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DivyaRavindra Gupta

Comedy Drama

2.4  

DivyaRavindra Gupta

Comedy Drama

नेताजी का जन्मदिन

नेताजी का जन्मदिन

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आज नेताजी बलबीर सिंह जी का जन्मदिन था. चमचों में बड़ा जोश था , पूरे सप्ताह ही विभिन्न कार्यक्रम तय किये गए थे। सुबह से ही नेताजी के घर फूलों के गुलदस्ते लेकर चमचमाते जूते और कुर्ते पायजामे पर जैकेट डाले छुटभैय्ये चमचों का आना जारी था।

पिछले महीने नजदीकी रिश्तेदार की पत्नी की डिलीवरी के समय रक्त की आवश्यकता पड़ने और ब्लड ग्रुप मेच करने पर भी रक्तदान नहीं करने वाले छोटुजी , आज नेताजी के जन्मदिन के अवसर पर रक्तदान शिविर की कमान संभाल रहे थे और पहला रक्तदान इन्होंने ही देकर नेताजी को जन्मदिन की शुभकामनाएं भी दी थी।

लल्लन भैया जी जो घर पर अपनी जांघिया भी नहीं धोते हैं, वो नेताजी की कार को साबुन के पानी से चमका रहे थे। कालू भाई जी जिन्हें शायद खुद भी याद नहीं कि अपने पिताजी के पैर कब छुए थे, वो आज जन्मदिन पर नेताजी के तीन बार पैर छू चुके थे । रामू भैया जी जिसने अपनी माँ जी को तीन दिन बीमार होने पर भी अस्पताल ले जाने की सुध नहीं ली, वो आज नेताजी की छोटी बिटिया के लिए घोड़ा बन उसे खिलाने में व्यस्त हो रहे थे।

हर चमचा (सम्माननीय उद्बोधन में समर्पित कार्यकर्ताजी), अपना परिचय नेताजी के सबसे खासमख़ास आदमी बताकर करा रहे थे और नेताजी के स्वयं से निजी घरेलू घनिष्ठ पारिवारिक रिश्तों के प्रमाण अपने मोबाइल में कैद फ़ोटो से एक दूसरे को बताने में व्यस्त थे।

छुटकू बना ने तो एक फोटो जिसमें नेताजी मंचासीन हैं और वो उनसे पीछे खड़े होकर पानी लाने की पूछ रहे हैं , वाले फ़ोटो को यह बताकर प्रदर्शित किया कि नेताजी के साथ किसी गम्भीर मुद्दे पर महत्वपूर्ण विचार विमर्श कर रहे हैं।

नेताजी के घर के बाहर ढोल नगाड़े , कारों का हुजूम , झंडे लहरियों का प्रदर्शन , बड़े बड़े लाउड स्पीकर पर देश भक्ति गाने बजने लगे थे।

नेताजी के मुस्कराते चेहरे और सफेदपोश पोशाक में हाथ जोड़ते खड़े हुए फ्रंट व्यू व साइड व्यू के लंबे चौड़े पोस्टरों से शहर जगमगा रहा था।

गलियों के स्वघोषित छुटभैय्ये नेताओं के द्वारा बड़े नेताजी के अवतरण दिवस पर शुभकामनाएं भरे बैनरों से पूरा शहर पटा पड़ा था।

जगह जगह बेरिकेट्स लगाकर पुलिस ने रास्तों को प्रतिबंधित किया हुआ था क्योंकि आज नेताजी शहर भर में घूम कर जबरदस्ती जनता का अभिवादन स्वीकार करते हुए हाथ हिलाने की मुद्रा में आशीर्वाद ज्ञापित करने वाले थे।

पुलिस की टुकड़ियां शहर की कृत्रिम रूप से बिगाड़ी हुई व्यवस्था को दुरस्त रखने के लिए डंडों के साथ हर चौराहे पर खड़ी थी।

सामान्य जन का ऑफिस जाना थोड़ा मुश्किल हो गया था। आज उसे आधे घण्टे के रास्ते को 1 घण्टे में तय करना था। खैर नेताजी के अवतरण दिवस पर इतना कष्ट उठाना उसका नैतिक कर्तव्य भी तो है।

नेताजी एक बार अपने बंगले की बालकनी से चमचों की फौज को दर्शन लाभ देने के पश्चात घर से बाहर रथ पर सवार हो चुके थे और नाचते गाते चमचों का जुलूस शहर के चप्पे चप्पे से निकल रहा था। जुलूस के कारण जगह जगह जाम लगा हुआ था। एक आपातकालीन स्थिति के गम्भीर मरीज को लिए हुए एम्बुलेंस भी जाम में फंसी हुई थी परन्तु आज नेताजी का अवतरण दिवस जो था। इतना कष्ट तो जनता को उठाना ही था। नेताजी भी तो आखिर जनता के ही सेवक हैं।

वैसे भी नेताजी अभी सत्ता में थे और प्रशासन उनकी ही सेवार्थ लगा था। आगामी चुनावों में नेताजी को करारी शिकस्त मिली और नेताजी हार गये।

अगले वर्ष पुनः नेताजी का जन्मदिन आया पर आज चमचे नदारद थे।

चमचों की फौज , जीते हुए दूसरे पार्टी के नेताजी के यहाँ किसी कार्यक्रम में जा चुकी थी।


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