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Kavi Vijay Kumar Vidrohi

Others

4.2  

Kavi Vijay Kumar Vidrohi

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परिवर्तन

परिवर्तन

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कैसा परिवर्तन युग आया ? काव्यलोक में भरम समाया। 
“हल्दीघाटी” सुबक उठा है, मौन खड़ा “साकेत” लजाया। 
दिनकर के साये में पलकर, जिनने कलम चलाना सीखा। 
हिंदी को माँ कहते रहते , पर ना धरम निभाना सीखा ।

भाषा को जीवन अर्पित कर, नाम अनेकों लेख कर दिये। 
फिर ये कैसी आवश्यकता जो , हिंदी-इंग्लिश एक कर दिये ? 
क्या हिंदी के शब्दकोश में , इन्हें कमी दिखलाई दी ? 
क्या हिंदी के गिरते स्वर की, आह इन्हें ना सुनाई दी ? 
क्या मानस की चौपाई , अंग्रेजी बिना अधूरी है ? 
क्या रामायण के श्लोकों में ,कुछ बात ना हुई पूरी है ?

ये कैसा परिवर्तन कि , हम अंग्रेज़ी संधान करें ? 
परिवर्तन को नियति बताकर , हिंदी का अपमान करें । 
मेरे शब्दों का दंशन यदि , उर में पीर उठाता हो ।
माँ भाषा के अवमूल्यन का , सत्यचित्र दिखलाता हो । 
तो मेरे दुस्साहस को, अपना स्वर देकर पोषित कर दो । 
या फिर हिंदी शत्रु बताकर , “विद्रोही” घोषित कर दो ।

 
-ओजकवि विजय कुमार “विद्रोही ”

 


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