परिवर्तन
परिवर्तन
कैसा परिवर्तन युग आया ? काव्यलोक में भरम समाया।
“हल्दीघाटी” सुबक उठा है, मौन खड़ा “साकेत” लजाया।
दिनकर के साये में पलकर, जिनने कलम चलाना सीखा।
हिंदी को माँ कहते रहते , पर ना धरम निभाना सीखा ।
भाषा को जीवन अर्पित कर, नाम अनेकों लेख कर दिये।
फिर ये कैसी आवश्यकता जो , हिंदी-इंग्लिश एक कर दिये ?
क्या हिंदी के शब्दकोश में , इन्हें कमी दिखलाई दी ?
क्या हिंदी के गिरते स्वर की, आह इन्हें ना सुनाई दी ?
क्या मानस की चौपाई , अंग्रेजी बिना अधूरी है ?
क्या रामायण के श्लोकों में ,कुछ बात ना हुई पूरी है ?
ये कैसा परिवर्तन कि , हम अंग्रेज़ी संधान करें ?
परिवर्तन को नियति बताकर , हिंदी का अपमान करें ।
मेरे शब्दों का दंशन यदि , उर में पीर उठाता हो ।
माँ भाषा के अवमूल्यन का , सत्यचित्र दिखलाता हो ।
तो मेरे दुस्साहस को, अपना स्वर देकर पोषित कर दो ।
या फिर हिंदी शत्रु बताकर , “विद्रोही” घोषित कर दो ।
-ओजकवि विजय कुमार “विद्रोही ”