कई छोटे छोटे कमरे बन गए थे, जो बुफेट, बिलियार्ड रूम, ताश खेलने का रूम, प्रवेश कक्ष और लेडीज़ टॉयलेट का काम देते थे। चूँकि डाइनिंग रूम के अलावा बाक़ी सारे कमरे आम तौर से खाली रहते थे और उन्हें कभी खोला भी नहीं जाता था, इसलिए उनमें नम, खट्टी ठहरी हुई हवा भरी रहती थी, जिसमें फर्नीचर पर चढ़ाई गई पुरानी खोलों की विशिष्ठ बू भी मिल गई थी।
रमाशोव नौ बजे मेस में आया। पाँच-छह कुँआरे अफ़सर आ चुके थे, मगर महिलाएँ अभी तक नहीं आई थीं। उनके बीच काफ़ी पहले से आधुनिक फैशन के ज्ञान के बारे में एक विचित्र स्पर्धा होती आ रही थी, और इस फैशन के अनुसार बॉल में सबसे पहले पहुँचना बड़ी शर्मिन्दगी की बात समझी जाती थी।ऑर्केस्ट्रा वाले काँच वाली बालकनी में, जो केवल एक कई काँचों वाली खिड़की द्वारा हॉल से जुड़ी थी, अपनी अपनी जगह बैठ चुके थे। हॉल में खिड़कियों के बीच वाली दीवार पर तीन पंजों वाले शमादान जल रहे थे, और छत से क्रिस्टल की थरथराती लड़ियों वाला एक झुंबर लटक रहा था। सफ़ेद वाल पेपर जड़ी नंगी दीवारों वाला यह कमरा जिसमें किनारे पर विएन्ना की कुर्सियाँ रखी थीं और लेस वाले परदे लटक रहे थे, प्रखर रोशनी के कारण विशेष रूप से ख़ाली ख़ाली लग रहा था।
बिलियार्ड के कमरे में बटालियन के दो एड्जुटेंट, लेफ्टिनेंट बेग-अगामालव और अलिज़ार, जिसे रेजिमेंट में सब काउंट अलिज़ार कहते थे, बियर की बोतल की शर्त लगाकर पाँच गेंदों से खेल रहे थे। अलिज़ार – लंबा, दुबला पतला, पोमेड़ लगे चिपके हुए बालों वाला –चौड़े, झुर्रियों वाले, घमंडी चेहरे के कारण नौजवान-बूढ़ा लगता था। वह पूरे समय बिलियार्ड से संबंधित फिकरे कस रहा था। बेग-अगामालव हार रहा था और उसे ग़ुस्सा आ रहा था। खिड़की की सिल पर बैठा हुआ स्टाफ-कैप्टेन लेशेन्का उनका खेल देख रहा था। यह क़रीब 45 साल का ग़मगीन आदमी था, जो अपनी झलक से ही माहौल को उदास बना देता था, उसके चहरे और व्यक्तित्व की हर चीज़ आशाहीन दुख लिए नीचे की ओर लटकी हुई थी, शिमला मिर्ची जैसी लंबी, मोटी, लाल और फूली फूली नाक नीचे की ओर लटक रही थी, दो पतले पतले भूरे धागों जैसी मूँछे ठोड़ी तक लटक रही थीं, नाक के ठीक ऊपर से शुरू होती हुई भँवें कनपटियों तक उतर आई थीं, जिससे आँखें रोतली लगती थीं, पुराना कोट भी उसके झुके हुए कंधों और अन्दर धँसी हुई छाती पर लटकता था, जैसे हैंगर पर टँगा हो।लेशेन्का न कुछ पीता था, न ताश खेलता था और न ही सिगरेट पीता था। मगर उसे ताश वाले कमरे में या बिलियार्ड रूम में खिलाड़ियों के पीछे बैठने में एक अजीब तरह का आनंद मिलता था जिसे लोग समझ नहीं पाते थे।डाइनिंग हॉल में जब लोग भयानक रूप से पिया करते तब वहाँ उपस्थित रहना भी उसे अच्छा लगता। एक भी शब्द बोले बिना वह चुपचाप, उदास घंटों तक वहाँ बैठा रहता। रेजिमेंट में सबको इसकी आदत हो गई थी, बल्कि अगर ख़ामोश लेशेन्का मेस में मौजूद न हो तो खेल में और पीने के दौर में रंग नहीं भरता था।
तीनों अफ़सरों से दुआ-सलाम के बाद रमाशोव लेशेन्का की बगल में बैठ गया, जिसने सौजन्यतापूर्वक थोड़ा सरक कर उसे जगह दे दी, फिर गहरी साँस लेकर अपनी उदास और कुत्ते जैसी वफ़ादार आँखों से नौजवान ऑफ़िसर की ओर देखा।
“मारिया विक्तरोव्ना का स्वास्थ्य कैसा है?” रमाशोव ने बेतकल्लुफ़ी से, आवाज़ को जानबूझकर ऊँचा उठाते हुए पूछा जैसा ऊँचा सुनने वाले और कुछ बेवकूफ़ से लोगों से बात करते समय करते हैं और जैसे लेशेन्का से रेजिमेंट के, एनसाइन समेत, सभी लोग करते थे।
“धन्यवाद, प्यारे,” लेशेन्का ने गहरी साँस लेते हुए जवाब दिया। “ बस, उसका मूड..समय ही ऐसा है आजकल।”
“और आप पत्नी के साथ क्यों नहीं हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि मारिया विक्तरोव्ना आज आने वाली ही नहीं हैं?”
“नहीं, नहीं, ऐसा कैसे, आयेगी वो आयेगी, मेरे प्यारे। बात सिर्फ, यह है कि फिटन में जगह ही नहीं थी। उसने रईसा अलेक्सान्द्रव्ना ने साथ किराए की गाड़ी ले ली, और जानते हो, कहती कैसे है मुझसे, ‘कहते हैं कि तुम्हारे जूते गन्दे रहते हैं, तुम हमारी ड्रेस ख़राब कर दोगे।’
“क्रौस बीच में! बस, थोड़ी से जगह है। गेंद को पॉकेट से निकालो, बेग!” अलिज़ार चिल्लाया।
“पहले तुम गोल बनाओ, फिर मैं निकालूंगा,” बेग अगामालव ने गुस्से से कहा।
लेशेन्का ने अपनी भूरी मूँछों के सिरे मुँह में रख लिए और बड़ी तन्मयता से उन्हें चबाने लगा।
“मेरी तुमसे एक रिक्वेस्ट है, प्यारे यूरी अलेक्सैच,” उसने झिझकते हुए मिन्नत की, “आप तो आज डान्स-ऑर्गेनाइज़र हैं न?”
“हाँ।काश उन्हें शैतान उठा लेता।बना दिया।मैं घूमता रहा, घूमता रहा रेजिमेंट एड्जुटेंट के सामने, बीमारी के बारे में रिपोर्ट भी देना चाह रहा था। मगर क्या उससे कुछ कह सकते हो? कहता है, ‘डॉक्टर का सर्टिफिकेट लाओ’।”
“ तो, मैं आपसे अर्ज़ करना चाहता हूँ, प्यारे,” मिन्नत भरी आवाज़ में लेशेन्का ने कहा, “ख़ुदा उसे सलामत रखे, ऐसा कीजिए कि उसे बहुत देर तक न बैठना पड़े। एक दोस्त की तरह आपसे विनती करता हूँ।”
“मारिया विक्तरोव्ना?”
“हाँ, हाँ, प्लीज़।”
“पीली कॉर्नर में – डबल,” बेग अगामालव ने कहा। “जैसा कि मेडिकल शॉप में होता है।”
अपने छोटे कद की वजह से उसे खेलने में असुविधा हो रही थी, इसलिए उसे अपने आप को पेट के बल बिलियार्ड-टेबल पर खींचना पड़ रहा था। तनाव के कारण उसका चेहरा लाल हो रहा था, माथे पर भँवों की ओर आती हुई V के आकार में दो नसें फूल गई थीं।
“क्या बाज़ीगरी है!,” अलिज़ार ने बड़े आत्मविश्वास से उसे चिढ़ाते हुए कहा, “ऐसा तो मैं भी नहीं करता।”
अगामालव का बिलियार्ड का बल्ला चट चट की आवाज़ के साथ गेंद पर फिसल गया, मगर गेंद अपनी जगह से बिल्कुल नहीं हिली।
“हुर्रे!” अलिज़ार ने ख़ुशी से चिल्लाया और बिलियार्ड वाली मेज़ के चारों ओर नाचने लगा। “जब तुम सोते हो - तो क्या खर्राटे लेते हो, मेरे प्यारे?”
अगामालव ने बैट के मोटे सिरे से फर्श पर खटखट किया।
“तुम मेरी नाक के नीचे बकवास मत करो!” उसने अपनी काली काली आँखें निकालते हुए कहा, “मैं खेल छोड़ दूँगा।”
“चीखो मत, प्यारे, ब्लड प्रेशर बढ़ जायेगा, लाल कोने में!”
प्रवेशकक्ष में महिलाओं को कोट आदि उतारने में सहायता करने की ड्यूटी पर तैनात एक सिपाही रमाशोव के पास आया।
“हुज़ूर, महिलाएँ आपको हॉल में बुला रही हैं।”
हॉल में तीन महिलाएँ धीरे धीरे चहल क़दमी कर रही थीं, जो अभी अभी पहुँची थीं, तीनों – अधेड़ उम्र की थीं। उनमें सबसे बड़ी, मेस-प्रमुख की पत्नी, आन्ना इवानव्ना मिगूनवा, रमाशोव से बड़े सख़्त अंदाज़ में शब्दों को चबाते हुए, उन्हें लंबा खींचते हुए और बड़ी अकड़ से सिर हिलाते हुए बोली, “ सेकंड लेफ्टिनेंट रमाशोSSव, कोSई धुSSन बजाने की आज्ञा दीजिए। प्लीSSज़ ।”
“जी,” रमाशोव ने झुककर अभिवादन किया और ऑर्केस्ट्रा की खिड़की की ओर गया, “ज़िस्सेरमन,” रमाशोव ने ऑर्केस्ट्रा प्रमुख से चिल्लाकर कहा, “कोई ख़ूबसूरत चीज़ बजाइए!”
गैलेरी की खुली हुई खिड़की से “लोंग लिव दी त्सार” का पूर्व संगीत गूंज उठा और उसका साथ देती हुई मोमबत्तियों की लौ फ़ड़फ़ड़ाने लगी।
धीरे धीरे महिलाएँ जमा होने लगीं। आरंभ में, साल भर पहले, रमाशोव को बॉल से पहले के ये पल बहुत अच्छे लगते थे, जब, डाइरेक्टर वाला अपना फ़र्ज़ निभाते हुए, वह हॉल में प्रवेश कर रही महिलाओं का स्वागत किया करता था। कैसी रहस्यमय और सम्मोहक प्रतीत होती थीं वे, जब, रोशनी, संगीत और नृत्यों के इंतज़ार से उत्तेजित, वे एक ख़ुशनुमा व्यस्तता से अपने हुड़, बो, कोट आदि से स्वयँ को मुक्त करती थीं। औरतों की हँसी और खनकती बातों के साथ साथ उस संकरे प्रवेशकक्ष में अचानक बर्फ की, पाउडर की और छोटे छोटे दस्तानों की ख़ुशबू भर जाती - अनबूझी, और दिल की गहराई तक परेशान कर देने वाली, सजी-धजी और ख़ूबसूरत महिलाओं की बॉल-पूर्व महक। कितनी चमकीली, प्यार भरी प्रतीत होती थीं उनकी आँखें उन शीशों में जिनके सामने खड़े होकर वे जल्दी जल्दी अपने बाल ठीक करतीं! उनके स्कर्ट्स की सरसराहट कैसी संगीतमय प्रतीत होती थी! उनके छोटे छोटे हाथों को, स्कार्फ़्स को, उनके हाथों के पंखों को छूना कितना प्यारा लगता था!
अब यह सम्मोहन समाप्त हो चुका है, और रमाशोव जानता है कि यह हमेशा के लिए है। थोड़ी सी शर्मिंदगी से ही सही, अब वह समझ गया है कि इस सम्मोहन के लिए काफ़ी हद तक बुरे फ्रांसीसी उपन्यास ज़िम्मेदार हैं, जिनमें यह अवश्य लिखा जाता है कि कैसे गुस्ताफ़ और अर्मान रूसी दूतावास में बॉल के लिए आकर वेस्टिब्यूल से गुज़रते हैं। उसे यह भी मालूम हो चुका है कि रेजिमेंट की महिलाएँ सालों से एक ही ‘शानदार’ ड्रेस पहनती हैं, किन्हीं विशेष शामों के लिए उसे नया बनाने की दयनीय कोशिश करती हैं, और दस्ताने केरोसीन से धोती हैं। विभिन्न प्रकार की कलगियों, स्कार्फों, आर्टिफिशियल पत्थरों, परों, और विभिन्न प्रकार की खूब सारी रिबनों के उनके शौक उसे बड़े हास्यास्पद और कृत्रिम लगते, इस सब में उसे कुछ भद्दी सी, चीथड़ों जैसी, घरेलू कारीगरी दिखाई देती। वे ऑइल कलर्स का और लाली का इस्तेमाल करतीं, मगर बड़े भद्दे और मासूमियत की हद तक फूहड़ तरीक़े से, किसी किसी के चेहरे तो इन प्रसाधनों के कारण दुष्टता लिए नीले हो जाते। मगर रमाशोव को सबसे अप्रिय बात यह लगती थी कि वह, रेजिमेंट के अन्य सभी अफ़सरों के समान, हर बॉल के परदे के पीछे का, हर पोषाक का, कामुकता से कहे गए हर वाक्य का इतिहास जानता था; वह यह भी जानता था कि इस सबके पीछे छिपी है, दयनीय ग़रीबी, कोशिशें, चालाकियाँ, अफ़वाहें, एक दूसरे के प्रति नफ़रत, शराफ़त की कमज़ोर कस्बाई कोशिश, और उबाऊ, घृणित संबंध..
कैप्टेन तल्मान आया अपनी पत्नी के साथ, दोनों खूब ऊँचे, भरे पूरे, पत्नी – नाज़ुक, मोटी, छुई-मुई सी, भूरे बालों वाली, पति – साँवला, डाकुओं जैसा चेहरा, भर्राई हुई आवाज़, लगातार खाँसने वाला। रमाशोव को पहले से ही मालूम था कि अब तल्मान अपना रटा रटाया जुमला कहेगा, और उसने वाक़ई में जिप्सियों जैसी आँखें नचाते हुए अपनी बीन बजाई, “ क्या कार्ड-रूम में बाज़ी शुरू हो गई है, सेकंड लेफ्टिनेंट?”
“अभी नहीं। सभी डाइनिंग रूम में हैं।”
“अभी नहीं? तो, सोनेच्का, मैं वो..डाइनिंग हॉल में जा रहा हूँ ‘इनवालिद’ पर नज़र दौडाऊँगा। आप, रमाशोव , ज़रा ध्यान रखना इसका...वो, कोई काद्रिल वाद्रिल होने वाली है।”
इसके बाद प्रवेश कक्ष में घुसा लिकाचोव परिवार – सुंदर, हँसती हुई, भिनभिनाहट करती हुई जवान लड़कियों का झुंड अपनी माँ के नेतृत्व में, जो छोटी सी, ज़िन्दादिल महिला थी और चालीस साल की उमर में भी बिना थके डांस करती थी और ‘दूसरे तथा तीसरे काद्रिल के बीच मध्यांतर में’ बच्चे पैदा किए जाती, जैसा कि उसके बारे में रेजिमेंट का कड़वी ज़ुबान वाला अर्चाकोव्स्की व्यंग्य से कहता था।
युवतियों ने, हँसते हुए, भिनभिनाते हुए, एक दूसरे से होड़ लगाते हुए रमाशोव पर धावा बोल दिया:
“ आप हमारे यहाँ आए क्यों नहीं?”
“ बुला, बुला, बुला!”
“अस्सा नई, अस्सा नई, अस्सा नई!”
“बुला, बुला!”
“ पेला कादिल मेले साथ कलिए।”
“मैडम.. मैडम..मैडम!” रमाशोव ने अपनी इच्छा के विपरीत एक नम्र पार्टनर का अभिनय करते हुए सभी दिशाओं में झुक झुक कर अभिवादन करते हुए कहा।
इसी समय अकस्मात् उसकी नज़र प्रवेश द्वार की ओर गई और उसने काँच के उस पार रईसा अलेक्सान्द्रव्ना पीटर्सन का मोटे मोटे होठों वाला पतला चेहरा देखा, जिसने अपनी हैट के ऊपर सफ़ेद रूमाल एक डिब्बे की शक्ल में बांध रखा था। रमाशोव फ़ौरन, एक छोटे बच्चे की तरह, वहाँ से ड्राइंग रूम में भाग गया। मगर यह पल चाहे कितना ही छोटा क्यों न हो, और सेकंड लेफ्टिनेंट रमाशोव ने स्वयँ को कितना ही विश्वास दिलाने की कोशिश क्यों न की हो कि रईसा ने उसे देखा नहीं है, - फिर भी उसने एक बेचैनी महसूस की, उसकी प्रेमिका की छोटी छोटी आँखों में उसे कुछ नया और परेशानी भरा दिखाई दिया, एक क्रूर, दुष्टता और आत्मविश्वासपूर्ण धमकी।
वह डाइनिंग हॉल में गया। वहाँ काफ़ी लोग जमा हो चुके थे, लंबी, ऑइलक्लोथ से ढँकी मेज़ पर सारी जगहें भर चुकी थीं। हवा में नीला, तंबाकू का धुँआ तैर रहा था।किचन से जले हुए तेल की गंध आ रही थी।अफ़सरों के दो-तीन गुटों ने खाना-पीना शुरू कर दिया था।एकाध अफ़सर समाचार पत्र पढ़ रहा था।घनी, तीखी आवाज़ों का शोर छुरी-काँटों की खनखनाहट में, बिलियार्ड की गेंदों की ठकठकाहट में और किचन के दरवाज़े की धड़ाम-धड़ाम में शामिल हो गया था। बरामदे से ठंडी हवा आकर पैरों से लिपट रही थी।
रमाशोव ने लेफ्टिनेंट बबेतिन्स्की को ढूंढा और उसके पास गया। बबेतिन्स्की मेज़ के पास खड़ा था, पतलून की जेबों में हाथ डाले, एड़ियों और पंजों पर आगे पीछे डोलते हुए, सिगरेट के धुँए के कारण आँखें मिचमिचाते हुए। रमाशोव ने उसकी आस्तीन को छुआ।
“क्या?” जेब से एक हाथ निकालकर, वैसे ही डोलते हुए वह मुड़ा, अकड़ते हुए अपनी भूरी लंबी मूँछ पर ताव देकर, कोहनी को वैसे ही ऊपर उठाए-उठाए रमाशोव पर आँखें गड़ा दीं। “आ-आ! तो ये आप हैं? बाड़ी खाशी हुई..”
वह हमेशा ऐसे ही टूटे फूटे लहज़े में, शब्दों को चबा चबाकर बात करता था। उसकी राय में वह शाही गार्डों की नकल किया करता था। अपने बारे में उसकी बड़ी ऊँची राय थी, वह स्वयँ को घोड़ों और औरतों का बहुत बड़ा पारखी, एक कुशल डांसर, एक नफ़ीस, सुसंस्कृत व्यक्ति समझता, मगर, सिर्फ चौबीस साल की उम्र के बावजूद उसका यह ख़याल था कि वह दुनिया देख चुका है और निराश व्यक्ति है। इसीलिये वह हमेशा अपने कंधे ऊपर उठाए रहता, फूहड़पन से फ्रांसीसी बोलता, मरियल चाल से चलता, और बातें करते समय थके थके से, बेफिकरे से हाव भाव प्रदर्शित करता।
“प्योत्र फ़देयेविच, मेरे प्यारे, प्लीज़ आज मेरी जगह पर बॉल का संचालन कर दीजिए,” रमाशोव ने उसे मनाया।
“Mais, mon ami!” बबेतिन्स्की ने कंधे और भौंहे उचकाते हुए कहा और आँखों में पागलपन का भाव ले आया। “मगर, मेरे तोस्त,” उसने रूसी में अनुवाद करते हुए कहा, “ किसलिए? वगैरह, वगैरह? आप तो सीधे सीधे मुझे...उसे क्या कहते हैं? आप मुझे हैलान कर रहे हैं!”
“मेरे प्यारे, प्लीज़”
“ठहरो, सबसे पहले, बिना ला-ग ल-पेट के।ये क्या है – डियर, वगैरह, वगैरह?”
“ ओह, रेक्वेस्ट करता हूँ, प्योत्र फदेइच, सिर दर्द कर रहा है, और गला भी वाक़ई में मैं कर नहीं सकता।”
रमाशोव बड़ी देर तक और पूरी शिद्दत से उसे मनाता रहा। आख़िर में उसने थोड़ा सा मक्खन लगाने की भी ठानी।
उसने कहा कि पूरी रेजिमेंट में कोई भी इतनी ख़ूबसूरती से और इतनी तरह से नृत्यों का संचालन नहीं कर सकता, जैसा प्योत्र फदेयेविच करता है।और इसके अलावा इस बारे में एक महिला भी कह रही थी।
“महिला?” बबेतिन्स्की ने अनमना और मायूस चेहरा बनाया। “महिला? मेरे तोस्त, मेरी उमर में” वह कटुता और निराशा से हँस पड़ा। “औरत क्या चीज़ है? हा-हा-हा, एक पहेली! अच्छा, अच्छा, चलो, मैं राज़ी हूँ, मैं राज़ी हूँ।”
और वैसी ही निराशापूर्ण आवाज़ में उसने आगे कहा, “ मेरे प्यारे दोस्त, आपके पास, क्या कहते हैं, तीन रुबल हैं?”
“ “अफ़सोस!” रमाशोव ने गहरी साँस ली।
“और एक रुबल?”
“ अंम्”
“ बुरी बात है, कुछ भी किया नहीं जा सकता। ख़ैर, चलो, तो फिर वोद्का पियेंगे।”
“ओह, मेरे पास क्रेडिट भी नहीं है, प्योत्र फद्देविच।”
“हाँ-? ओह, ग़रीब बेचारा! ठीक है, फिर भी चलते हैं,” बबेतिन्स्की ने उदारता दिखाते हुए कहा। “ मैं आपको दावत देता हूँ।”
इस बीच डाइनिंग हॉल में बड़ी दिलचस्प और गरमा गरम बहस चल रही थी। अफ़सरों के द्वन्द युद्धों के बारे में बात हो रही थी, जिनकी हाल ही में इजाज़त दी गई थी, और लोगों की इस बारे में राय भिन्न भिन्न थी।
बहस में बढ़चढ़कर हिस्सा ले रहा था लेफ्टिनेंट अर्चाकोव्स्की – एक बेहद ख़ुराफ़ाती व्यक्ति, जो ताशों के खेल में बेईमानी करता था।उसके बारे में चुपके चुपके यह कहा जाता था कि रेजिमेंट में आने से पहले, जब वह रिज़र्व्स में था, वह डाक चौकी का चौकीदार था और उस पर मुक़दमा चलाया गया था क्योंकि उसने मुट्ठी के प्रहार से किसी कोचवान को मार डाला था।
“गार्ड्स में, सिरफिरों और मनचलों के लिए, द्वन्द्व युद्ध अच्छी चीज़ है,” अर्चाकोव्स्की ने बदतमीज़ी से कहा, “मगर हमारे यहाँ..चलो, ये तो अच्छा है कि मैं कुँआरा हूँ। मान लो कि मैं वासिल वासीलिच लीप्स्की के साथ मेस में बैठकर पीता हूँ और नशे में धुत होकर उसके कान पर एक जड़ देता हूँ।तो, अब क्या किया जाए? अगर वह द्वन्द्व युद्ध करना नहीं चाहता तो रेजिमेंट से निकाल दिया जाता है, अब पूछिये कि उसके बच्चे खाएँगे क्या? और अगर वह द्वन्द्व के लिए आता है, तो मैं उसके पेट में गोली उतार दूँगा, और उस हालत में भी बच्चों के पास खाने के लिए कुछ नहीं होगा, बेवकूफ़ी है सब।”
“बरख़ुरदार, तुम रुको..थोड़ा ठहरो,” एक हाथ में जाम पकड़े और दूसरे हाथ को हवा में हल्के से हिलाते हुए बूढ़े और नशे में धुत लेफ्टिनेंट कर्नल लेख ने उसे टोका। “वर्दी का सम्मान क्या होता है, जानते हो?बरखुरदार, भाई मेरे, ऐ-सी चीज़ होती है..सम्मान, वो मुझे याद है, हमारे तेम्रूक्स्की रेजिमेंट में एक किस्सा हुआ था सन् अठारह सौ बासठ में।”
“ओह, आपके क़िस्से तो कभी ख़तम ही नहीं होंगे,” अर्चाकोव्स्की ने बेतकल्लुफ़ी से उसकी बात काटते हुए कहा, “कुछ और सुनाइए, त्सार गरोख के बाद क्या हुआ, बताइए।”
“बरख़ुदार, भाई आह, कितने जंगली हो, अभी तुम बच्चे ही हो, और मैं, बरख़ुरदार कह रहा हूँ कि ऐसा किस्सा हुआ था ”
“सिर्फ ख़ून से ही वर्दी पर लगा दाग़ धुल सकता है,” अकड़ते हुए लेफ्टिनेंट बबेतिन्स्की बहस में शामिल हो गया और उसने पंछियों की तरह कंधे ऊपर को उठा लिए।
“बरखुरदार, हमारे यहाँ एनसाइन सोलूखा था।,” लेख अपनी बात कहता रहा।
पहली टुकड़ी का कमांडर, कैप्टेन असाद्ची, स्वल्पाहार विभाग से निकल कर मेज़ की ओर आया।
“मैं सुन रहा था, कि आप द्वन्द्व युद्धों के बारे में बात कर रहे हैं।दिलचस्प लग रहा है सुनना”उसने अपनी गहरी, गरजती हुई आवाज़ में कहा जिसने अन्य सभी आवाज़ों को ढाँक लिया था। “ सलाम बजा लाता हूँ, हुज़ूर लेफ्टिनेंट कर्नल।नमस्ते, महाशयों।”
“आह, मेरे र्होड्स के शेर,” लेख ने प्यार से उसका स्वागत करते हुए कहा। “बरखुरदार, तुम मेरे पास बैठो, ऐसी यादगार चीज़ हो तुम।।।मेरे साथ वोद्का पियोगे?”
“शौक़ से,” नीचे सुर में असाद्ची ने जवाब दिया।
यह अफ़सर हमेशा रमाशोव पर एक अजीब सा, चिड़चिड़ाहटभरा प्रभाव डालता था।उसके दिल में भय और उत्सुकता के मिले जुले भाव जागृत हो जाते थे।कर्नल शूल्गविच की ही भाँति असाद्ची भी न केवल रेजिमेंट में बल्कि पूरी डिवीजन में प्रसिद्ध था अपनी असाधारण, गरजती हुई, ख़ूबसूरत आवाज़ के कारण और अपने विशाल डील डौल और अपरिमित शक्ति के कारण। सेना के नियमों संबंधी बेहतरीन ज्ञान के कारण वह बहुत मशहूर था। सेना के हित में उसे अक्सर एक कम्पनी से दूसरी कम्पनी में भेजा जाता था, और छह महीने के भीतर वह कमज़ोर और बेतरतीब टुकड़ियों को मानो एक विशाल युद्ध-मशीन में बदल देता था, जो अपने कमांडर के सामने भय से थरथर काँपती थी। उसके सामर्थ्य और सम्मोहन को भी उसके साथी समझ नहीं पाते थे, इसलिए भी कि वह न तो कभी लड़ाई झगड़ा करता था और गाली भी कभी कभार ही दिया करता था। रमाशोव को हमेशा उसके ख़ूबसूरत, विचित्र सा फीकापन लिए चेहरे पर, जिसे उसके काले, लगभग गहरे नीले बालों का साया उदास बना देता था, कुछ तनावभरा, संयमित सा और कुछ क्रूर सा नज़र आता था, जो किसी आदमी में नहीं अपितु बड़े भारी, ताक़तवर जंगली जानवर में पाया जाता है। अक्सर, दूर से, चुपचाप उसका निरीक्षण करते हुए रमाशोव सोचता कि न जाने गुस्से में यह आदमी कैसा लगता होगा, और यह सोचते हुए वह ख़ौफ़ से पीला पड़ जाता और अपनी ठंडी पड़ गईं उंगलियों को मलने लगता। और अभी भी वह लगातार देख रहा था कि कैसे यह आत्मविश्वास से भरपूर, ताक़तवर आदमी ख़ामोशी से दीवार के पास उसे पेश की गई कुर्सी पर बैठ रहा था।
असाद्ची ने वोद्का का जाम पिया, मूली का टुकड़ा खाया और उदासीनता से पूछा, “तो, इस सम्माननीय मीटिंग में किस बात पर चर्चा हो रही थी?”
“बरखुरदार, मेरे भाई, मैं इस वक़्त बता रहा हूँ, हमारे यहाँ एक घटना हुई थी, जब मैं तेम्रूक्स्की रेजिमेंट में था।लेफ्टिनेंट वोन ज़ून –उसे सिपाही ‘पद-ज़्वोन’ (घंटी का पेंदा) कहते थे, - तो एक दिन उसने भी एक दिन मेस में।”
मगर उसकी बात लीप्स्की ने काट दी। लीप्स्की चालीस साल का स्टाफ-कैप्टेन था, लाल-लाल, मोटा, जो अपनी उम्र के बावजूद अफ़सरों के समुदाय में जोकर जैसा बर्ताव करता था और न जाने क्यों उसने एक अजीब सा लहज़ा आत्मसात कर लिया था – लाड़-प्यार से बिगड़े हुए मगर सबको प्यारे एक मज़ाहिया बच्चे का अंदाज़।
“मुझे इजाज़त दीजिए, कैप्टेन महाशय, मैं संक्षेप में बताता हूँ।लेफ्टिनेंट अर्चाकोव्स्की कहते हैं कि द्वन्द्व-युद्ध –बकवास है। इसके बाद लेफ्टिनेंट बबेतिन्स्की बहस में शामिल हो गया और उसने खून की मांग की।इसके बाद लेफ्टिनेंट कर्नल महाशय अपनी पुरानी ज़िन्दगी से एक चुटकुला सुनाने लगे, मगर अभी तक वह उसे कह नहीं पाए हैं।फिर कहानी के आरंभ में सेकंड लेफ्टिनेंट मीखिन ने शोरगुल के बीच अपनी राय ज़ाहिर करनी चाही, मगर उनकी कमज़ोर आवाज़ और शर्मीलेपन के कारण उनकी राय किसी ने सुनी नहीं।”
छोटा सा, मरियल से सीने वाला सेकंड लेफ्टिनेंट मीखिन जिसके साँवले और चित्तियों वाले चेहरे से काली, सौम्य आँखें झाँक रही थीं,अचानक लाल पड़ गया और उसकी आँखों में आँसू आ गए।
“ महाशय, मैं तो सिर्फ...मैं, महोदय, शायद गलत हूँ,” उसने हकलाते हुए और अपने सफ़ाचट चेहरे पर परेशानी से हाथ फेरते हुए कहा, “मगर मेरे ख़याल में, याने कि मेरी ऐसी राय है कि..हरेक परिस्थिति का विश्लेषण करना चाहिए। कभी कभी द्वन्द्व युद्ध फायदेमन्द होता है, इसमें कोई शक नहीं, और हममें से हरेक को इससे गुज़रना ही होगा। निस:न्देह मगर, जानते हैं, कभी कभी, ये शायद सबसे बड़ी इज़्ज़त की बात वो होती है, जबकि, वो बिना शर्त माफ़ कर दिया जाए, मगर, मैं नहीं जानता कि और क्या हालात हो सकते हैं, ये।”
“ ऐह, तुम, सड़ियल इवानविच,” अर्चाकोव्स्की ने बदतमीज़ी से उसकी ओर देख कर हाथ हिलाया, “चीथड़ा चूसना चाहिए तुम्हें।”
“बरखुरदार, भाइयों, मुझे अपनी बात कहने दीजिए!”
अचानक सबकी आवाज़ों को डुबोते हुए असाद्ची ने अपनी भारी भरकम आवाज़ में कहना शुरू किया।
“द्वन्द्व युद्ध का परिणाम भयानक होना चाहिए, वर्ना वह सिर्फ मज़ाक बन कर रह जाएगा! वर्ना तो यह मूर्खतापूर्ण सहानुभूति, जान बख़्शी, मेहेरबानी, कॉमेड़ी हो जाएगा। पचास क़दमों की दूरी और सिर्फ एक बार गोली चलाना। मैं कहता हूँ इससे सिर्फ कमीनापन ही ज़ाहिर होता है, उन फ्रांसीसी द्वन्द्व युद्धों की तरह जिनके बारे में हमसौभाग्य से द्वन्द्व युद्ध सही सलामत पूरा हो गया। विरोधियों ने एक दूसरे पर गोलियाँ चलाईं, बगैर किसी को नुक्सान पहुँचाए, इस दौरान उन्होंने शौर्य का प्रदर्शन किया।नाश्ते की मेज़ पर दोनों दुश्मनों ने एक दूसरे से हाथ मिलाए ऐसा द्वन्द्व युद्ध, महाशयों, बकवास है।और वह हमारे समाज में किसी भी तरह की बेहतरी नहीं ला सकता।”
एकदम कई आवाज़ों ने उसे जवाब दिया। लेख ने, जो इस दौरान कई बार अपना किस्सा पूरा करने की कोशिश कर चुका था, फिर शुरुआत की, “तो, बरखुरदार, मैं, मेरे भाइयों, सुनिए तो सही, मेरे पट्ठों।” मगर किसी ने उसकी बात नहीं सुनी और वह लगातार एक अफ़सर से दूसरे अफ़सर पर आँखें नचाता रहा, एक सहानुभूतिपूर्ण नज़र को ढूँढने की कोशिश में।बहस में दिलचस्पी लेते हुए सभी रूखेपन से उससे मुँह मोड़ रहे थे और वह अफ़सोस के साथ अपना भारी सिर हिला रहा था।उसकी नज़रों ने रमाशोव की आँखों को पकड़ लिया। अपने अनुभव से नौजवान अफ़सर जानता था कि ऐसे पल बर्दाश्त करना कितना मुश्किल होता है, जब अल्फाज़, जिन्हें कई बार दुहराया जा चुका होता है, बिना किसी आधार के हवा में लटक जाते हैं और जब ज़िद्दीपन और निराशा से कोई चुभता हुआ अपमान उन तक बार बार लौटने को मजबूर करता है।इसीलिए तो उसने कर्नल से मुँह नहीं मोड़ा, और कर्नल ने ख़ुश होकर उसकी आस्तीन पकड़ कर उसे अपनी मेज़ की ओर खींच लिया।
“बरखुरदार, एनसाइन, कम से कम तुम तो मेरी बात सुनो,” लेख ने दुख से कहा, “बैठो, वोदका पियो...वे, मेरे भाई, सारे के सारे – गधे और बेवकूफ़ हैं।” लेख ने बहस कर रहे अफ़सरों की ओर देख कर मरियलपन से हाथ झटका। “ काव, काव, काव, और अनुभव तो उनके पास है ही नहीं।मैं बताना चाह रहा था कि हमारे यहाँ क्या क़िस्सा हुआ था।”
एक हाथ में जाम पकड़े, दूसरे को इस तरह से हिलाते हुए मानो वह किसी समूह गान का संचालन कर रहा हो, और झुके हुए सिर को हिलाते हुए लेख ने अपनी अनगिनत कहानियों में से एक शुरू की, जो उसके भीतर इतनी ठूँस ठूँस कर भरी थीं जैसे सॉसेज में लिवर, और जिन्हें वह अनगिनत विचलनों, उदाहरणों, उपमाओं और पहेलियों के कारण कभी भी पूरा नहीं कर पाता था।इस समय का उसका चुटकुला यह था कि एक अफ़सर ने दूसरे से एक पेशकश की – यह बहुत बहुत पहले की बात है – अमरीकी द्वन्द्व युद्ध की, मगर सिक्के के स्थान पर उन्होंने एक रुबल का नोट उछालने की ठानी, ‘हेड’ और ‘टेल’ के स्थान पर नोट पर छपे नंबर के सम अथवा विषम होने की। और उनमें से एक ने, - यह समझना मुश्किल है कि किसने,- पोद-ज़्वोन ने या सोलूखा ने, बदमाशी की :“बरखुरदार, मेरे भाई, दो नोट लेकर एक दूसरे से चिपका दिए, जिसका नतीजा यह हुआ कि नोट पर एक तरफ़ सम नंबर दिखाई दिया और दूसरी ओर विषम।वे, मेरे भाई, बहस करने लगे, इस घटना से यह ज़ाहिर होता है कि।”
मगर इस बार भी लेफ्टिनेंट कर्नल, हमेशा की तरह, अपना क़िस्सा पूरा नहीं कर पाया, क्योंकि स्वल्पाहार विभाग में रईसा अलेक्सान्द्रव्ना पीटर्सन मानो तैरती हुई आई। डाइनिंग हॉल के दरवाज़े पर खड़ी होकर, उसमें प्रवेश किए बगैर (जिसकी अक्सर इजाज़त नहीं होती थी) , वह प्रसन्न और शरारतभरी आवाज़ में चिल्लाई, जैसा कि लाड़ प्यार में पली हुई, सबको अच्छी न लगने वाली लड़कियाँ चिल्लाती हैं:
“महाशयों, ये क्या बात हुई! महिलाएँ कब से आ चुकी हैं, और आप लोग यहाँ बैठे बैठे खा-पी रहे हैं! हम नृत्य करना चाहते हैं!”
दो तीन नौजवान अफ़सर हॉल में जाने के लिए उठ खड़े हुए, बाकी के बैठे रहे और कामुक महिला की ओर ध्यान दिए बिना सिगरेट पीते हुए बातचीत करते रहे; मगर लेख छोटे छोटे टेढ़े मेढ़े डग भरते हुए उसके निकट गया, हाथों को मोड़े और अपने आप पर जाम से वोद्का छलकाते हुए, नशीले प्यार से चहका, “ स्वर्गीय अप्सरा! और ये प्रशासक ऐसी सुंदरता को रहने की इजाज़त कैसे देते हैं! हाथ दो! चूमना है!।”
” यूरी अलेक्सेयेविच,” पीटर्सन चहकती रही, “आज तो आप संचालन करने वाले हैं न? कहने की ज़रूरत ही नहीं, अच्छे संचालक हैं आप!”
“माफ़ी चाहता हूँ, मैडम। हज़ार बार माफ़ी चाहता हूँ! क़ुसूरवार हूँ!” उसकी ओर लपकते हुए बबेतिन्स्की चहका। रास्ते में वह जल्दी जल्दी पैर घसीटता रहा, नीचे बैठता रहा, शरीर को संतुलित करता रहा, और नीचे गिरे हाथों को इस तरह नचाता रहा, मानो किसी ख़ुशनुमा नृत्य का टुकड़ा पेश कर रहा हो। “ हाथ दीजिए, प्लीज़, मैडम।महोदय, हॉल में चलिये, हॉल में!”
वह पीटर्सन का हाथ पकड़ कर चल पड़ा, गर्व से सिर ऊपर को उठाए और फ़ौरन दूसरे कमरे से उसकी आवाज़ सुनाई दी – एक नृत्य-संयोजक की आवाज़, “ महाशय, प्लीज़, महिलाओं को वाल्ट्ज़ के लिए निमंत्रित करें! ऑर्केस्ट्रा, वाल्ट्ज़!”
“माफ़ कीजिए, कर्नल महोदय, मेरा काम मुझे बुला रहा है,” रमाशोव ने कहा।
”ओह, मेरे भाई,” लेख ने निराशा से सिर झुका लिया। “ तुम भी वैसे ही तीखे हो, जैसे वे सब हैं, बरखुरदार, थोड़ा ठहरो, रुको, लेफ्टिनेंट, तुमने मोल्त्का के बारे में सुना है? ख़ामोश तबियत, फ़ील्डमार्शल, युद्ध नीति विशेषज “तुम गड़बड़ मत करो...ये क़िस्सा छोटा सा ही है...तो, महान मौनधारक मेस में जाया करता था, और खाना खाते समय, बरखुरदार...मेज़ पर, अपने सामने सोने की मोहरों से भरा हुआ बटुआ रखता था। अपने मन में उसने यह निश्चय कर लिया था कि यह बटुआ वह उस अफ़सर को देगा जिसके मुँह से मेस में कम से कम एक काम का शब्द सुन लेगा। मगर बूढ़ा वैसे ही मर गया, नब्बे साल की उम्र में, और उसका बटुआ, मेरे भाई, वैसे का वैसा ही रहा।क्या? समझ में आया? तो, अब जाओ, भाई, जाओ, जाओ, मेरी चिड़िया...फुदकते हुए जाओ"