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Chandresh Chhatlani

Abstract Comedy

5.0  

Chandresh Chhatlani

Abstract Comedy

असत्यवान

असत्यवान

2 mins
614


यमराज बड़े व्याकुल होकर कभी इस दिशा में जाते तो कभी उस दिशा मेंI नारद जी ने पूछ ही लिया, "यमदेव, यह कैसी व्याकुलता ?"

"मुनिवर, कलियुग में सावित्री और सत्यवान ने पुनः जन्म लिया है, विवाह भी हो गया और मुझे पुनः सत्यवान के प्राण हरने जाना है, सावित्री के समक्ष विवश हो ही जाता हूँ।"

"आप राजा राम मोहन राय से परिचित हैं ?"

यमराज के मस्तक में जैसे सूर्यदेव आलोकित हो उठे। सत्यवान और सावित्री एक वृक्ष के नीचे बैठे थे, यमराज वहां पहुंचे, सत्यवान के प्राण हरे और उसके जीव को यमपाश में बांधकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए।

पतिहीन नारी की पीड़ा हृदय में लिये सावित्री भी उनके पीछे चल दी, थोड़ी दूर चल कर यमराज ने कहा, "सावित्री, सत्यवान के प्राण के अतिरिक्त अन्य कोई वरदान मांग लो।"

"तो आप मुझे वरदान दें कि मैं दो पुत्रों की माँ बनूँ।"

"तथास्तु !"

"परन्तु श्रेष्ठ पिता, पति के बिना पुत्र कैसे होंगे ?"

"कलियुग में विधवा-विवाह की प्रथा है सावित्री।" कह कर यमराज ने भैंसे की गति तीव्र कर दी।

सावित्री असमंजस में विचारने लगी कि अब वो किससे बेवफाई करे, सत्यवान से या फिर यमराज के वरदान से।

सत्यवान ने यमराज से मार्ग में कहा, "हे श्रेष्ठ पिता, मुझे तो हर जन्म में आप किसी न किसी समय लेकर गये हैं, लेकिन आज आप विशेष प्रसन्न दिखाई दे रहे हैं।"

"हाँ, आज सावित्री मुझसे विजयी नहीं हो पायी, मेरे ऊपर एक कलंक था, वो मिट गया।"

"परन्तु मैं आपके पाश में से भाग सकता हूँ, इसमें अब वो क्षमता नहीं रही, मार्ग में चार बार तो बाहर निकल चुका हूँ, ऐसे तो जीव भागते रहेंगे। धरती पर इससे उत्तम गुणवत्ता के पाश उपलब्ध हैं, आप वो क्यों नहीं ले लेते ?"

यमराज को भी लगा कि बात तो सही है। वह बोले, "अच्छा ! चलो।"

"बदले में एक वरदान आप मुझे भी तो दें।"

"सत्यवान, अपने प्राण छोड़ कर कुछ भी मांग लो।"

"श्रेष्ठ पिता, मुझे मेरे माता-पिता के चरण छूकर आने का वरदान दें। उसके बाद पुनः मेरे प्राण हर लें।"

"तथास्तु ! परन्तु सर्वप्रथम मुझे नवीन पाश उपलब्ध करवाना होगा।"

सत्यवान ने यमराज से यमपाश ले लिया और एक रस्सी की दुकान पर ले जाकर ट्रक बाँधने वाली रस्सी दिखाई। यमराज ने बहुत प्रसन्न होकर वह रस्सी उठा ली और फिर सत्यवान के जीव को उसके शरीर में पुनः डाल दिया।

सत्यवान उठ खड़ा हुआ, और अपने माता-पिता के चरण स्पर्श किये। यमराज ने पुनः उसका जीव निकालने का यत्न किया, लेकिन यह क्या ? असली यमपाश तो सत्यवान के पास था।

कलयुग में सावित्री नहीं तो सत्यवान जीत गया, वो बात और है कि असत्य कह कर।


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