साथी
साथी
"हैलो, रमाकांत जी बोल रहे हैं ?"
"हाँ जी।"
"वह आपकी पत्नी का एक्सीडेंट हो गया है। वह यहाँ भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल में भर्ती हैं। आप जितनी जल्दी हो सके यहाँ आ जाएं।"
" हैलो..हैलो..अरे !"
लगता है उसने फ़ोन रख दिया। मुझे दफ्तर से निकलते ही जो पहला ऑटो दिखा मै उसमें बैठ गया। कम से कम 40 मिनट तो लगेंगे ही मुझे पहुँचने में, यह सोच सोचकर मेरा दिल बैठा जा रहा था। आज सुबह कितनी खुश थी तेजस्विनि जबसे पता चला था कि कल अंकुर आ रहा है। बहु और बच्चों के साथ दो हफ्तों की छुट्टी लेकर। अंकुर मेरा बेटा है, एक बहुत बड़ी विदेशी कंपनी में इंजीनियर है। पिछले सात सालों से अमेरिका में ही है। घर नहीं आ पाता काम की वजह से, पर हर महीने पैसे ज़रूर भिजवा देता है। उसकी माँ उसे रोज़ याद करती है। आज भी घर पर रोज़ एक वक्त तो अंकुर की पसंद का ही खाना बनता है। ना जाने, ऐसा करने से तेजस्विनि को कौन सा सुख मिलता है। पर मैं इस बात से खुश रहता हूँ, कि चलो इसी बहाने वह खुश है। आज भी ज़रूर बाज़ार गयी होगी, खरीदारी करने। मेरे शाम तक घर आने का इंतज़ार भी नहीं हुआ उससे। मेरे मन में बुरे बुरे ख्याल आना शुरू ही हुए थे कि इतने में ऑटो वाला बोल पड़ा,"लो बाबूजी, आ गया अस्पताल। "मैंने उसे पाँच सौ का नोट पकड़ाया और अस्पताल के अन्दर जाने लगा। वह मुझे आवाज़ लगाता रहा मुझे बाकी बचे हुए पैसे देने के लिए, पर आज मेरे पास वक्त नहीं था, पीछे मुड़ने का। मैं भागता हुआ अन्दर पहुँचा और रिसेप्शनिस्ट से जाकर बोला," मेरी पत्नी तेजस्विनि।"
"दरहसल हम आपका ही नम्बर लगा रहे थे काफ़ी समय से," उसने मेरी बात बीच में काटते हुए कहा,"आई एम सॉरी, हम उन्हें बचा नही पाये।" उसके ये शब्द सुनकर मैं गिर गया। ऐसे कैसे चली गयी, मुझे अकेला छोड़कर। मैं ज़ोर ज़ोर से उसका नाम चीखने लगा।
"अरे चिल्ला क्यूँ रहे हो, भगवान की दया से अभी बहरी नही हुई हूँ।"
यह आवाज़ कुछ जानी पहचानी थी। मैंने पीछे मुड़कर देखा तो, तेजस्विनि मुझे अपने चिर परिचित अंदाज़ में घूर रही थी। मैं दो मिनट तक उसे अचरज से देखता रहा ! फिर गले लगाकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। "लगता है तुमने कोई बुरा सपना देख लिया है। कोई बात नही अब सो जाओ, कल बहुत काम है, अंकुर इतने सालों बाद घर आ रहा है।" यह कहकर वह लेट गयी और कुछ ही देर में उसके खर्राटों से हमारा कमरा गूंजने लगा। मैं रात भर उसे ऐसे ही टकटकी लगाये देखता रहा।