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PRIYANKA YADAV

Drama

5.0  

PRIYANKA YADAV

Drama

एक किस्सा अधूरा सा-10

एक किस्सा अधूरा सा-10

7 mins
685


इमरान जब दफ्तर से लौट रहा था तो उसे घर आने की जल्दी कुछ ज्यादा ही थी। उसकी शादी हुए लगभग 2 साल हो गए थे। अल्फिया के साथ ये समय जाने कब बीत गया पता ही नहीं चला। दफ्तर में बैठे बैठे उसे याद आया की एक महीने बाद उनकी सालगिरह है। बैठकर वो बीते 2 सालों के बारे में सोचने लगा। अयान के अलावा ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था इन पिछले दो सालों में जो खास हो। 

बहुत ही आम सी ज़िन्दगी हो गयी थी उन दोनों की। बिलकुल वैसे जैसे औरों की ज़िन्दगी थी।

जब इमरान घर पंहुचा तो अल्फिया हॉल में नहीं थी। अंदर से अयान के रोने की आवाज़ आ रही थी और अल्फिया शायद वहीं थी। इमरान अपना बैग रखने लगा तो उसकी नज़र वही मेज पर पड़ी चिट्ठी पर पड़ी। उसने उठाकर देखा तो वो अल्फिया के लिए थी। चिठ्ठी खुली हुई थी तो वो खोलकर पढ़ने लगा। भेजने वाले का नाम नंदिनी लिखा था पर नंदिनी नाम की तो कोई सहेली ही नहीं है अल्फिया की, तो फिर ये चिठ्ठी किसने भेजी। इमरान के मन में उत्सुकता बढ़ गयी। चिठ्ठी पढ़नी शुरू की तो ऐसा लगा जैसे की लिखने वाला अल्फिया को बहुत ही अच्छे से जानता है।

अब उसकी उत्सुकता बेचैनी में बदल गयी। उसने पूरी चिठ्ठी पढी तो उसकी बेचैनी गुस्से में बदल गयी। जब उसने ये पढ़ा की अल्फिया को वहाँ नहीं होना चाहिये तो उसके सब्र का बाँध टूट गया। मेज पर जो यूनिवर्सिटी में दाखिले के फॉर्म पड़े थे उन्हें देखने के बाद तो जैसे सैलाब ही आ गया। वो सब फॉर्म दिल्ली के कॉलेजों के थे। अगर ये चिठ्ठी भेजने वाल इतना ही जानता है अल्फिया को, उसके भले बुरे की इतनी चिंता है उसे तो फिर उसे ये कैसे नहीं पता की अल्फिया अपने इमरान से एक पल के लिए भी दूर नहीं रह सकती, अब बस हो गया। 

उसने अल्फिया को आवाज़ लगाई पर जब अंदर से कोई जवाब नहीं आया तो वो खुद ही चिठ्ठी और फॉर्म हाथ में लिए अंदर चला गया। चिठ्ठी और फॉर्म बिस्तर पर पटकते हुए जोर से बोला "मुझे कब बताने वाली थी दाखिला होने के बाद या डिग्री मिलने के बाद। " इमरान की तेज आवाज सुन अयान फिर से रोने लगा। अल्फिया ने उसे गोद में उठा लिया। इमरान के पास बहुत सारे सवाल थे पर अल्फिया की आँखों में उसे अपने सवालो के जवाब नहीं दिख रहे थे। बल्कि उसे उसकी आंखों में सवाल ही दिख रहे थे। ऐसे सवाल शायद जिनका जवाब उसके पास भी नहीं था। अब उसके लिए एक पल भी वहाँ रुकना मुश्किल हो रहा था क्योंकि अगर वो वहाँ रुका तो वो खुद को सवाल पूछने से रोक नहीं पाएगा पर शायद फिलहाल सही समय नहीं है इन सब बातों का, इसलिए वो चुपचाप वहाँ से निकला और घर से बहार सड़क पर चला आया। 

कुछ देर वो वही खड़ा रहा। फिर बाहर यूँ ही सड़क पर निकल गया। उसे अपने गुस्से को किसी तरह शांत करना था। ये बात वो अच्छी तरह जानता था की उसके गुस्से से क्या हो सकता था। गुस्सा आना उसके लिए कोई नयी बात नहीं थी पर ऐसा पहली बार हुआ था की उसे अल्फिया पर गुस्सा आया हो। आज से पहले जब भी उसे गुस्सा आया था तब किसी न किसी के हाथ पैर जरूर टूटे थे। वो कभी भी नहीं चाहेगा की अल्फिया को गुस्से को झेलना तो दूर, देखना भी पड़े इसलिए वो चुपचाप वहाँ से निकल आया। वो अल्फिया और अपने बचपन याद कर रहा था। इमरान चलते चलते अल्फिया के घर के सामने पंहुचा और घर के सामने सड़क के दूसरी पार खड़ा होकर देखने लगा।

कितनी यादें जुडी थी दोनों की यहाँ से। कैसे जब एक बार गर्मी की छुट्टियों में अल्फिया को मेहँदी लगाई थी। अल्फिया तो मेहँदी देख कर खुश हो गयी थी पर वो मेहँदी कितनी ख़राब लगी थी ये कोई भी देख कर बता सकता था। कोई अल्फिया का मजाक न उड़ाये इसलिए उसने ज़िद करके अपने हाथो में भी मेहँदी लगवा ली थी। अल्फिया ने अपनी तरह ही सुन्दर मेहँदी लगाई थी पर सबने इस बात पर ध्यान दिया ही नहीं। कितना मजाक उड़ाया था उसका पर वो फिर भी खुश था क्योंकि अगर किसी ने अल्फिया से कुछ कहा होता तो वो सह नहीं पता। 

फिर वो आगे चल दिया। उसे याद आया की जब स्कूल से लड़कों का ग्रुप राजस्थान घूमने गया था तो वो अल्फिया के लिए सबसे छुपाकर चूड़ियाँ लाया था, हरे रंग की। अल्फिया जयादातर लाल रंग के ही कपड़े पहनती थी। उस पगली को ये लगता था की इमरान को लाल रंग सबसे अच्छा लगता है। इमरान को लाल रंग नहीं बल्कि लाल रंग पहनने वाली अल्फिया पसंद थी। वो चूड़ियाँ लगती भी बहुत सूंदर थी उस पर। ज्यादा पहनती नहीं थी वो उन्हें, कहती थी की कांच की चूड़िया है जो उसका इमरान उसके लिए लेकर आया था अगर टूट गयी तो ? दूसरी कहाँ से लाएगी वो।  

चलते चलते वो अपने स्कूल के सामने पहुंच गया था। वही स्कूल जहाँ आना उसे सिर्फ इसलिये पसंद था क्योंकि अल्फिया से मिलने के लिए उसे किसी और बहाने की जरुरत नहीं पड़ती थी। इमरान वही बगल में रखी बेंच पर बैठ गया। कॉलेज के दिनों में कैसे जब वो अपनी सहेलियों के साथ उसके पास से गुजरती थी तो जान बूझकर अपना दुप्पटा हवा में लहराते हुए चलती थी। जब वो दुप्पटा इमरान के चेहरे को छूकर गुजरता था तो जो उसमें सोंधी सी खुशबू होती थी, मन करता था के हाथ बढ़ा कर पकड़ ले। ऐसे ही जब एक बार वो निकल रही थी तो एक लड़के ने अपने दोस्त से कहा था, कैसी लड़की है भला अपना दुप्पटा तक तो संभाल नहीं सकती। फिर सब कहेंगे की लड़कियों की कोई इज़्ज़त नहीं करता। अपनी इज़्ज़त तो वो खुद हवा में लहराते चलती है।

ये सुनकर अपने गुस्से कर काबू नहीं कर पाया था। उसे ज्यादा तो नहीं मारा था क्योंकि उसके दोस्तों ने पकड़ लिया था उसे पर वो एक मुक्का जो मारा था उसी से उसकी नाक टूट गयी थी। 

उसने अपने बालो में हाथ फेरा और आसमान की तरफ देखने लगा। फिर मन ही मन खुद से ही सवाल पूछने लगा और उन सवालों के जवाब भी देने लगा। 

"अल्फिया भला कब से मुझसे कुछ छुपाने लगी ?"

"उसने कुछ छुपाया थोड़े था। अगर छुपाती तो वो चिठ्ठी मुझे वहाँ थोड़ी न मिलती।"

"ठीक है छुपाया नहीं, पर कुछ बताया क्यों नहीं ?"

"बताती तो तब जब मैं कुछ सुनता। याद कर आखिरी बार अल्फिया से कब मैंने कुछ बात की हो। जब भी बात करते हो तो बस अपने कपड़ों के बारे में नहीं तो फिर खाने के बारे में। इसके अलावा जब भी कोई बात होती है तो वो अयान के बारे में ही होती है। "

"सही कहा उसने बताया था एक बार की वो अखबार के लिए शायरी या वैसा ही कुछ लिखती है। हाँ याद आया नंदिनी नाम भी बताया था उसने एक बार पर अब वो अचानक लिखने को लगी ? पहले तो कभी नहीं लिखती थी।"

"पहले उसके पास वक़्त कहाँ रहता था। पहले पूरा दिन मेरे पीछे घूमने से फुरसत ही कहा मिलती थी उसे। "

"और उसने लाल रंग पहनना क्यों बंद कर दिया ? उसे पता है न की लाल रंग कितना पसंद है मुझे ?"

"मैं वही हूँ न जो थोड़ी देर पहले कह रहा था की मुझे लाल रंग नहीं बल्कि उसे पहनने वाली पसंद है।"

"हाँ ठीक है, लाल रंग है मेरा पसंदीदा पर उसने पहनना बंद क्यों कर दिया ?"

"क्योंकि जिसके लिए पहनती थी उसने देखना बंद कर दिया। याद है पहले कहा करते थे की दुल्हन को नज़र लग जाएगी काला टीका लगा लो। दुल्हन बनने के बाद कब टीका लगाया है तुमने ?"

"सही बात है सब मेरी ही गलती है। दफ्तर और वहाँ का काम सब नया था मेरे लिए इसलिए कभी ध्यान ही नहीं दिया मैंने इस बात पर। "

"दफ्तर भी नया है और शादी भी। मेरे लिए भी और अल्फिया के लिये भी। "

"अब बस, मैं और मेरी अल्फिया बिलकुल वैसे ही रहेंगे जैसे पहले रहा करते थे। उसकी दुनिया मैं और मेरी वो। हमारी दुनिया में ऐसी किसी चीज के लिए कोई जगह नहीं जो हमें एक दूसरे से दूर ले जाए। न मेरे काम की न उसे लिखने की।"


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