समोसा पाँच हजार का
समोसा पाँच हजार का
भेदी कई दिन से काम पर नहीं आया तो छेदी की जिज्ञासा चिंता में बदल गई।
हालांकि वह स्वयं भी चार दिन के बाद नियमित आना शुरू किया है। उसके ऑफिस वालों से पूछने पर पता चला कि उसे पेट दर्द की परेशानी चल रही है इसलिए अभी कुछ दिन छुट्टी पर ही रहेगा। छेदी ने शाम को शीघ्रता से ऑफिस से निकलकर पहली वाली ट्रेन से घर जाने का निश्चय किया ताकि भेदी की खबर खुद ले सके।
मिलने पर छेदी ने देखा कि भेदी की काया टाइफाइड के मरीज जैसी हो गई है। हालचाल की बात हुई।
भेदी : उस दिन ऑफिस में मीटिंग होने के कारण लंच नहीं ले सका और फिर जब स्टेशन पहुँचा तो ट्रेन आने में देर थी तो चाय पीने बैठ गया ठलुआ की दुकान पर।
छेदी : वो चाय अच्छी बनाता है नाम भले कुछ भी है।
भेदी : वहाँ अपना रोगन भी था, समोसा पेल रहा था, जिद करके मेरे लिए भी एक ले आया।
छेदी : किस से, वहाँ तो स्टेशन पर सप्लाई करने वाले ठेकेदार की दुकान है, 10 रुपये के दो देता है।
भेदी : नहीं, रोगन होटल के कोने पर जो दुकान है उससे लाया था, कहने लगा, मानिकचंद बड़े समोसे बनाता है, हमेशा गर्म मिलते हैं और 5 रुपये का ही देता है।
छेदी : कैसा लगा... उससे बेहतर या खराब ?
भेदी : अरे, तुझे स्वाद की पड़ी है, यह नहीं पूछेगा कि क्या हुआ फिर ?
छेदी : तो क्या उसे खाने से ही पेट में दर्द होने लगा ?
भेदी : एक बार तो ट्रेन में ही बेचैनी सी हुई लेकिन मैं फटाफट घर पहुँचा, वहाँ मैंने कई बार बड़े घर (शौचालय) की परेड की, एक दो गोलियां भी खाली लेकिन फिर डॉक्टर के पास जाना पड़ा और रात भर वहीं गुजरी।
यूँ तो छेदी, भेदी की डाँट से बचने के लिए गुस्ताखी नहीं करता फिर भी कभी कभी मजाक फैंक देता है।
छेदी : यानी मानिकचंद बहुत बड़ा और पावरफुल समोसा देता है और वो भी 5 रुपये में ही। ताजे बनवाता होगा, भीड़ लगी देखता हूँ उस मोड़ पर... (सिर घुमाकर मुस्कुराते हुए)
भेदी : कैसे ताजे !, सुबह एक बार बनाते हैं सभी।
छेदी : नहीं भाई, दोपहर बाद कढ़ाई में समोसे तलते हुए देखे हैं कई बार।
भेदी : और आलू की चटनी कब बनी होती है... 10, 11 बजे की ! कल रोगन आया था, अपनी गलती के लिए पछतावा जता रहा था। उसने एक और राज बताया कि मानिक की दुकान अच्छी चलती है इसलिए साँझ की जल्दबाज-भीड़ की पूर्ति के लिए निकट के एक अन्य दुकानदार का बचा हुआ माल भी वह खपा देता है, ऐसा टाई अप कर रखा है दोनों ने। उनका पाँच रुपये का नुकसान नहीं होना चाहिये भले ही किसी उपभोक्ता का पाँच सौ रुपये का हो या फिर... (भेदी के मुख पर गंभीर रूप से भर्त्सना करने के भाव उभर आये )
छेदी : फिर तो बेचारा रोगन भी खाट पकड़ लिया होगा... भेदी : बिल्कुल फिट है रोगन, चकाचक। इसी बात का अफसोस कर रहा था कि वह तो अक्सर उसी के समोसे पेलता रहता है और एक डकार भी नहीं आती। यह हमें सूट नहीं कर सकता, ठीक उसी तरह जैसे बस्ती में सब लोग सप्लाई का पानी पीकर मस्त जी रहे हैं लेकिन राजधानी से आये बड़े लोगों को आर ओ का पानी भी अपच कर देता है।
छेदी : (भेदी को बात पूरी करने से पहले ही) इसका मतलब रोगन को पेट दर्द भी नहीं हुआ, उसे समोसा 5 का ही पड़ा !...
भेदी : सही कह रहे हो।
छेदी : और तुम्हें कितने का पड़ा... समोसा !
भेदी : पाँच हजार का।
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