नीलाम्बर
नीलाम्बर
छुटकू को होश आता इससे पहले ही उसकी माँ भगवान् को प्यारी हो गयी थी। जैसे जैसे वो बड़ा होने लगा आस पास के बच्चों और उनकी माँ को देख- देख कर उसके दिल में भी एक माँ पाने की हसरत होने लगी। काश माँ होती तो उसे भी प्यार से गोदी में बैठ कर कहानियां सुनने को मिलती। वो भी माँ से जिद करता। कभी कुछ मांगता कभी कुछ करने को कहता। फिर तो बच्चे उससे लड़ते तो सबकी तरह वो भी अपनी माँ को बुला लाता। वो उसे बचाती, लाड जताती और शायद कभी कभी थोड़ा बहुत डांट भी देती।
बस यही सब बातें जब उसे रोज रोज सताने लगीं तो हिम्मत कर के उसने अपने पापा से पूछ ही लिया की माँ कहाँ हैं। बेचारे पापा क्या बताते। वो तो खुद माँ का रोल भी निभाए जा रहे थे। रोज सुबह उठ कर छुटकू का टिफ़िन तैयार करते फिर उसे नर्सरी स्कूल छोड़ते। दिन में उसे स्कूल से ले कर आते और खाना खिलाते। शाम को पार्क ले जाते और फिर बाजार से आते हुए भाजी तरकारी ला कर छुटकू की पसंद का खाना बनाते। अपनी अच्छी भली नौकरी छोड़ कर घर के नीचे ही छोटी सी दुकान खोल ली थी ताकि छुटकू के आस पास ही रहें।
सब उन्हें कहते थे की दूसरी शादी कर लेनी चाहिए। पर वो डरते थे की कहीं दूसरी शादी के बाद छुटकु को प्यार करने वाली माँ की जगह कोई मुसीबत ही गले न पड़ जाए। इसलिए सब के बहुत जोर डालने पर भी दूसरी शादी के लिये तैयार ही नहीं हुए।
वो जानते तो थे की कभी न कभी छुटकू अपनी माँ के बारे में पूछेगा। पर इतनी जल्दी वो दिन आ जायेगा ये बिलकुल भी नहीं सोचा था। बहुत सोच कर उन्होंने छुटकू को ये बताया कि उसकी माँ भगवान् के पास ऊपर आसमान में चली गयी है जहाँ से कोई कभी वापस नहीं आ पाता।
छुटकू ये सुन कर बहुत निराश हो गया। माँ कभी वापस नहीं आ सकती ये तो वो समझ गया पर फिर उसके मासूम से बालमन ने ये निश्चय कर लिया की माँ नहीं आ सकती तो वो खुद तो आसमान में माँ के पास जा ही सकता है। जब माँ और वो दोनों ही आसमान में रहेंगे तो पीछे पीछे पापा भी आ ही जाएंगे। इतना प्यार करते हैं वो
अपने छुटकू से पक्का ही एक दो दिन में ही पीछे पीछे आ सकते हैं।
अब बस एक ही मुश्किल थी की आसमान तक कैसे जाया जाय। पापा से पूछने में खतरा था। कहीं वो आसमान जाने के रास्ते ही बंद न कर देते। तो बहुत सोच विचार कर उसने सीढ़ी पर चढ़ कर आसमान तक जाने की सोची। उसका दोस्त पिंटू बहुत ऊंची इमारत पर रहता था। वो एक बार उसके साथ उसके घर की छत पर गया था तो कितना मजा आया था। नीचे चलती गाड़ियां माचिस की डिब्बी सी लग रही थीं और आदमी तो चींटियों से भी छोटे। वहां छत पर एक लम्बी सी सीढ़ी भी थी। बस उस पर चढ़ कर पहुँच जाएगा आसमान। वो बिल्डिंग पक्का आसमान के बिलकुल पास थी तभी तो कोई दूसरी बिल्डिंग उस से ऊंची नहीं थी। उससे ऊंची होती तो फिर तो आसमान से टकरा ही जाती।
सो छुटकू ने पिंटू को सारी बात बताई। पिंटू उसकी मदद करने को तैयार हो गया। एक शाम दोनों चुपचाप छत पर गए। दोनों ने मिलकर सीढ़ी को पानी की टंकी के सहारे ऊँचा खड़ा कर दिया। पिंटू ने सीढ़ी संभाली और छुटकू सीढ़ियां चढ़ता गया। उसे डर लग रहा था पर माँ से मिलना था तो डर पर काबू पा कर किसी तरह सीढ़ी के आखिरी पायदान तक पहुंच गया। ऊपर नीला आसमान सफ़ेद रुई के फाहे से मुलायम बादलों से सजा कितना सुंदर दिख रहा था। उसने हाथ ऊपर उठा कर आसमान को छूने की कोशिश की। पर आसमान तक हाथ पहुँचा ही नहीं। अब उसने थोड़ा उचक कर आसमान को छूने की कोशिश की। पर उसका उचकना था की सीढ़ी का संतुलन बिगड़ गया। बेचारा छोटा सा पिंटू सीढ़ी को संभाल ही नहीं पाया। सीढ़ी और छुटकू दोनों गिरने लगे। पता नहीं क्या हो जाता। पर आसमान से शायद माँ ने छुटकू को आशीर्वाद दिया या शायद भगवन उसे गिरने नहीं देना चाहते थे। उसी वक्त वहां आ कर मिन्नी की माँ माधवी ने अपने हाथों से लपक लिया। इतनी ऊपर से गिर रहा था छुटकू की वो भी उसी के साथ गिर गयी पर क्योंकि उन्होंने छुटकू को लपक लिया था उन्हें और छुटकू को सिर्फ पाँव में थोड़ी खरोंच आयी। पर छुटकू शायद होश में नहीं था क्योंकि वह माधवी जी को ही माँ बोल कर उनसे लिपट गया।
पिंटू की माँ ने फ़ोन कर के छुटकू के पापा को बुला लिया था। वो बार बार माधवी जी को धन्यवाद दे रहे थे। बातों बातों में पता चला की माधवी जी के पति भी भगवान् हो चुके हैं और मिन्नी भी अक्सर अपने पापा को याद कर उनके बारे में पूछती रहती है।
कुछ दिनों की जान पहचान के बाद उन्होंने विवाह कर लिया। अब सब खुशी खुशी रह रहे हैं। छुटकू को माँ के साथ बहन भी मिल गयी है। मिन्नी को पापा और भाई।
छुटकू के पापा और नयी माँ को भी फिर से मुस्कुराहटें मिल गयी है और मिल गया है सुख -दुःख बांटने वाला जीवन साथी।
आसमान में रह रही छुटकू की माँ और मिन्नी के पापा भी शायद अब ज्यादा सुकून से होंगे। जिन्हे वो प्यार करते थे उनकी खुशी से बढ़कर उनके लिए और क्या होगा।