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गुमशुदा भाग 8

गुमशुदा भाग 8

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भाग 8

 

जब बबीता को होश आया तो वह अस्पताल के बेड पर पड़ी थी। एक नर्स उसकी सेवा सुश्रूषा कर रही थी। एक हवलदार कमरे के बाहर बैठा हुआ था। उसे देशमुख ने एहतियातन वहाँ तैनात कर रखा था। वह नहीं चाहता था कि किसी तरह इस केस में जो लीड मिली है, उसपर कोई आंच आये। उसे डर था कि जिस आदमी ने बबीता के पति सजीवन को गला काटकर मार दिया था वह हो सकता है वह बबीता को भी निशाना बनाने की कोशिश करे। बबीता को होश में आया देखकर नर्स ने तुरंत डॉक्टर को सूचित किया और इस प्रक्रिया में हवलदार तक भी सूचना पहुंच गई जिसे उसने तुरंत देशमुख तक अग्रेषित कर दिया फलस्वरूप थोड़ी ही देर में देशमुख अस्पताल में आ धमका!

देखो बबीता, वह मीठे शब्दों में बोला, क्या तुम अपने पति के हत्यारे को सजा मिलते नहीं देखना चाहती?

बबीता की आंखों में आंसू भर आये, उसके जबड़े कस गए उसने बड़ी दृढ़ता से अपना सिर सहमति में हिला दिया।

तो मेरे कुछ सवालों का जवाब दोगी?

उसने फिर सिर हिला दिया। तुम्हारे आदमी ने टैक्सी कब खरीदी थी? देशमुख ने पूछा

टैक्सी हमारी नहीं है साब, मेरा आदमी भाड़े की टैक्सी चलाता था। सेठ तो कोई और है!

-अच्छा? कौन है सेठ?

-नाम नहीं मालूम साब, कोई बड़ा सेठ है जिसका बिजनेस है बड़ा!

-उसके बारे में कोई बात याद हो तो बताओ? तुम्हारे पति ने अगर कभी कुछ कहा सुना हो तो!

-ऐसा कुछ खास तो नहीं बोले पर इतना कहते थे कि जल्दी ही हम अमीर हो जाएंगे और दरवाजे पर दस टैक्सी खरीद के लाइन लगा दूंगा! इतना कहकर बबीता फिर सुबकने लगी। देशमुख थाने लौट आया जहाँ मगन राठौर बैठा हुआ था। देशमुख ने उसे सारी बात बताई। मगन थोड़ी देर सोचता रहा फिर बोला, सुनो यार! टैक्सी पर परमिट किसके नाम का है वो जांचा है क्या तुमने? देशमुख की आंखें आशा से चमकने लगीं। उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया था। आम तौर पर मुम्बई में टैक्सी और ऑटो रिक्शा पर मालिकाना हक किसी और का होता है और उसपर परमिट किसी और के नाम का चढ़ता है। टैक्सी चालक परमिट के मालिक को परमिट के एवज में निश्चित रकम चुकाते हैं। देशमुख आर टी ओ के क्लर्क का निजी मोबाइल नम्बर ले आया था, उसने फौरन उसपर फोन लगाया और अपनी वांछित जानकारी मांगी। क्लर्क एक पुलिस अधिकारी के काम को लटका नहीं सकता था और वैसे भी एक पुलिस अधिकारी से थोड़ी निकटता कोई घाटे का सौदा नहीं था। किसी छोटी मोटी बात में पुलिस अधिकारी का निजी नम्बर काफी काम आ सकता था। क्लर्क ने पांच मिनट बाद फोन करकर बताया कि टैक्सी पर जिस व्यक्ति का परमिट चढ़ा है उसका नाम है, सजीवन यादव! दोनों अधिकारियों ने सिर ठोक लिया। कोई रास्ता खुलता नजर नहीं आ रहा था कि अचानक कमरे में देशमुख का दोस्त इंस्पेक्टर सुधीर आ पहुंचा उसके साथ एक सुंदर लड़की थी।


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