चुनावी मुद्दा
चुनावी मुद्दा
केलाग्राम गाँव की किस्मत अच्छी थी। उसे एक अच्छे और ताकतवर सांसद ने गोद ले रखा था।
उनके प्रयास से गाँव का सर्वांगीण विकास हुआ था। किसी को कोई खास शिकायत नहीं थी। हरित पार्टी और पीत पार्टी के नेताओं को समझ में नहीं आ रहा था।
आने वाले चुनाव में स्थानीय मुद्दा क्या हो सकता है। मुद्दों का जैसे अकाल पड़ा था। यहाँ तक कि हरित दल के नेता मजनूँ और पीत दल के नेता महीवाल इस विषय पर आपस में चर्चा कर चुके थे। चुनाव की गहमा गहमी शुरू हुई। नेतागण सभाएं करने लगे।
पहले दिन विकास और समृद्धि की बातें हुईं। दूसरे दिन से ही व्यक्तिगत चरित्र हनन शुरू हो गया। पार्टियों के कुछ कार्य कर्ताओं को शोध का काम दिया गया कि वे उनकी विरोधी पार्टी के नेता के खिलाफ नित नये आरोप और गालियां खोज कर लाये। कुछ दिनों में रैलियों में गालियों की प्रतियोगिता सी हुई किन्तु नेताओं को अभी मज़ा नहीं आ रहा था।
हरित पार्टी की अगली रैली में धमाका हुआ। पार्टी के नेता मजनूँ ने महीवाल और पीत पार्टी पर आरोप लगाया, “भाइयो-बहनो, अब वे हमारे मृत रिश्तेदारों और अज़ीज़ों की रूहों को गाँव से बाहर भगाने की साजिश रच रहे हैं। इनकी शह पर मंदिर का पुजारी रोज रात को 11 बजे ज़ोर-ज़ोर से मंत्र जाप करता हुआ कब्रिस्तान के रास्ते से गुजरता है। इस तरह वहाँ सोये हुए लोगों की नींद में खलल डालता है।
अगले दिन महीवाल ने अपनी रैली में जवाब दिया, “वे हम पर रूहों को भगाने की साजिश का आरोप लगाते हैं। हकीकत कुछ और है। गाँव की भुतहा हवेली से सब परिचित हैं। हमारे पुरखे जो भूत बने हैं उसमें डेरा डाले हैं इसलिए कि इस गाँव से उन्हें प्यार है। ये उनको वहाँ से भगाना चाहते हैं। हमारे कुछ कार्यकर्ताओं ने कल आधी रात को हवेली के नजदीक एक तांत्रिक को पकड़ा जो इनकी पार्टी का सदस्य निकला।
फिर तो यह भूत और रूह वाला मुद्दा खूब उछाला गया। चुनाव सम्पन्न हुआ। इस बार एक निर्दलीय जीता। लेकिन नेताओं ने और जनता ने चुनावी खेल का मज़ा तो पूरा लिया।