फलूदा कुल्फ़ी
फलूदा कुल्फ़ी
पंडाल में घुसते ही इत्र और खाने की मिली-जुली खुशबू से दिल ख़ुश हो गया। ज़ोरदार पार्टी रखी थी दोस्त ने एनिवर्सरी की।
मुझे इनविटेशन कार्ड मिला था .. बड़ा इंटरेस्टिंग सा !.
मेरे नाम के साथ लिखे 'सपरिवार' शब्द के उपर सफ़ेदा लगा दिया गया था ...पर शब्द पूरी तरह छुप नहीं पाए थे, झाँक रहे थे, अरे यार कालिख़ पोत देते ! दोस्त की इज़्ज़त तो ख़राब न होती।
इसका परिवार तो.. ? गलती ठीक की गई थी, दोस्त ने किसी को लगाया होगा कार्ड पर नाम लिखने को शायद !
मुझे हँसी आ गयी ! शायद खाने की प्लेट्स की गिनती भी कार्ड लिखते समय चल रही होगी ! इसकी तीन, उसकी चार इसके दो .. नहीं-नहीं, सिर्फ एक।
अब ये सब बुरा नहीं लगता। सच्चाई एक दो बार ही कड़वी लगती है बाद में वो भी किस्मत की तरह वक़्त में यादों की तरह घुल सी जाती है।
स्टेज पर दोनों को बुके गिफ्ट किए, विश किया और आदतन भाभी जी ने पूछ ही लिया, ' भाभी नही आयीं ?' मैं कुछ कहता इससे पहले ही दोस्त ने फोटोग्राफर को इशारा किया और बात को म्यूट कैद कर दिया !
अच्छा हुआ मेरा ऑडियो-वीडियो नहीं बन रहा था वरना बाद में सब पूछते, ' भाभी जी क्यूँ नहीं आयीं ?"
फैमिली वालों को ज़्यादा टाइम लगता था स्टेज पर और खुशियाँ भी ज़्यादा बहती, वीडियो भी उन्हीं पलों के बनते, फॉर्मेलिटी के नहीं ! नीचे उतरा, देखा सभी पुराने दोस्त आए थे, विद फ़ेमिली।फौरन फैमिली से दूर आ कर फॉर्मल बातें करते' कहाँ हो, क्या चल रहा, दिखे नहीं, सब ठीक, खाना वहाँ है, तुम चलो मुझे तो ज़रा टाइम लगेगा ,फैमिली है साथ ...!'
जब सब ठीक था इन्हीं दोस्तों की यही 'फैमिली' जो कभी भाभी हुआ करती थी, के साथ पिकनिक गए, खाए- पीये घर में आना-जाना।आज जैसे ये सब अपनी फैमिली और मेरे बीच शील्ड बन खड़े थे ... मनहूस की कहीं नज़र भी न पड़े।
खाने पर आने लगे सब, मैं देख रहा था। मुझे देखते ही पीठ घुमा कर बातें करने लगते। ये सब भी अब बुरा नहीं लगता। मुझे भी आराम से खाना खाना अच्छा लगता है, दस आँखे देख कर आपस मे इशारे करें, ठीक नहीं।
विचित्र लगा,लोग दूसरे की लाइफ़ को इतना पर्सनली क्यों लेते हैं।
दुःख, सुख, शादी .. तलाक ये सब तो ज़िन्दगी के अंग और रंग भी। जैसे एक्सीडेंट, दुर्घटना, किसी के साथ भी हो सकती है, बस वक़्त की बात है।मेरी टाँग या हाथ टूटा होता तो यही सब घेर के बैठा लेते। घर टूटा और इनके रिश्ते ढीले पड़ गए। अब लगने लगा कि वो भी टूट जाते तो शायद अच्छा होता।
मैं तो वही पुराना दोस्त था फिर मेरे हालात का बोझ ये सब क्यूँ ढोने लगे ?
मुझे पता था इन सब के घर मे भी समस्याएँ हैं, पर लकीली फैमिली साथ होने से ये आज की लड़ाई जीत गए पर जीत का इतना भद्दा प्रदर्शन कर के इन्होंने खुद को गिरा भी लिया था मेरी नज़रो में।
खुद के रिश्तों में चाहे जितने झगड़ा झंझट सत्यानाश हुआ पड़ा हो, दूसरों से व्यवहार में मृदुता की ठंडक बरक़रार रखनी चाहिए ....
"फलूदा-कुल्फी " वेटर ने अचानक मेरे हाथ मे बाउल दे दिया। मैं मुस्कुराया, इसे भी पता चल गया था कि मैं क्या सोच रहा था, स्वीटडिश में बदल दिया।
मैंने कुल्फी खायी, रूह को ठंडक दे कर घर आ कर ताला खोला.. अन्दर खुली हवा में अब दिल को फ्रेश लग रहा था !