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स्याही का रंग

स्याही का रंग

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"देखो देखो बाबा अखबार में अपनी गुड्डी की तस्वीर छपी है, उसने बोर्ड परीक्षा में पूरे जिले में पहला स्थान पाया है।"

खुशी से पुलकते हुए रासबिहारी ने अपने वयोवृद्ध पिता को जब ये खबर सुनाई तो वो भी झूम उठे और बोले, "हां बेटा सच में हमारे लिए ये गौरव की बात है कि हमारे गांव की हमारे घर की बेटी ने ये कारनामा कर दिखाया, वरना तो आज भी बेटियों को बोझ समझा जाता है, पैदा होते ही मां बाप और घर के लोगों में चिंता की लहर दौड़ जाती है । ऐसे में बेटा तूने अपनी बच्ची को शिक्षा का उजाला देकर बहुत नेक काम किया है, बेटा बहुत दुःखी मन से ये बात बोल रहा हूँ कि आज भी हमारे समाज में नारी का कोई स्थान नहीं, उसका काम है बस चूल्हा चौका संभालना और बच्चों को पालना। लेकिन तुम गुड़िया को खूब पढ़ाना जितना वो पढ़ना चाहे, मुझे बहुत दुःख है बेटा की मैं तुमको नहीं पढ़ा पाया क्योंकि मैनें तो स्याही का जो रंग देखा उसी को मिटाने में मेरा पूरा जीवन बीत गया.....

बरसों पहले साहूकार से पाँच हजार का कर्ज लिया वो नीली स्याही में लगाया अंगूठा मेरे जीवन का काल बन गया, उस सूदखोर ने जाने क्या लिखा जिसको चुकाते चुकाते मेरी पूरी उम्र बीत गई और आखिरकार मेरी जमीन पे उसने कब्जा कर लिया। अपना और परिवार का पेट भरने को मैंने दूसरे के खेतों में मजदूरी की आज तुझे भी वो ही करनी पड़ रही है, लेकिन आज मैं बहुत खुश हूं कि उस स्याही की कालिख को मेरी पोती ने सुनहरी बना दिया और स्याही के उस काले रंग को अपनी मेहनत से बदल दिया और आज स्याही का असली रंग उभर आया।"


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