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कनक- भाग दो

कनक- भाग दो

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आपने पढ़ा मीशू के नये पड़ोसी आये। कनक उस घर की बहू, अपनी सास से डरी सहमी, राघव उसके पति को अहसास ही नहीं....आखिर क्यूँ......

अब आगे..

अगले दिन कनक की सास वापिस आ गयी थी, किटी में कनक नहीं आई जैसा की उसने कहा था। मीशू को अचानक कहीं जाना था। कहीं रोहन ना आ जाये मेरे जाने के बाद सोचकर, चाबी देने कनक के दरवाजे तक जा पहुँची, डोर बैल बजाने ही वाली थी कि दरवाजा थोड़ा खुला था, कि कनक के रोने की आवाज सुनकर रूक गयी। आंटी जोर जोर से चिल्ला रही थी, कनक तू ये ना समझ की मैंने तुझे अपना लिया, ना जाने राघव ने कौन से मनहूस दिन तुझ से शादी की।

उसके सामने ये रोना धोने का पता ना चले अगर हमारे खराब रिश्ते की उसे भनक भी लगी। मीशू ने जरा सा झाँक के देखा तो दंग रह गयी। मीशू विस्मित सी उन्हें देखती रह गयी। कितना अजीब व्यवहार, कनक के बाल खींच रखे थे। कनक रोये जा रही थी। कौन है ? अंदर से आवाज ने मीशू को हिला दिया वो जल्दी लिफ्ट से नीचे आ गयी। रोहन को फोन कर दिया कि चाबी मेरे पास है,आ जाये तो पार्क में इंतजार करे। घर आकर उसने रोहन को बात बतायी। सारी रात का सन्नाटा उसके दिल पर चाबुक सा चल रहा था। नारी की गरिमा का इतना तिरस्कार....छीः, उससे ज्यादा कि कनक क्यूँ सह रही थी ? सोच के सो गयी कि कल जरुर कनक से बात करेगी।

रोहन तुम पूछो राघव से ...नहीं मीशू ये उनके घर का मामला है, कहकर रोहन चुप हो गये पर मीशू का मन शांत नहीं था। वो जब भी मिलने जाती कनक से उसकी सास उसे किसी ना किसी बात से अंदर भेज देती, अब मीशू को शाम का इंतजार था जब आंटी जी पार्क जाती....शाम को आंटी के जाते ही कनक के पास पहुँच गयी ..और बोली कनक तुम मुझसे कोई भी परेशानी बता सकती हो।

नहीं मीशू, कोई परेशानी नहीं, तुम कैसी बात कर रही हो ?

कनक मैंने कल सब सुन लिया था ..कनक अचंमभित सी देखती गयी।

कनक मैं तेरी दोस्त हूँ, मैं तेरी बहन जैसी हूँ, मुझे बता क्या बात है। कनक डर मत मन हल्का हो जायेगा, कनक वो बातें जो मन मे थी, रोये जा रही थी और सुनाये जा रही थी...मीशू मैं बहुत गरीब परिवार से हूँ। मेरे पिता बहुत बीमार थे, माँ ने मेरा रिश्ता कर दिया। शादी वाले दिन दहेज की माँग ना पूरी होने से बारात लौट गयी, तभी राघव ने हमारे घर की इज्जत बचाई और मुझ से शादी कर ली, जब ससुराल आई तो सासू माँ ने बहुत बुरा भला कहकर अपना लिया।

इस पर शर्त रख दी कि हम यहाँ नहीं रहेंगे। जिस से किसी को अचानक हुई शादी की सफाई ना देनी पड़े। यहाँ आने पर हमने होटल से ही सारी रस्में और रिसेप्शन दिया। मेहमानों को ये लगे कि राघव को छुट्टी न होने से कम समय मैं शादी की पर मुझे सबके सामने ही अपनापन दिखाती, जब राघव नहीं होते तो बुरा व्यवहार करती।

मीशू के गोद में सिर रखकर कनक सुबक सुबक के सब सुनाये जा रही थी। मीशू बोली, कनक तुम ये सब राघव को क्यों नहीं बताती ? कोशिश की थी पर उनका कहना था कि माँ, पिता जी की मैं बहुत इज्जत करता हूँ, उनको कोई भी शिकायत का मौका मत देना ...उन्होंने कभी मेरी बात पूरी नहीं होने दी। वैसै भी रीति रिवाज दकयानुसी विचार को भूल कर मेरे से शादी करी थी। मेरे पिता का इलाज की भी जिम्मेदारी ले रहे थे, ना मैं अपने माँ-पिता जी को ये बात बता सकती, उनकी नजर में बेइज्जती से बच गये थे वो, राघव के परिवार की बातें सहनी होंगी।

ये ही हर लड़की करती भी है, उसके माँ पिता को दुःख ना पहुँचे। कनक के खिलाफ उनकी मम्मी बुराइयाँ करती पर राघव ने इधर से सुना उधर कान से निकाल दिया। मीशू ने कनक को गले लगा लिया, उसको समझाया कि जितना डरोगी उतना डरायेंगे। कहीं ऐसा ना हो की डरते और सहते-सहते जिंदगी नरक बन जाये, राघव तुम्हारे पति है उनसे छिपाओ नहीं, उठो जवाब देने की हिम्मत रखो, हिम्मत बढ़ाओ।

कल बात करेंगें। तुम्हारी सास के आने का समय हो गया।

मीशू घर चली आई। कनक भी सब सुना कर मन हल्का महसूस कर रही थी। शाम को राघव ने बताया एक दूर रिश्नतेदार का परिवार आ रहा है, कनक खाना बनाने में लग गयी, शाम को चाचा-चाची और उनकी बेटी आये।अगले दिन उन्होंने बताया, उनकी बेटी नताशा यहीं रहकर कॉलेज करेगी।

कनक ने सास-ससुर को कहते सुना की नताशा रहेगी तो राघव का ध्यान भी हो जायेगा, कनक का दिमाग सोच सोच कर परेशान हो गया नताशा का राघव से क्या अब मतलब। आज उसकी सास पढ़ी लिखी होती तो उनकी सोच सकुचिंत नहीं होती कि अपने ही बेटे का घर उजाड़ने चली। राघव की दूसरी शादी सोचकर ...वो सो नहीं पायी।

मीशू की बातें उसको हिम्मत दे रही थी पर कह नहीं पा रही थी। कही राघव ने मुझ पर यकीन नहीं किया तो ? इधर मीशू और रोहन ने फोन पर पार्क में राघव को जाने को कहा और हिम्मत करके सारी बातें बतायी..राघव सोच भी नहीं पा रहा था उसके पीछे उसका सुखी परिवार में क्या हलचल मची थी। कनक को उसकी माँ कहीं आने जाने नहीं देती थी। मानसिक डर, उनकी मार पीट इसलिये कि वो गरीब घर से थी और अमीर परिवार में उसकी शादी ना हो सकी और अब नताशा को बुलाना एक बहाना था। कनक को दूर करने के लिये उसकी बुराइयाँ करना।

समझाकर कनक को राघव घर ले आया। अगले दिन राघव ऑफिस के लिये निकला, नताशा भी कॉलेज चली गयी। सास ने नाश्ते में कितना नमक है, ये ही बात पर कनक को बुरा भला कहने लगी।

कनक ने कहा- माँ जी ये भी खा कर गये इन्होंने नहीं बताया ..अच्छा तो क्या मैं झुठ बोल रही हूँ, तेरे माँ-बाप ने जवाब देना ही सिखा कर भेजा है अभी बताती हूँ, तभी बालों पर कनक के जाता हाथ रूक गया। राघव ने हाथ रोक लिया ....वो ऑफिस नहीं गया। दूसरी चाबी से दरवाजा खोल कर आ गया .....माँआआ....ये क्या आपकी अपनी बेटी के साथ ऐसा होता तो....माँ गरीब कनक नहीं आप और पिता जी हो ..जिनका दिल एक बेटी को अपना नहीं सका,

दिल के गरीब ..जो कनक को मानसिक तनाव दे रहे हो ..जो एहसान मान कर अपनी शादी को बचाने के लिये सह रही थी। आज अगर मीशू का फोन नहीं आता कि आपके घर मे ये सब हो रहा है तो मैं जान नहीं पाता। ऑफिस के आधे रास्ते से लौट आया। कनक रोये जा रही थी। राघव के माँ और पिता के पास बोलने को कुछ नहीं था।

राघव बोले ही जा रहा था। शादी कोई खेल नहीं, कभी भी तोड़ दो और जोड़ दो। नताशा के लिये सोचा भी कैसे ? घर की बात है इसलिये रूका हूँ, नहीं तो आपको छोड़ के आज कनक के साथ चला गया होता। कल ही नताशा का होस्टल में दाखिला कराता हूँ। आप मेरी जिम्मेदारी है तो निभाऊँगा अगर आपका बर्ताव कनक के लिये नहीं बदला तो मुझसे निभाने की उम्मीद ना करे। कल से कनक वो सब करेगी जो आपके डर से नहीं करती थी। ये कहकर कनक का हाथ पकड़ वो बाहर निकल गया।

चलो कनक आज से तुम्हारी जिन्दगी बिना डर के बीतेगी। गलती मेरी थी जो मैं तुम्हारे डर को अचानक किसी और से शादी का डर समझ रहा था। कनक ने राघव का हाथ कसकर पकड़ा था और उसके साथ बढ़ चली थी।मन ही मन सोचकर, एक नारी सास जो दुश्मन बनी थी, एक नारी मीशू जिसने नया जीवन दिला दिया था। नारी ..नारी की शक्ति बनी थी। कल ही वो मीशू से मिलेगी।

अब खुशी से उसके आँसू गिर रहे थे। मंद-मंद मन में खुशी समेटे बिना डर के। आज राघव ने डर को भगा दिया था......


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