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दुब्रोव्स्की - 12

दुब्रोव्स्की - 12

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कुछ दिन और बीत गए और कोई ख़ास बात नहीं हुई। पक्रोव्स्कोएवासियों का जीवन एक ही ढर्रे पर चल रहा था। किरीला पेत्रोविच प्रतिदिन शिकार पर जाता; पढ़ाई, सैर और संगीत शिक्षा मारिया किरीलव्ना को व्यस्त रखते – ख़ासकर संगीत का अध्ययन। वह अपने दिल की बात समझने लगी थी, और एक अनचाहे विषाद के साथ उसने स्वीकार कर लिया था, कि उसका दिल युवा फ्रांसीसी के गुणों के प्रति उदासीन नहीं है। वह अपनी ओर से कभी भी सौजन्य और अनुशासित शिष्टाचार की सीमा से आगे नहीं बढ़ा था, और इससे उसके स्वाभिमान और भयपूर्ण सन्देहों को कुछ सान्त्वना मिलती थी। वह अधिकाधिक विश्वास के साथ इस सम्मोहक आदत के प्रति समर्पित होती जाती। देफोर्ज के बगैर उसका दिल नहीं लगता, उसकी उपस्थिति में सारा ध्यान वह उस पर ही केन्द्रित करती, हर बात में उसकी राय लेती और हर बात में उससे सहमत होती। शायद, उसे अभी तक प्यार नहीं हुआ था, मगर पहले ही व्यवधान या भाग्य के आकस्मिक थपेड़ों के कारण प्यार की आग उसके दिल में भड़कने ही वाली थी।

एक दिन हॉल में आने पर, जहाँ शिक्षक उसका इंतज़ार कर रहा था, मारिया किरीलव्ना ने हैरानी से उसके विवर्ण चेहरे पर परेशानी के लक्षण देखे। उसने पियानो खोला, कुछ रचनाएँ बजाईं, मगर दुब्रोव्स्की ने सिरदर्द के बहाने माफ़ी माँगी, अध्ययन रोक दिया और संगीत रचनाओं वाली पुस्तिका को बन्द करते हुए चुपके से उसके हाथ में एक चिट्ठी थमा दी। मारिया किरीलव्ना ने बिना सोचे समझे उसे ले लिया और तुरन्त ही उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, मगर दुब्रोव्स्की वहाँ से जा चुका था। मारिया किरीलव्ना अपने कमरे में गई और चिट्ठी खोलकर पढ़ने लगी:

“आज शाम को सात बजे नदी के किनारे वाले कुंज में आइए, मेरा आपसे बात करना आवश्यक है। ”

उसकी उत्सुकता जाग उठी थी। वह काफ़ी समय से प्रेम की स्वीकृति का इंतज़ार कर रही थी, उसकी आशा करते हुए, उससे घबरा भी रही थी। उसे उस बात की पुष्टि सुनकर अच्छा लगता जिसका अनुमान वह लगा रही थी, मगर वह ये भी महसूस कर रही थी, कि इस स्वीकृति को ऐसे आदमी के मुँह से सुनकर कुछ असभ्य-सा लगेगा, जो अपनी परिस्थिति के कारण कभी उसका हाथ पाने की आशा भी नहीं कर सकता था। उसने निश्चय किया कि वह उससे मिलने जाएगी, दुविधा सिर्फ एक ही बात की थी : शिक्षक की स्वीकारोक्ति को वह किस तरह ग्रहण करेगी, सामन्ती अप्रियता के साथ, दोस्ती का वादा करते हुए, हँसाने वाले मज़ाकों के साथ या फिर ख़ामोश अलिप्तता के साथ। इस दौरान हर मिनट वह घड़ी की ओर देख लेती थी। अंधेरा हो गया, मोमबत्तियाँ जला दी गईं, किरीला पेत्रोविच अपने पड़ोसियों के साथ ताश खेलने बैठ गया। भोजन-कक्ष की घड़ी ने पौने सात बजाए और मारिया किरीलव्ना चुपके से ड्योढ़ी पर निकली, उसने इधर-उधर नज़र दौड़ाई और उद्यान की ओर भागी।

रात अंधेरी थी, आसमान बादलों से ढँका था, दो कदम की दूरी पर भी कुछ देख पाना असंभव था, मगर मारिया किरीलव्ना अंधेरे में ही परिचित पगडंडी पर चलती रही और एक ही मिनट बाद वह कुंज में थी : यहाँ पहुँचकर वह रुक गई, जिससे साँस लेकर देफोर्ज के सामने उदासीनता का भाव ओढ़ा जा सके और यह दिखाए कि उसे कोई जल्दी नहीं थी। मगर देफोर्ज तो उसके सामने ही खड़ा था।

“धन्यवाद,” उसने धीमी आवाज़ में कहा, “आपने मेरी प्रार्थना को ठुकराया नहीं। यदि आप राज़ी न होतीं, तो मैं बदहवास हो गया होता। ”

मारिया किरीलव्ना ने रटे-रटाए वाक्य से उत्तर दिया : “आशा करती हूँ, कि आप मुझे मेरी ग़ैर ज़िम्मेदाराना हरकत के लिए माफ़ी माँगने पर मजबूर नहीं करेंगे। ”

वह ख़ामोश रहा, लगता था, मानो हिम्मत जुटा रहा हो।

“हालात का तकाज़ा है। मुझे आपको छोड़कर जाना ही पड़ेगा,” आख़िरकार उसने कह ही दिया, “आप, हो सकता है, शीघ्र ही सुनें। मगर आपसे जुदा होने से पहले मैं आपको सब कुछ बता देना चाहता हूँ। ”

मारिया किरीलव्ना ने कोई जवाब नहीं दिया। इन शब्दों में उसे अपेक्षित स्वीकृति की भूमिका बँधती दिखाई दी।

“मैं वह नहीं हूँ जो आप समझ रही हैं”, वह सिर झुकाए कहता रहा, “मैं फ्रांसीसी देफोर्ज नहीं हूँ, मैं दुब्रोव्स्की हूँ। ”

मारिया किरीलव्ना के मुख से चीख निकल गई।

“डरिए नहीं, ख़ुदा के लिए, आपको मेरे नाम से डर नहीं लगना चाहिए। हाँ, मैं वही बदनसीब हूँ, जिसके मुँह से आपके पिता जी ने रोटी का टुकड़ा छीन लिया, उसे अपने पिता के घर से निकाल दिया और राजमार्गों पर डाके डालने के लिए भेज दिया। मगर आपको मुझसे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है – अपने लिए भी नहीं, उनके लिए भी नहीं। सब कुछ ख़त्म हो गया। मैंने उन्हें माफ़ कर दिया। सुनिए, आपने उन्हें बचाया है। मेरी पहली खूनी विजय उन्हीं पर होनी थी। मैं उनके घर के चारों ओर घूमता रहा, यह निश्चित करने के लिए कि आग कहाँ लगाई जाए, कहाँ से उसके शयनकक्ष में घुसा जाए, उसके भागने के सारे रास्ते कैसे काटे जाएँ – उसी क्षण आप मेरे सामने से गुज़रीं, मानो कोई दैवी आभा हो, और मेरे दिल को सुकून आ गया। मैं समझ गया कि वह घर, जहाँ आप रहती हैं, पवित्र है और आपसे ख़ून का रिश्ता रखने वाले किसी भी व्यक्ति को मैं सता न सकूँगा। मैंने बदले की भावना को यूँ फेंक दिया, जैसे पागलपन को फ़ेंका हो। कई-कई दिन मैं पक्रोव्स्कोए के उद्यान के निकट घूमता रहा, इस उम्मीद में, कि आपकी सफ़ेद पोषाक को देख पाऊँ। आपके लापरवाह सैर-सपाटों के बीच मैं आप पर नज़र रखता रहा, एक झाड़ी से दूसरी झाड़ी तक छुप-छुपकर सरकता रहा, इस ख़याल में मगन कि आपकी रक्षा कर रहा हूँ। जहाँ मैं गुप्त रूप से उपस्थित रहूँ, वहाँ आपके लिए कोई ख़तरा नहीं है। आख़िर में मुझे मौका मिल ही गया। मैं आपके घर में बस गया। वे तीन सप्ताह मेरे लिए बड़ी ख़ुशी के, सुख के दिन थे। उनकी याद मेरे दुखी जीवन में ख़ुशी बिखेर देगी। आज मुझे जो ख़बर मिली है, उसके पश्चात् यहाँ और अधिक रुकना मेरे लिए संभव नहीं है। आज मैं आपसे जुदा हो रहा हूँ। इसी समय, मगर इससे पहले मुझे आपसे साफ़-साफ़ कहना होगा, ताकि आप मुझे दोष न दें, मुझ पर शक न करें। कभी दुब्रोव्स्की को याद कर लिया करें। याद रखिए, उसका जन्म किसी और उद्देश्य के लिए हुआ था, उसकी आत्मा आपसे प्यार करना जानती थी, कभी। ”

तभी हल्की-सी सीटी की आवाज़ सुनाई दी और दुब्रोव्स्की चुप हो गया। उसने उसका हाथ पकड़कर अपने जलते हुए होठों पर रख लिया, सीटी की आवाज़ दुबारा सुनाई दी।

“माफ़ कीजिए,” दुब्रोव्स्की ने कहा, “मुझे बुला रहे हैं, एक मिनट की भी देरी मेरी जान ले सकती है। ” वह दूर हटा। मारिया किरीलव्ना निश्चल खड़ी रही। दुब्रोव्स्की ने फिर वापस आकर उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया।  

“अगर कभी”, उसने नाज़ुक, प्यार भरी, थरथराती आवाज़ में कहा, “अगर कभी दुर्भाग्य आपको दबोच ले, और आपको किसी से भी किसी सहायता की, किसी आश्रय की अपेक्षा न हो, तो क्या आप वादा करती हैं कि भागती हुई मेरे पास आएँगी, मुझसे हर उस चीज़ की माँग करेंगी जो आपको बचा सके? क्या आप वादा करती हैं, कि आप मेरी समर्पण की भावना को ठुकराएँगी नहीं?”

मारिया निकोलायेव्ना ख़ामोश आँसू बहाती रही। सीटी की आवाज़ तीसरी बार सुनाई दी।

“आप मुझे मार डालेंगी!” दुब्रोव्स्की चीख़ा, “जब तक जवाब नहीं देतीं, मैं आपको छोडूँगा नहीं, आप वादा करती हैं या नहीं?”

“वादा करती हूँ”, बेचारी सुन्दरी ने फुसफुसाहट से कहा। दुब्रोव्स्की से मुलाकात के बाद परेशान मारिया निकोलायेव्ना उद्यान से वापस आई। उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि सभी लोग इधर-उधर भाग रहे हैं, पूरे घर में सरगर्मी थी, आँगन में काफ़ी लोग थे, ड्योढ़ी के पास त्रोयका खड़ी थी। दूर से ही उसने किरीला पेत्रोविच की आवाज़ सुनी और वह शीघ्रता से कमरे में घुसी, डरते-डरते, कि उसकी अनुपस्थिति का किसी को पता न चला हो। हॉल में उसे किरीला पेत्रोविच मिला, मेहमान पुलिस कप्तान को घेरे खड़े थे, हमारे परिचित पुलिस कप्तान को, और उस पर प्रश्नों की बौछार कर रहे थे। कप्तान सफ़रवाली पोषाक में, सिर से पैर तक हथियारों से लैस, परेशानी और रहस्यमय अंदाज़ में उन्हें जवाब दे रहा था।

“तुम कहाँ थीं, माशा”, किरीला पेत्रोविच ने पूछा, “तुमने मिस्टर देफ़ोर्ज को तो नहीं देखा?”

माशा ने प्रयासपूर्वक इनकार किया।

“सोचो”, किरीला पेत्रोविच कहता रहा, “कप्तान उसे पकड़ने आया है, और मुझे विश्वास दिला रहा है कि वह दुब्रोव्स्की है। ”

“सभी लक्षण, हुज़ूर”, कप्तान ने आदरभाव से कहा।

“ऐS भाई मेरे”, किरीला पेत्रोविच ने उसकी बात काटते हुए कहा, “तुम अपने लक्षणों समेत जहाँ सींग समाएँ, जाओ। मैं तुम्हारे हाथ अपने फ्रांसीसी को नहीं दूँगा जब तक कि स्वयम् जाँच-पड़ताल न कर लूँ। उस डरपोक और झूठे अन्तोन पाफ्नूतिच के शब्दों पर कैसे विश्वास किया जा सकता है, उसे यह आभास हुआ कि शिक्षक उसे लूटना चाहता था। उसने उसी दिन सुबह इस बारे में मुझसे एक भी शब्द क्यों नहीं कहा?”

“फ्रांसीसी ने उसे धमकाया था, हुज़ूर”, कप्तान ने जवाब दिया, “और उससे चुप रहने की कसम ले ली। ”

“झूठ”, किरीला पेत्रोविच ने निश्चय कर लिया, “मैं अभी सारी बात साफ़ किए देता हूँ। शिक्षक कहाँ है?” उसने भीतर आते हुए सेवक से पूछा।

“कहीं दिखाई नहीं दे रहे,” सेवक ने जवाब दिया।

“तो उसे ढूँढ़ो,” त्रोएकूरव चीखा। उसे शक होने लगा था। “दिखाओ मुझे अपने लाजवाब लक्षण”, उसने कप्तान से कहा, जिसने उसे फ़ौरन वह कागज़ थमा दिया। “उम्र तेईस साल। मगर, फिर भी, इससे तो कुछ साबित नहीं होता। कहाँ है शिक्षक?”

“नहीं मिल रहे”, फिर वही जवाब मिला। किरीला पेत्रोविच परेशान होने लगा, मारिया किरीलव्ना अधमरी-सी हो गई।

“तुम्हारे चेहरे का रंग उड़ गया है, माशा”, पिता ने ताड़ते हुए कहा, “तुम्हें डरा दिया। ”

“नहीं, पापा”, माशा ने जवाब दिया, “मेरा सिर दुख रहा है। ”

“जाओ माशा अपने कमरे में और चिन्ता न करना”, माशा ने उसका हाथ चूमा और फ़ौरन अपने कमरे में चली गई, वहाँ उसने स्वयम् को बिस्तर पर झोंक दिया और बेतहाशा रोने लगी, मानो उसे हिस्टीरिया का दौरा पड़ा हो। सेविकाएँ भागती हुई आईं। उन्होंने उसके वस्त्र बदले, ज़बर्दस्ती उसे ठंडे पानी और सभी संभव द्रव्यों से शांत करने का प्रयत्न करती रहीं, उसे लिटाया गया, और वह बेहोश हो गई।

इस दौरान फ्रांसीसी को ढूँढा नहीं जा सका। किरीला पेत्रोविच हॉल में चहलकदमी करता रहा और ज़ोर-ज़ोर से सीटी पर "विजय भेरी बजाओ। ” बजाता रहा। मेहमान आपस में फुसफुसाकर बातें करते रहे, पुलिस कप्तान बेवकूफ़ की तरह बगले झाँक रहा था, फ्रांसीसी मिल नहीं रहा था। निश्चित था कि वह छुपने में सफ़ल हो गया था, शायद किसी ने उसे आगाह कर दिया था। मगर किसने और कैसे? यह रहस्य ही बना रहा।

रात के ग्यारह बज चुके थे और किसी को नींद का ख़याल भी नहीं आया। आख़िर में किरीला पेत्रोविच ने गुस्से से कप्तान से कहा:

“तो, अब क्या? तुम यहाँ उजाला होने तक तो रुक नहीं सकोगे, मेरा घर कोई मयख़ाना नहीं है, तुम्हारे जैसी फुर्ती से तो, भैया, दुब्रोव्स्की पकड़ा जाने से रहा, अगर वह सचमुच में दुब्रोव्स्की है तो! अब यहाँ से दफ़ा हो जाओ और आगे थोड़ी फुर्ती से काम लो। और आपका भी घर जाने का समय हो गया है”, उसने मेहमानों की ओर मुड़कर कहा। अपनी गाड़ियाँ तैयार करवाने का आदेश दीजिए, और मैं सोने चला। ”

ऐसी बेरुखी से त्रोएकूरव अपने मेहमानों से जुदा हुआ।



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