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अचानक

अचानक

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उस लड़की का नाम राखी था. अपने यारों-दोस्तों में वह राखी सावंत की तरह ही प्रसिद्ध थी. खूब बात-चीत करती और सारा दिन खिलखिलाकर हंसती रहती. हिरनी की तरह सारे कैंपस में इधर से उधर फुदकते उसे कहीं भी देखा जा सकता था. एक मिनट में यहाँ और दूसरे मिनट वहां. उसी के साथ एक लड़का, जिसका नाम सुशील था, भी पढ़ता था. दोनों जवाहरलाल यूनिवर्सिटी में पोलिटिकल साइंस में एम्.फिल. के स्टूडेंट थे.

सुशील एक Reserve-nature का लड़का था और अपनी पढ़ाई के प्रति काफी गंभीर रहता था. परन्तु राखी का बेबाक, खुला स्वाभाव उसे बहुत पसंद था. जब भी राखी उसे मिलती तो पहले तो खूब हंसती, हाल-चाल पूछती, फिर कोई-न-कोई कटाक्ष करती और हंसते हुए निकल जाती. सुशील बस उसे जाते हुए देखता रहता और मन ही मन खुश होता रहता.

एक दिन वह Department के बाहर खड़ा कुछ सोच रहा था कि न जाने कहाँ से राखी वहां आ गयी. उसने आते ही हँसते हुए उससे कहा,

“वाह ! क्या बात है?! ब्लू जींस, चेक वाली shirt !! बड़े smart लग रहे हो...डेटिंग पर जा रहे हो क्या ?”

“नहीं...नहीं. but थैंक्स.”

“Thanks ! For what?”

“मेरी तारीफ़ करने के लिए...”

“देखो, तारीफ़ करने का ये मतलब नहीं है कि तुम अपने को शाहरुख़ खान समझने लगो.” ये कहकर उसने अपनी बांयी आँख दबा दी और फुर्र से हँसते हुए भाग गयी.

ऐसे कटाक्ष करना उसका रोज़ का काम था. एक-न-एक उसका शिकार बन ही जाता.

सुशील सिर्फ हंस कर रह गया.

धीरे-धीरे वो उसे अच्छी लगने लगी थी. वो उसकी एक झलक पाने को बेताब रहता और जब भी वह उसके पास से गुज़रती या उससे बातें करती तो उसके दिल में कुछ-कुछ होने लगता था. एक दिन जब वह लाइब्रेरी में बैठा नोट्स बना रहा था, राखी भी वहां आ पहुंची. आते ही बोली,

“वाह, क्या बात है ? पढ़ाई हो रही है !”

सुशील ने उसकी तरफ देखा और अपनी ऊँगली मुंह पर रख कर उसे चुप रहने या फिर धीरे बोलने का इशारा किया. वो हंसने लगी. उसे हँसता देख सुशील उठा और उसका हाथ पकड़ कर लाइब्रेरी से बाहर ले आया.

“क्या बात है ?” राखी ने सवाल किया.

“तुम देख नहीं रही हो, ये लाइब्रेरी है. लोग पढ़ रहे हैं. तुम्हारा घर नहीं है ये.”

“ये लोग जो पढ़ने का नाटक कर रहें हैं, कहीं नहीं जाने वाले. मैं कहती हूँ, इनका कुछ नहीं होने वाला....और तुम्हारा भी नहीं.”

“तो क्या पढ़ना-लिखना सब बेकार है ?”

“हाँ, कुछ होने के लिए ये चाहिए....और ये भी.” उसने पहले अपने दिल की तरफ, फिर माथे की तरफ इशारा करते हुए कहा.

“तो फिर तुम यहाँ क्या करने आई हो ?”

“मैं तो बस मज़े लेती हूँ....time पास...और मुझे देखना, एक दिन तुम सबसे पहले, सबसे आगे निकल जाउंगी.”

“ठीक है बाबा, अब जाओ.” सुशील ने प्रार्थना भरे लहजे में कहा.

राखी ने मुस्कुराकर अपनी बांयी आँख दबा दी फिर बोली,

“ऐ पढ़ाकू मास्टर, मेरे लिए भी नोट्स बना दे.”

“हाँ, बना दूंगा, अब जाओ.”

 

कुछ दिनों बाद जब वो पार्क में बैठा था तो राखी ने चुपके से पीछे से आकर उसकी आँखों पर अपनी हथेलियाँ रख दी. अचानक अपनी आँखें बंद हो जाने से वो सकपका कर बोला,

“कौन है ?”

राखी ने कोई जवाब नहीं दिया और दबी-दबी हंसी के साथ हंसती रही. सुशील समझ गया था कि वो राखी ही है.

“राखी, छोड़ो....कोई देख लेगा तो क्या कहेगा...?”

राखी ने तुरंत अपना हाथ उसकी आँखों से हटाये और उसके सामने आकर बोली,

“कोई कुछ भी कहे, मैं किसी से नहीं डरती.”

“इसमें डरने की बात नहीं, शिष्टाचार की बात है.” सुशील ने उसे समझाते हुए कहा.

वह चुप होकर कुछ सोचने लगी, फिर थोड़ी दूर बैठकर उसे अपलक देखती रही. जब सुशील से सहन नहीं हुआ तो उसने कहा,

“क्या है ? ऐसे क्यूँ देख रही हो ?”

पहले तो वह चुप रही, फिर तपाक से बोली,

“मुझे तुमसे मुहब्बत हो गयी है.”

“क्या बकवास करती हो ?” सुशील ने तुनक कर पूछा.

“मेरी मुहब्बत को बकवास कहते हो...” उसने धीरे से पूछा.

“राखी मैं जानता हूँ कि तुम कितनी serious हो....नोट्स लेने के लिए प्यार का नाटक करना ज़रूरी नहीं, वो तो मैं वैसे भी दे दूंगा.”

“हाँ, हाँ ठीक है...वैसे भी तुम्हारी शक्ल ऐसी नहीं है कि कोई तुमसे प्रेम करे !!”

और ये कहकर वो फिर से हंसने लगी. उसे इस तरह हँसता देख सुशील ने थोड़े गुस्से से उसकी तरफ देखा तो वह उठकर चलने लगी.

“राखी, अपनी ये आदत छोड़ दो.” सुशील ने कहा.

“कौन सी ?”

“लोगों को सताने की...उनका मज़ाक बनाने की...नहीं तो...”

“नहीं तो...?”

“नहीं तो कोई मर्डर कर देगा....किसी दिन.” सुशील ने चेतावनी भरे अंदाज़ में कहा.

“हूँह...मर्डर....देखेंगे.” राखी ने उतनी ही लापरवाही से जवाब दिया और तेज़ी से चल पड़ी.

सुशील उसे जाते हुए देखता रहा. उसे राखी की इस तरह की आदतें बिलकुल भी पसंद नहीं थी फिर भी न जाने क्यूँ वह उसे जाते हुए देखता रहा....और धीरे-धीरे वो उसके दिल में उतरती चली गयी. कुछ दिनों बाद उसे भी लगने लगा था कि वो भी उसे प्रेम करने लगा है. पहले तो उसकी राखी से बात करने की हिम्मत नहीं हुई परन्तु जब प्रेम का दंश अधिक सताने लगा, तो उसे लगा कि अब राखी को अपनी भावना से अवगत कराने का समय आ गया है अन्यथा वो कोई काम नहीं कर सकेगा.

और एक दिन उसने राखी को रास्ते में रोक कर अपनी बात कह दी.

सुशील की बात सुनकर राखी बहुत देर तक हंसती रही. यहाँ तक की हँसते-हँसते उसकी आँखों से पानी छलकने लगा. सुशील हक्का-बक्का सा उसे देखता रहा जैसे उसने कोई ग़लती कर दी हो.

“हो सकता है !” सुशील ने अपने आप से कहा.

परन्तु यदि ग़लती भी है तो भी राखी को इस तरह उसका मज़ाक उड़ाने का कोई अधिकार नहीं है. यदि उसे पसंद नहीं है, तो साफ़ मना कर सकती है, उसने सोचा.

“मैं तो पहले से ही जानती थी....यही होना था.” राखी ने अपनी आँखों से पानी पोंछते हुए कहा.

“वो कैसे ?” सुशील ने गंभीर होकर पूछा.

“तुम लड़कों का कोई दीन-ईमान नहीं होता. तुम लोगों को बस लड़कियों की एक नज़र, एक मुस्कराहट का इंतज़ार रहता है और बस तुम लोग धड़ाम से गिर पड़ते हो.” उसने बेबाकी से कहा.

सुशील को उसकी ये अदा पसंद नहीं आई. परन्तु कहीं न कहीं उसे भी लगा था कि वो ठीक कह रही है क्योंकि कैंपस में जिस तरह से लड़के लड़कियों के पीछे दुम हिलाते घूमते थे उससे तो यही सिद्ध होता है कि राखी ठीक ही कह रही है. वह सोच ही रहा था कि राखी की आवाज़ फिर से गूंजी.

“चल, ज़्यादा मत सोच. प्यार करता है तो नखरे भी उठा....कुछ चाय, कॉफ़ी, नाश्ता करा...नोट्स दे और थीसिस पूरी करने में help कर.”

“हाँ, चलो चाय पीते हैं.”

उस दिन के बाद दोनों साथ-साथ घूमते, कैंटीन जाते, लाइब्रेरी में नोट्स बनाते और एक दूसरे से खूब गप्प लड़ाते. अधिकतर राखी बोलती और वो सुनता रहता. वो हंसती रहती और सुशील उसे देखता रहता. वैसे सुशील उसके साथ खुश था. जिस दिन राखी उसे नहीं मिलती, उसका दिन कटना मुश्किल हो जाता, रात की नींद ग़ायब हो जाती और वह बेचैन हो जाता.

 

अचानक राखी कुछ दिनों तक डिपार्टमेंट में नहीं आई. पूरा हफ्ता गुज़र गया परन्तु वह कहाँ गयी है कुछ पता नहीं चला. सुशील ने उसकी सहेलियों से पूछा लेकिन उन्होंने भी अनभिज्ञता ज़ाहिर की. उसने कई बार उसका फोन Try किया लेकिन वो भी Switch-off था.

अगला हफ्ता शुरू हो गया था. डिपार्टमेंट जाते ही उसे राखी के दर्शन हो गए. वैसे क्रोध की वज़ह से उसका mood बहुत खराब था परन्तु उसने अपने आप पर काबू किया और पूछा,

“कहाँ चली गयी थी अचानक ? बिना बताये !?”

वह खिलखिलाकर हंसी और बोली,

“भाग गयी थी, अपने यार के साथ.”

उसका ज़बाब सुनकर सुशील का शरीर जैसे सुन्न हो गया. इससे पहले वो कुछ बोले, राखी ने फिर से कहा,

“क्यूँ, कैसा लगा मेरा ज़बाब ?”

उसके इस कटाक्ष ने सुशील का दिमाग़ गर्म कर दिया.

“राखी इतना मत बोल, ज़बान संभल वर्ना....”

“वर्ना...?” राखी ने पलट कर पूछा और आँख मार दी.

“वर्ना कोई मर्डर कर देगा.”

“छोड़, चल चाय पिला और कुछ खिला...”

फिर दोनों कैंटीन की तरफ चल पड़े. राखी तेज़-तेज़ कदमों से और सुशील धीरे-धीरे चल रहा था. वो पहले की तरह स्वछन्द थी और सुशील गंभीर था. उसे गंभीर देख कर भी राखी ने उससे एक बार भी नहीं पूछा कि वो गंभीर क्यूँ है, या फिर उससे नाराज़ तो नहीं है. राखी की ये लापरवाही सुशील को आहत कर गयी थी मगर फिर उसने उसको अनदेखा कर दिया.

कैंटीन पहुँच कर सुशील ने चाय का order दिया. कुछ देर तक दोनों के बीच चुप्पी छाई रही. फिर अचानक राखी ने उससे पूछा,

“क्यों सुशील तुम हॉस्टल में क्यूँ नहीं रहते ?”

“यहाँ पढ़ाई नहीं हो सकती, मैं अपनी तरह का अलग आदमी हूँ इसलिए अलग कमरा लेकर रहता हूँ.”

“क्या कभी-कभी मैं तुम्हारे कमरे पर आ सकती हूँ ?”

“हाँ,हाँ, क्यूँ नहीं...You are most welcome!”

“तुम्हारा मकान मालिक ऑब्जेक्शन तो नहीं करेगा?”

“नहीं, नहीं वो ऐसा आदमी नहीं है...”

“अच्छा.”

“राखी, ये तुम्हारे ऊपर है, इस दुनिया को जैसा तुम दोगे, वैसा ही पाओगे...तुम अच्छे, तो सब अच्छे. और तुम बुरे तो दूसरे बहुत बुरे हो जाते हैं....”

“ठीक है, ठीक है, ज्यादा फिलोसोफी मत झाड़ो...मुझे पता है.” राखी ने उसे बीच में टोकते हुए कहा.

 

अगले दिन रविवार था. सुशील खूब दिन चढ़े तक सोता रहा था कि अचानक दरवाज़े पर खट-खट हुई और उसकी आँख खुल गयी. उसने अलसाई आँखों से दरवाज़ा खोला तो चौंक गया. सामने राखी खड़ी थी.

“अरे, अभी तक सो रहे हो? Sorry, तुमको डिस्टर्ब कर दिया.”

“नहीं-नहीं, sorry की कोई बात नहीं, मैं बस उठने ही वाला था... आओ, अन्दर आ जाओ.”

राखी अन्दर आ गयी और बैठते ही बोली,

“नाश्ते का क्या इंतज़ाम है ?”

सुशील को बड़ा अजीब महसूस हो रहा था. आजतक पहले उसके room पर कोई लड़की नहीं आई थी और उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो राखी का स्वागत कैसे करे. नाश्ता वो अक्सर बाहर ही करता था और राखी ने बड़ी बेतकल्लुफ़ी से नाश्ते के बारे में पूछ लिया था.

“हाँ....तुम बैठो....मैं fresh हो लेता हूँ...फिर नाश्ते के लिए बाहर चलेंगे.”

“तुम fresh हो जाओ, मगर मैं नाश्ता यहीं करुँगी.” राखी ने जवाब दिया.

“ठीक है...मैं दुकान से ले आऊंगा.”

Fresh होने के बाद सुशील बाहर से खाने-पीने की चीज़ें- बिस्कुट, नमकीन, ब्रेड-पकोड़े आदि ले आया था. खाते-खाते राखी ने बोला,

“सुशील, थीसिस submit करने में सिर्फ तीन महीने रह गए हैं और मैंने अभी तक एक शब्द भी नहीं लिखा है...मेरा ये काम तुम्हें करना है. इसलिए मैं यहाँ आई हूँ.” राखी ने स्पष्ट शब्दों में बिना लाग-लपेट के कहा.

राखी की स्पष्टता से सुशील एक बार फिर चौंक गया.

“क्या कहती हो ? तुम्हारी थीसिस मैं कैसे लिख सकता हूँ?”

“देखो, मुझे कुछ पता नहीं. मैं ये सब नहीं कर सकती....थोड़ा बहुत help कर सकती हूँ....बस.”

आगे सुशील कुछ नहीं बोला. उसे चुप देखकर राखी ने उसकी आँखों में आँखें डालकर बड़े अंदाज़ से पूछा,

“मुझे प्रेम करते हो ?”

सुशील के पास हाँ करने के अलावा कोई चारा नहीं था.

“हाँ.” उसने जबाब दिया.

“मिस्टर, प्यार करने वालों ने पहाड़ खोद कर नदियाँ बना डाली, सूली पर चढ़े और तुम एक अदद थीसिस भी नहीं लिख सकते?”

“क्या तुम वास्तव में मुझे प्रेम करती हो ?” सुशील ने कुछ ऐसे अंदाज़ में पूछा जैसे अभी तक उसे यकीन नहीं था की राखी उसे वास्तव में प्रेम करती है या सिर्फ मज़ाक.

राखी मुस्कुराई और खड़ी होकर अपनी बाहें फैलाकर आँखें बंद करके बोली,

“मैं तुम्हारी हूँ.”

सुशील उसे अपलक देखता रह गया. राखी अपनी बांहें फैलाए वैसे ही आँखें बंद करके पत्थर की मूर्ति की तरह खड़ी रही. उसकी तरफ से खुला निमंत्रण था और किसी को भी विचलित कर सकता था. सुशील से रहा न गया. वह उठा और उसे अपनी बाहों में भर लिया.

उसके बाद राखी का उसके room पर आने-जाने का सिलसिला चल पड़ा. वह बेरोकटोक आती और कभी रात को भी वहीँ रुक जाती. सुशील उसके लिए चाय, कॉफ़ी, नाश्ता और खाना बनाता. वो खा-पी कर सो जाती और सुशील रात-रात भर जाग कर उसकी और अपनी थीसिस का काम करता रहता.

इस बीच दोनों में शारीरिक संबंध भी हो गए थे. हांलांकि सुशील नहीं चाहता था कि वो कुछ ऐसा करे जिससे बाद में पछताना पड़े परन्तु राखी को जैसे किसी की परवाह नहीं थी. एक दिन सुशील ने राखी से कहा,

“राखी, हमारे बीच जो नहीं होना चाहिए था वो हो रहा है. मुझे अच्छा नहीं लगता....मैं चाहता हूँ कि एम् .फिल. करते ही हम शादी कर लें.”

उसकी बात सुनकर राखी खिलखिलाकर हंस पड़ी. फिर बोली,

“सुशील, तुम मेरे प्रेमी हो लेकिन शादी तो मैं किसी और से ही करुँगी.”

सुशील ने राखी की तरफ तिरछी नज़र से देखा और कहा,

“मज़ाक मत करो.”

“ये मज़ाक नहीं, सच है.” राखी ने उसी बेरुखी से जबाब दिया.

“मुझसे नहीं तो किससे शादी करोगी ? अब दूसरे के लिए बचा ही क्या है तुम्हारे पास ?”

राखी फिर से हंसने लगी. बहुत देर तक हंसने के बाद उसने हँसते-हँसते कहा,

“लड़कियां तो अलादीन का चिराग होती हैं....जितना मांगोगे उतना मिलेगा...कभी कम नहीं होता.”

सुशील असमंजस में था कि क्या कहे. थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोला,

“राखी, इतनी धृष्टता ठीक नहीं...ये बेवफ़ाई होगी...मैं तो एक बार को बक्श दूंगा लेकिन कोई और होता तो मर्डर ही कर देता.”

“छोड़-छोड़, चल थीसिस का काम करते हैं...”

 

उस दिन के बाद सुशील काफी गंभीर रहने लगा था. हांलाकि, अपनी और राखी की थीसिस को पूरा करने का काम वह पहले की तरह ही कर रहा था. एक दिन राखी ने उससे पूछ ही लिया,

“ऐ....इतना serious क्यूँ रहता है ? ये कद्दू की तरह फूला हुआ मुंह अच्छा नहीं लगता.”

सुशील ने कोई जबाब नहीं दिया.

“ये देख मैं तेरे लिए क्या लायी हूँ.”

सुशील ने उसकी तरफ देखा. उसके हाथों में एक पैकेट था. सुशील ने पैकेट अपने हाथ में लिया और खोल कर देखने के बाद कहा,

“जब तुझे मेरे साथ शादी नहीं करनी, तो फिर मेरे लिए ये shirt क्यों लायी हो ?”

“देख, शादी तो मैं किसी ऐसे आदमी से ही करुँगी जिसके पास बहुत पैसा हो, बड़ा घर हो, बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ हों...”

“तो फिर ये प्रेम का नाटक मुझसे क्यूँ ?” सुशील ने उसे बीच में टोकते हुए कहा.

“बस ऐसे ही, मस्ती के लिए.”

एक तरफ तो सुशील को उसकी स्पष्टवादिता अच्छी लगती थी परन्तु दूसरी ओर उसे लगने लगा था कि राखी उसका सिर्फ इस्तेमाल यानि शोषण कर रही है. और उसका दिमाग़  भन्ना गया था. ऐसे में इस बारे में और कुछ बात करेंगे तो कुछ ग़लत हो जायेगा, ये सोचकर उसने चुप रहना ही ठीक समझा.

दोनों की थीसिस समय पर तैयार हो गयी थी जिसे उन्होंने अंतिम तारीख से पहले ही डिपार्टमेंट में जमा करा दिया था. उस दिन राखी बहुत प्रसन्न थी.

“सुशील आज मैं तेरे room पर आ रही हूँ....तूने मेरा इतना बड़ा काम किया है...आज जो भी तू चाहेगा, वो ही मिलेगा...बता क्या चाहिए तुझे?” राखी ने हँसते हुए कहा.

कुछ देर तक सुशील उसकी ओर अपलक देखता रहा. फिर थोड़ा सोचकर बोला,

“एक लंबा सा चाक़ू !”

“लंबा सा चाक़ू ? क्या करेगा ?” राखी ने मुस्कुराते हुए उसी अंदाज़ से पूछा.

“तेरा मर्डर !!”

“छोड़ ये मर्डर-वर्डर की बात....सही-सही बता.”

“मैं सच कह रहा हूँ....मेरे room पर मत आना....कुछ भी हो सकता है.”

“सुशील, तेरा नाम ही सुशील है....तू किसी का मर्डर क्या करेगा?”

“देख राखी...बहुत हो गया...तेरी थीसिस submit हो गयी...अब मस्त रह...और मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूँ...मेरे room पर मत आना....”

और राखी वहां से हंसती हुई चली गयी.

 

उस दिन ठण्ड बहुत थी. शाम से ही कोहरा छाने लगा था और सड़कों पर लोगों की आवाजाही कम हो गयी थी. ठण्ड की वज़ह से लोग जल्दी ही घरों में दुबक गए थे. थीसिस submit करने के बाद सुशील भी काफी राहत महसूस कर रहा था. पहले वह भी आउटिंग के लिए बाहर जाना चाहता था, लेकिन इतनी ठण्ड में उसकी हिम्मत नहीं हुई और दरवाज़ा बंद करके रजाई में घुस गया. जब दरवाज़े पर किसी ने खटखटाया तो उसको उठना पड़ा. दवाजा खोला तो देखा सामने राखी खड़ी थी.

“अरे तुम?! मैंने मना किया था....” सुशील ने थोड़ा गंभीर होकर कहा.

“तुम्हारे मना करने से क्या होता है ? राखी ने कमरे में घुसते हुए कहा.

“लो, तुम्हारी चीज़ भी ले आई हूँ.” और राखी ने पॉलिथीन में लिपटी हुई कोई चीज़ उसके सामने रख दी.

सुशील ने पॉलिथीन को खोलकर देखा तो वह स्तब्ध रह गया. वो फटी-फटी आँखों से कभी राखी को और कभी उस लम्बे चमकते हुए चाक़ू को देख रहा था.

“स्टील का है...” राखी ने मुस्कुराते हुए कहा.

“हूँ...”

“अब इससे बढ़िया-बढ़िया सब्जी काटो और बढ़िया-बढ़िया खाना बनाओ....मौसम बहुत वैसा है...फिर ऐश करेंगे.” राखी ने अपनी बांयीं आँख दबाते हुए शरारत से कहा.

सुशील ने चाक़ू बेड की साइड में राखी टेबल पर रख दिया. फिर दोनों ने मिलकर खाना बनाया, खाया और बिस्तर में घुस गए.

रात के ग्यारह बज चुके थे. सुशील और राखी एक दूसरे की बाहों में थे. सुशील ने उसके कान में धीरे से कहा,

“राखी, आई लव यू.”

“I love you too....” राखी ने थोड़ा हिचकते हुए फुसफुसाकर जबाब दिया.

थोड़ी देर शान्ति छाई रही. फिर सुशील ने उसकी आँखों में कुछ देर तक कुछ ढूंढा और पूछा,

“मुझे प्रेम करती हो तो शादी से इंकार क्यूँ ?”

“ओह बाबा, बता तो दिया...प्रेम करने के लिए और इस काम के लिए तुम बहुत अच्छे हो...मगर शादी के लायक नहीं.” राखी ने धीरे से हँसते हुए जबाब दिया.

 

राखी के कहे हुए शब्द बहुत देर तक उसके कानों में गूंजते रहे. उसका दिमाग़ फटने को हो रहा था. उसने अपने आप को कण्ट्रोल करने की बहुत कोशिश की मगर.....

उसने टेबल पर रखा चाक़ू उठाया फिर राखी की तरफ देखा. राखी बेखबर सो रही थी. एक बार उसकी नज़र चाक़ू पर पड़ी जो उसके दायें हाथ में था, और अचानक.....

पूरी ताक़त से चाक़ू राखी की छाती में घोंप दिया.

उसके बाद उसे नहीं पता की कितने वार उसने राखी पर किये. जब उसे होश आया तो देखा पूरा बिस्तर राखी के खून से तर-बतर हो गया था....मगर वो पहले की ही तरह सो रही थी...आँखें बंद और निश्चिन्त.

वो मर चुकी थी.

सुशील सारी रात गुमसुम कुर्सी पर बैठा रहा. करीब तीन बजे वो उठा, कमरे का दरवाज़ा बहार से बंद किया और पुलिस-station जाकर सरेंडर कर दिया.

 

अगले दिन अखबार में खबर छपी थी, “निराश प्रेमी द्वारा प्रेमिका की हत्या.”

उसने अखबार पढ़कर एक तरफ रख दिया और आँखे बंद कर लीं.

 

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