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Pushpraj Singh

Abstract

4.9  

Pushpraj Singh

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पलाश के दो जुड़वा पेड़

पलाश के दो जुड़वा पेड़

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एक अंजान छोटे स्टेशन पर गाड़ी रुकी, राज चाय की चुस्कियाँ ले ही रहा था कि तभी उसकी पत्नी बोली, "देखो कितने खूबसूरत हैं वो पलाश के दो जुड़वा पेड़।"

राज ने नज़र उठाकर उन पेड़ों को देखा और तभी न जाने क्यों उसकी आँखें बेताबी से बोर्ड पर लिखे उस छोटे से स्टेशन के नाम पर जम गईं।

एक ठंडी हवा का झोंका कपड़े भेदकर उसके बदन को छू गया। एक जानी पहचानी मगर वर्षों पुरानी आवाज़ उसके कानों में गूंजने लग गई-

"तुम जब स्टेशन पर उतरोगे न तो सबसे पहले पलाश के दो जुड़वा पेड़ दिखेंगे, वहीं करीब ही मिठाई की एक दुकान है। वहाँ से घेवर लेते आना, बाबूजी को बहुत पसंद है। देखना कितने खुश हो जायेंगे। तुम बसंत के मौसम में ही आना, बसंत में पलाश के ये पेड़ सुर्ख़ लाल हो जाते हैं और बहुत दूर से ही दिखाई देने लगते हैं। वहाँ से ज्यादा दूर नहीं है मेरा घर, मेरे कमरे की खिड़की उसी तरफ खुलती है। मैं अक़्सर लाल पलाश के पेड़ों को और उसके पीछे गुज़रती रेलगाड़ियों को घंटों यूँ ही देखा करती हूँ। मैं तुम्हारी राह भी देखूँगी, तुम स्टेशन से आते वक्त सबसे पहले मुझे ही दिखोगे। सुनो, तुम पर मरून रंग बड़ा अच्छा लगता है तुम वही पहनकर आना। तुम मुझे देख नहीं सकोगे, मैं लाल लिबास में इसी पलाश की ओट से तुम्हें देखा करूँगी। ये पलाश तुम्हारे स्वागत में मखमली लाल फूलों की चादर बिछा देंगे।

ट्रेनिंग खत्म होते ही तुम बाबूजी से मिलने आना, ज़रा भी देर मत करना। घर में मेरी शादी की बातें आये दिन होती रहती हैं। राजे, तुम आओगे ना ?"

राज इस सवाल का जवाब याद कर ही रहा था कि तभी गाड़ी ने सीटी बजा दी। उसकी पत्नी ने कहा, "कहाँ खो गए थे ? ये छोटा सा कस्बा कितना खूबसूरत है और ये सुर्ख़ संजीदा पलाश एकदम मखमली चादर सरीख़े लग रहे हैं, है ना ?"

पत्नी की बात को पूरा करते हुए किसी वर्षों पुरानी याद में खोए राज के मुख से अनायास ही निकल पड़ा, "बसंत में ये पलाश के पेड़ सुर्ख़ लाल हो जाते हैं और काफी दूर से ही दिखाई देने लगते हैं, वहीं करीब ही मिठाई की .........."

अपनी बात को पूरा कर पाता इससे पहले ही राज ने ठंडी हुई चाय के कप को होठों से लगा लिया। उसकी डबडबाई आँखों को कोई देख न ले इसलिए खिड़की से बाहर की ओर देखने लगा।


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