दफ्तर में खून, भाग- 4
दफ्तर में खून, भाग- 4
गतांक से आगे-
यशवंत माने और बंडू परब नामक दोनों सुरक्षाकर्मियों की अच्छी खबर ली गई। इन दोनों के होते शामराव भीतर आकर अग्निहोत्री साहब का क़त्ल करके फरार हो गया और इन्होंने उसे आते-जाते देखा तक नहीं। पूछताछ से पता चला कि यशवंत बीच में थोड़ी देर के लिए सामने चाय पीने गया था और टीवी शोरूम के शोकेस विंडो में लगे दैत्याकार टीवी स्क्रीन पर विराट कोहली की डबल सेंचुरी देखने लगा था। तब बंडू सिक्योरिटी केबिन में मौजूद था पर उसकी बुजुर्ग अवस्था और सुस्त हालत को देखते हुए यह समझना प्रभाकर के लिए मुश्किल नहीं था कि बुजुर्गवार उस समय नींद के झोंके में भी हो सकते होंगे। एक टीम शामराव को पकड़ने के लिए रवाना हो गई थी।
इधर समीर जुंदाल, नया पत्रकार बार-बार बाद बदल रहा था। कार्यालय में उसकी बेचैनी प्रभाकर से छुपी न रह सकी। उसने समीर को बुलवाया और बोला, तुम्हारा नाम?
'समीर कृष्णकांत जुंदाल' सर!
तुम कब से इस ऑफिस में हो ?
सर! दो महीने हो गए हैं। अभी ट्रेनिंग पीरियड में हूँ ।
आज का वाकया बताओ , प्रभाकर बोला।
सर! कल शाम जब शामराव और विट्ठल का झगड़ा हुआ था तब मैं यहीं था। अग्निहोत्री सर ने बीचबचाव करना चाहा था पर दोनों एक दूसरे को देख लेने की धमकी दे रहे थे और आज मालिनी के रुमाल में ग्रीस लगा मिलने पर काफी हंगामा हुआ और फिर अग्निहोत्री सर का खून हो गया।
तुम्हारे ख़्याल से क्या शामराव कातिल है?
अब पता नहीं सर ! वो आदमी थोड़ा रूखा जरूर है पर मुझे तो किसी एंगल से वो कातिल नहीं लगता।
प्रभाकर ने नोट किया कि समीर उससे बातें कर रहा है पर उसका ध्यान कहीं और है, मानो कोई बात बाहर आना चाहती हो।
समीर! कोई ख़ास बात जो तुम बताना चाहते हो? उसने पूछा
समीर ने सशंकित नजरों से इधर-उधर ताका और धीमे से बोला, सर कल रात मैंने पांडे जी को अग्निहोत्री सर से खासी बहस करते देखा था।
प्रभाकर के माथे पर बल पड़ गए। रामनाथ पांडे दैनिक सबेरा का वरिष्ठ संवाददाता था और विभूति नारायण के बाद दूसरे नंबर की हैसियत रखता था। अगर विभूति नारायण अग्निहोत्री बाहर से आकर संपादक की कुर्सी पर न बैठते तो पांडे का ही संपादक बनना तय था ।
कैसी बहस? और किस किस ने देखी थी बहस? प्रभाकर ने पूछा
सर! कल काफी रात गए तक मैं कोने में बैठा काम करता रहा था। बाकी सब चले गए थे। ऑफिस में सन्नाटा था। अग्निहोत्री सर ने प्यून को भी छुट्टी दे दी थी केवल रामनाथ पांडे अपने केबिन में बैठे काम कर रहे थे। थोड़ी देर बाद पांडे उठकर अग्निहोत्री साहब के केबिन में गए और दोनों में खूब झगड़ा हुआ।
वे दोनों किस बात पर झगड़ रहे थे? मेरा मतलब मामला क्या था? प्रभाकर ने पूछा ।
वो मैं नहीं सुन सका सर ! समीर बोला, मैं कॉन्फ्रेंस रूम में था। काफी ऊँची आवाजें वहाँ से उठ रही थीं पर मुझतक स्पष्ट नहीं आ रही थीं ।
ओके ! कह कर प्रभाकर ने उसे शाबाशी दी और खुद पांडे के केबिन की ओर चल पड़ा। पांडे के केबिन का दरवाजा लॉक नहीं था जैसे ही प्रभाकर ने हैंडल घुमाकर भीतर कदम रखा उसे ऐसा लगा मानो भूकम्प आ गया हो।
क्या हुआ भीतर? ऐसा क्या देख लिया प्रभाकर ने ?
पढ़िए भाग 5 में