लाल गुलदस्ता ( एक लघु कथा )
लाल गुलदस्ता ( एक लघु कथा )
यात्री रेलगाड़ी द्रुतगति से पटरी पर दौड़ी जा रही थी. सिग्नल हरा था पर चालक ने दूर से ही उस व्यक्ति को देखा जो बीचो- बीच पटरी पर खड़ा था. ' हे मेरे भगवान !' चालक चीखा. उसने हूटर दबाया पर वह व्यक्ति टस से मस नहीं हुआ. चालक की दृष्टि व्यक्ति के हाथ मेरे पकड़े लाल रंग के एक गुलदस्ते पर पड़ी. लाल रंग. दिमाग तेजी से काम करने लगा. हाथ स्वयंमेव ही ब्रेक पर चले गए. "शायद वह व्यक्ति आत्महत्या के इरादे से नहीं पर उसको चेतावनी देने के लिए खड़ा हो." उसने सोचा. रेलगाड़ी के पहियों से चिंगारियाँ निकलने लग गयी. यात्रियों ने झटके महसूस किये. डब्बों में एक दम से सन्नाटा छा गया. रेलगाड़ी ठीक उस स्थान पर रुकी जहाँ वह व्यक्ति खड़ा था. वह चालक की ओर देख कर मुस्कुरा रहा था .चालाक भी उसको तब तक देखता रहा जब तक वह इंजन से नीचे नहीं उतरा. माजरा क्या है यह जानने के लिए गार्ड इंजन की ओर चलने लगा. कुछ यात्री उत्सुकतावश गार्ड के साथ साथ उतर आये और इंजन की ओर चलने लगे. समीप के गाँव से भी कुछ लोग भागते हुए आ गए. ' लगता है कोई गाड़ी के नीचे आ गया है' एक यात्री बोला ' हाँ, आजकल यही एक तरीका अपना लिया है आसानी से अपनी मुसीबतों के समाप्त करने का'. दूसरा यात्री बोला. इंजन के पास पहुँच कर गार्ड ने चालक को परेशान देखा. उसने पूछा ," क्या हुआ, गाड़ी क्यों रोकी." " वह यहीं था. कहाँ गया ?" चालक कुछ कँपकँपाती आवाज में बोला. 'कौन था ?" गार्ड और यात्री गाड़ी के नीचे देखने लगे. ' यहाँ तो कोई नहीं है' कोई बोला. " नहीं, मैंने उसके खुद इन आँखों से देखा. उसके हाथ में एक लाल रंग का गुलदस्ता था शायद. मझे ऐसा लगा की वह मुझे कोई चेतावनी दे रहा हो. इसी कारण से मैंने गाड़ी रोकी. ' यह तुम्हारा भरम है. मैं अगले स्टेशन मास्टर को सूचित करता हूँ.' गार्ड बोला ओर मोबाइल पर किसी को गाड़ी रूकने की वजह बताने लगा. गार्ड बात कर रहा था और उसके माथे पर पसीना आ रहा था. कभी वह चालक को देखता और कभी वह यात्रियों को. चालक विस्मय से गार्ड की और देखने लगा. अब पूछने की उसकी बारी थी. '"क्या हुआ ?" " एक किलोमीटर दूर छोटी पुलिया पर से पटरी उखड़ गयी है. समय पर तुमने गाड़ी रोक ली. हरा सिग्नल तो तुम पार कर चुके थे." गार्ड और यात्री ईश्वर को याद करने लगे " पर वह व्यक्ति गया कहाँ ?" चालक फिर इधर उधर देखने लगा. गांव से आये एक व्यक्ति ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा " अरे साहिब, वह सुदर्शन होगा. पिछले साल की दुर्घटना याद है. छोटी पुलिया बह गयी थी. सुदर्शन को पता लग गया था. उसके पास आने वाली गाड़ी को रोकने के लिए कुछ नहीं था तो उसने आस पास के जंगली लाल फूलों का गुलदस्ता बनाया और गाड़ी के चालक को दिखाने लगा. पर गाड़ी के चालक ने देखा नहीं. सुदर्शन के अपनी जान गवाँ दी थी साथ ही गाड़ी छोटी पुलिया पर दुर्घटनाग्रस्त हो गयी. जान माल का काफी नुकसान हो गया था. आज शायद छोटी पुलिया पर फिर कुछ हुआ होगा. तभी तो............" चालक उसकी ओर देखता रह गया. वह सुदर्शन की तरह ही तो लग रहा था. गाँव वाले जा चुके थे. वह खड़ा वहीँ मुस्कुरा रहा था. लाल गुलदस्ता उसके हाथ में नहीं था. शायद गुलदस्ते ने अपना काम कर दिया था.
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