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Atul Agarwal

Drama

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Atul Agarwal

Drama

बिड़ला विद्या मंदिर नैनीताल -१

बिड़ला विद्या मंदिर नैनीताल -१

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आठ साल की उम्र में १९६७ जुलाई के शुरू में पाँचवीं कक्षा में बिड़ला विद्या मंदिर ज्वाइन किया था। चार साल ब्रेंटो हॉल में मुन्ना, दीदी व शिब्बन गुरूजी और फिर दो साल नेहरू हाउस में, धाराबल्लभ गुरूजी की सरपरस्ती में रहे। तब नैनिताल में ठंड पड़ती थी। अब ए.सी. चलते हैं। भीड़ सौ गुना बढ़ गयी है।बिड़ला के सैशन १० जुलाई से १० दिसम्बर और फिर १० मार्च से २५ जून तक होते थे। दशहरे के बाद कड़ाके की ठंड होती थी। सुबह ६ बजे जी.बी. तिवारी गुरूजी के साथ पी.टी., हाफ शर्ट और हाफ पैन्ट में। तब हाफ पैन्ट और पैन्ट में जिप नहीं होती थी। आगे बटन होते थे। ठंड की वजह से बटन उंगलियों की पकड़ में नहीं आते थे।

बच्चों को सन्डे-सन्डे नहाना होता था। सीनियर्स में इस बारे में कोई चैकिंग नहीं होती थी। कोई कोई बच्चा तो ९ जुलाई घर से ही नहा कर आता था और ५ माह बाद ११ दिसम्बर को घर पहुँच कर ही नहाता था। उन लोगों के नाम एक खोज व रिसर्च के विषय हैं। कुछ लोगो का वह ५ माह का मैल आज भी नहीं छूटा है। तीन मग पानी में सारे काम हो जाते थे।

हमारे आदरणीय गुरूजनों की सैलरी बहुत कम होती थी. १९७० में २०० रूपये के आस-पास. डी.ए. फिक्स था। अमीर विद्यार्थियों के हैंड टू माउथ गुरुजन। अजीब विडम्बना। अभिभावकों और बच्चों को ना यह बात पता थी और न ही उन्हें इस बात से कोई सरोकार था।

लेकिन हमारे पिता जी भी बिड़ला के सन १९४७ के छात्र होने, एम.सी. तिवारी गुरु जी द्वारा बनायी गई बिड़ला विद्या मंदिर ओल्ड बॉयज एसोसिएशन में होने और हमारे वहाँ पढ़ने की वजह से ना सिर्फ इस सब बात से वाकिफ थे बल्कि सतत प्रयत्नशील रहते थे की गुरूजनों की लिविंग कंडीशनस व सैलरी में सुधार हो।

पिता जी से ही हम अपडेटेड रहते थे।हम से एक साल जूनियर नेहरु हाउस में बरेली के राजीव शिंघल थे. उनके मित्र सरदार हरशरण सिंह गिल उपनाम बुलैट कांठ, शाहजहांपुर से थे. हम ने १९७३ में हाई स्कूल कर के बिड़ला झोड़ा और उन लोगों ने १९७६ में इंटर कर के उन लोगो से १९८० में फिर संपर्क हुआ और १९८३ तक निरंतर बना रहा।

उसी दौरान उनसे गुरुजनों की कम सैलरी पर विचार विमर्श हुआ। बुलैट भाई ने मैनेजमेंट को एक पत्र लिखा और इस सम्बन्ध में एक लेख भी लिखा. लेख की प्रति मेरे पास आज भी उपलब्ध है। उसका असर हुआ। गुरुजनों की सैलरी में बहुत सुधार हुआ। गुरूजन ही बेहतर बता सकते हैं. यह भी एक खोज का विषय हैं कि १९४७ से २०१७ तक ७० साल के अंतराल में हर दस साल में सैलरी क्या थी ?

हमारा नजरिया बिड़ला के बारे में बदलता रहा. हर छात्र हर दस साल के अंतराल में मूल्यांकन कर सकता है। १९६७ में कोई नजरिया नहीं था। १९७३ में जैसे की जेल से छूटे, इंटर भी वहीं से किया होता तो शायद यह नजरिया कुछ और होता। अपने शहर में कॉलेज में गए, कोई अनुशासन नहीं। मर्जी हो तो कॉलेज आओ, मर्जी हो तो क्लास अटैंड करो। थोडा परिपक्व हुए, तो इस प्रशन का जवाब खोजते रहे की हमें बोर्डिंग क्यों भेजा गया। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गयी, धीरे-धीरे बिड़ला अच्छा लगने लगा। ऐसा लगता है की आज हमारे पास जो कुछ भी ज्ञान व् अनुशासन है, वह बिड़ला की बदोलत है ........क्रमशः .......


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