श्रमेव जयते
श्रमेव जयते
उस गाँव में आज जश्न का-सा माहौल था। गाँव को शहर से जोड़ने के लिए बरसाती नदी पर पुल बनकर तैयार हो गया था। सी.एम. महोदय आज उस पुल का उद्घाटन करने आने वाले थे।
गाँव से बाहर मैदान में एक बड़ा-सा पंडाल लगा था। खूब सजावट थी...रंग-बिरंगी...और, मेले-सा माहौल.....।
पानी कम रहने पर तो लोग नदी को पार कर शहर चले ही जाते थे। मगर बरसात में नदी जब रौद्र रूप धारण करती थी, तो पूरा गाँव पानी से घिर जाता था। गाँव से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता था। दूर, दूसरे गाँव से होकर जो सड़क जाती थी, उससे होकर, आठ-दस किलोमीटर का लंबा रास्ता तय कर, शहर जा पाते थे लोग। नाव से नदी पार करने में न जाने कितने लोगों को इस बरसाती नदी ने अब तक लील लिया होगा !
लोगों के युगों-युगों से संचित सपने आज पूरे होने जा रहे थे। सभी बहुत खुश थे। तभी तो मेला लगा था वहाँ पर...!
हरिया, रमुआ, इरफान, हैदर, उस्मान, शंकर, बैजू, गोपाल....सभी नये-नये कपड़े पहनकर इस कार्यक्रम में आए थे। इन मजदूरों ने पुल बनाने में जो श्रम लगाया था, वह आज सार्थक और फलीभूत हो रहा था। उनके चेहरे आनंद और संतुष्टि से चमक रहे थे।
लगातार बजते ढोल-नगाड़ों के बीच, सी.एम. महोदय ने जब मंच से रिमोट का बटन दबाया, तो बड़े से शिलापट्ट से रेशमी परदा सरकने लगा और उस पर लिखे बड़े-बड़े अक्षर झिलमिलाने लगे.....।
शिलापट्ट पर ढेर सारे नाम अंकित थे। सबकी नजरें एक-एक कर उन नामों पर गयीं.......और, सहसा भीड़ हर्षातिरेक से झूम उठी.....!
उस शिलापट्ट पर किसी उद्घाटनकर्त्ता का नाम नहीं था, बल्कि सुनहरे अक्षरों एवं रंगों में....हरिया, रमुआ, हैदर, उस्मान, शंकर, बैजू, गोपाल आदि उन सभी मजदूरों के नाम अंकित थे, जिन्होंने उस पुल के निर्माण में अपना श्रम, रक्त और पसीना बहाया था....!