आखिरी निशानी
आखिरी निशानी
विवेक भाग रहा है अपने दुःख से, अपने वक्त से, अपनी मज़बूरियों से मगर रोज की एक चीज है जिससे वो नहीं भाग सकता वो है "भूख"।
३ साल हो गए साँची की मौत हुए मगर उसके बाद न विवेक ने शादी की न ही किसी लड़की के साथ उसका प्रेम प्रसंग था। महज ३३ साल की उम्र में भी विवेक ५० का लगने लगा था, अकेलापन और साँची की याद मानो उसकी उम्र का भोग ले रही हो। माँ की बीमारी में पैसे लगाने के बाद उसकी माली हालत भी खराब हो गयी थी।
१५ दिन से विवेक घर से बाहर नहीं निकला और आज निकला भी है तो भूख के कारण...
वो एक इडली वाले ठेले के आगे खड़ा होके बोला
"भैया एक प्लेट कितने की दी"
"५० की"ठेले वाला गुर्राया...
चलो आज इसी से काम चलाना पड़ेगा....विवेक ने फटाफट एक प्लेट ली और खाना शुरू किया...
देखते ही देखते उसने प्लेट साफ़ कर दी और अपना पर्स निकाला मगर ये क्या उसकी जेब में तो केवल २० रूपये हैं वो भी कटा-फट नोट...ये वही विवेक था जिसकी जेब में कभी हजारों रुपये पड़े रहते थे।
विवेक ने आज से पहले कभी इतना शर्मिंदगी महसूस नहीं की उसे अपनी गरीबी और अपने वक्त पे रोना आ रहा था मगर तभी उसे अपने पर्स के सबसे छोटे हिस्से में बड़े सलीके से छिपाया हुआ ५० का नोट दिखाई दिया ये नोट उसे साँची ने कॉलेज के वक्त में दिया था जब उन दोनों ने कॉलेज में किसी बात पर शर्त लगाई थी और वो शर्त विवेक जीत गया, विवेक ने बीसियों बार वो रुपये साँची को देने की कोशिश की मगर स्वाभिमानी साँची ने लेने से मना कर दिया। साँची ने उस नोट पर "लव यु विवेक" भी लिखा था। विवेक का मन नहीं कर रहा था की ये नोट वो उस ठेले वाले को दे मगर उसके पास कोई और चारा भी नहीं था। विवेक जल्दी से वह नोट ठेले वाले को देकर वहाँ से भागने लगा मगर उसे लगा जैसे उसके कंधे पर अब भी किसी ने हाथ रख रखा हो....साँची दूर जाने के बाद भी उसके साथ थी और उसकी मदद कर रही थी। विवेक को वह नोट देने का दुःख तो था मगर उसका मन अब साँची के लिए दुगुने प्रेम से भर गया था..साँची शायद फिर से उसे जीने की इज़ाज़त दे रही थी
"तुम्हारी आखिरी निशानी थी मेरे पॉकेट में पड़ा वो नोट
वक्त ने गुंडों ने कल उसकी भी वसूली कर ली....."