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देर आये,,, दुरूस्‍त आये ^^

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संकल्‍प के कमरे का दरवाजा खोलते ही वीणा का मन कसैला सा हो गया। कितना बे‍तरतीब सा कर रखा हैं, धुले कपड़े चादर की गठरी से बाहर निकलकर जैसे चिढ़ा रहे थे – ‘’बहुत तहज़ीब पसंद हो ना, अब अपने बेटे को थोड़ा शरूर सिखाओं तो जानें।‘’

चादर झटकारने के लिए तकिया उठाया ही था कि देखा, तकिये के नीचे रोमांटिक पत्रिका रखी हुई हैं, पन्‍ने पलटे तो मन घृणा से भर उठा –‘’ये मेरा ही बेटा है ? घिन आती है इसकी सोच पर मुझे। सोचने को मजबूर हो जाती हॅू कि क्‍या वाकई बच्‍चों के गुण-अवगुण, आदतें माता-पिता के जींस पर ही निर्भर करते हैं ? संकल्‍प के पापा और मैं तो ऐसे नहीं थे, फिर ये हमारा बेटा ऐसा कैसे हो गया ?

चादर झटकारकर वीणा से मैग्‍जीन जस की तस तकिये के नीचे रख दी। कमरा थोड़ा सलीके से करके वह बाहर आई तभी डोरबेल बजी। दरवाजा खोला तो सामने संकल्‍प कॉलेज का बैग पकड़े खड़ा था।

'हाय मॉम, कैसी हो, क्‍या कर रही हो ?'

;मैं तो ठीक हॅू, चाय बना रही हॅू, पीयेगा मेरे साथ ?'

'मेरे मन की बात कह दी मॉम, आप चाय बनाओ जल्‍दी से, बहुत थकान सी लग रही हैं। मैं फ्रेश होकर आता हॅू।'

वीणा दो कप चाय और बिस्किट ट्रे में ले आई।

संकल्‍प टॉवेल से मुंह पोंछकर चाय का कप उठाता हैं।

कैसा रहा कॉलेज, आज तो चार घंटे लेट आये हो, कोई खास वज़ह।;।

'अरे मॉम, आज हम लोग कॉलेज के बाद ग्रुप डिस्‍कशन कर रहे थे, इंटर कॉलेज कॉम्‍पटीशन होने वाले हैं ना।'

'कॉलेज में ही डिस्‍कशन चल रहा था या फिर कहीं और गये थे तुम सब।'

'अरे मॉम कॉलेज में नहीं थे, बिट्टन मार्केट के कैफे में गये थे। पेट-पूजा के साथ काफी कुछ डिस्‍कस किया। बहुत मज़ा आया। वाह मॉम, चाय तो बहुत ही जायकेदार बनी है, बहुत दिन बाद आपके हाथ की चाय पी हैं।

'तुम्‍हारे पास समय ही कहा हैं बेटा, कॉलेज, दोस्‍त-सहेलियां, कॉम्‍पटीशन्‍स, पता नहीं और भी क्‍या क्‍या ?'

'आपको क्‍या लगता हैं मॉम मैं क्‍या टाइमपास करता हॅू बाहर जाकर ?'

'नहीं बेटा, ऐसा कुछ नहीं। मुझे तुम पर विश्‍वास हैं। अरे हां तुमको पता हैं, शमिता आंटी आई थी कल शाम घर पर, बहुत परेशान सी थी अपनी बेटी के बारे में लोगों से सुन-सुन कर।'

'क्‍यों ऐसा क्‍या कर दिया बेटी ने ?'

'अरे अपने किसी दोस्‍त के साथ कहीं घूमने या यूं ही ग्रुप डिस्‍कशन के लिए कही गई होगी, किसी रिश्‍तेदार या पड़ोसी ने देखा होगा तो बताया कि तुम्‍हारी बेटी किसी आवारा से लड़के के साथ घूमते दिखी, कॉलेज बैग पीठ पर टांगे हुए। सुनकर शमिता को समझ ही नहीं आ रहा कि बेटी को कैसे समझाये, कि वह गलत राह पर जा रही हैं।'

'अरे मॉम, लड़कों का क्‍या जाता हैं, उनको तो रोज नई-नई गर्लफ्रेंड चाहिए घुमाने के लिए। लड़कियों का क्‍या हैं, दो-चार तोहफें दे दों, पट जाती हैं। फिर बदनामी की भी फिक्र नहीं होती उन्‍हें।'

'लड़कियों को भले ही नहीं समझ आता होगा, पर लड़कों के गर्लफ्रेंड बनाने के फितुर और टाइमपास की मानसिकता के कारण लड़कियों की जिंदगी तो दागदार बन ही जाती हैं, माता-पिता के लिए जिंदगी भर तिल-तिल कर मरने का सबब। क्‍या तुम्‍हारी बहन या घर की बेटी के साथ ऐसा हो तो तुमको गंवारा होगा ?

'इन लड़कियो को कहा किसने कि १००-२०० के तोहफों के लिए अपनी और मां-बाप की जिंदगी में जहर घोलने के लिए, समझाएं भी तो कौन इन बेवकूफ लड़कियों को ? इनका अपना विवेक तो होता नहीं, और लड़के इन्‍हें मोहरा बना अपना मनोरंजन कर लेते हैं। मेरी बहन – बेटी ऐसा करें तो मैं सरे बाज़ार दो हाथ जड़कर उसका घर से बाहर निकलना बंद करा देता।'

'संकल्‍प, मैं समझाऊंगी उन लडकियों को, दो उन लड़कियों का नंबर मुझे अभी और इसी वक्‍त।'

'किनकी बात कर रही हो मॉम, मैं शमिता आंटी और उनकी बेटी को जानता भी नहीं ?'

'अरे मेरे जलेबी से सीदे-साधे, भोले बेटे, शमिता आंटी की बेटी की नहीं, मैं उन बेवकूफ लड़कियों की बात कर रही हॅू, जो गाहे-बगाहे तुम्‍हारी बाइक पर तुम्‍हारे कंधों पर झूलते हुए तुम्‍हारे साथ रोज़ाना घूमा करती हैं, कम से कम 2-4 लड़कियों की जिंदगी तबाह होने से से बच जाये।'

'मॉम आपने कब देख लिया मेरे साथ लड़कियों को घूमते हुए ?'

'मैने नहीं देखा बेटा, पर आए दिन तुम्‍हारे ऐसे मनोरंजक दौरों के बारे में अपने ही लोगों से सुन-सुनकर थक चुकी हॅू, इसीलिए ऐसी मनगढंत कहानी कहकर तुम्‍हारी मानसिकता को टटोला। बेवकूफ वो लड़कियां हैं या नहीं मुझे नहीं पता, पर इतना तो पक्‍का हैं कि तुम जैसे लड़के अपने मां-बाप को मूर्ख समझकर दूसरे की बेटियों को खिलौना बनाकर अपना वर्तमान और भविष्‍य दोनों तबाह कर रहे हो। एक बात ध्‍यान रखना, दूसरे की बेटियों की जिंदगी का नासूर बनाकर तुम कुछ समय के लिए तो खुश हो सकते हो पर इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि तुम्‍हारे अंतस में कहीं ना कहीं ऐसे गलत कामों का नकारात्‍मक असर दिखाई ना पड़ता हो।'

'तुम सच कहती हो मॉम, हम लोग आपस में ज्‍यादा गर्लफ्रेंड बनाने की शर्त लगाते हैं और अपना सारा समय उन्‍हें घुमाने-फिराने, गिफ्ट खरीदकर देने जैसे बेतुके कामों में जाया करते हैं। मैं वादा करता हॅू, अब इन कामों में अपना समय जाया नहीं करूंगा, अपने कैरियर की तरफ ध्‍यान लगाउँगा।'

'ये हुई ना बात, जब तुम अपनी बहन और बेटियों के साथ ऐसे घिनौने काम की कल्‍पना भी नहीं कर सकते तो फिर दूसरी लड़किया भी तो किसी की बहन, बेटी हैं। यदि सभी लड़के ये बात समझ जाये तो शायद किसी मां को ऐसी कहानियां गढ़ने का कारण ही ना मिले।'

'हां मॉम, मेरी बुद्धि पर चढ़ी धूंध अब छंट गई हैं।'

चलो, देर आएं दुरूस्‍त आए मेरे लाल।


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