छू लूँ आसमां मैं
छू लूँ आसमां मैं
शगुफ़्ता है मेरी प्रकृति
ऐसी बातें ऐसे ही चलती
ख्वाब देखूं मैं ऊँचे ऊँचे
कभी चाँद पर पहुंचकर
अठखेलियाँ करूँ तारों संग
दुनिया चाहे करे मुझपे तंज
न किसी का डर ना कोई रंज
माँ बापु का प्यार है मिलता
भाई बहन का दिल है जीता
सखियों संग मेरा मकनातीस
प्यार लुटाती फिरू चारों दिश
चलती फिरूँ...उड़ती फिरूँ ....
मस्त बनके पंछी में गगन में ...
आफताब को अपना बनाऊं में
रोको न मुझे छू लूँ आसमां में...