ब्रेकिंग न्यूज़
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[विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिंदी कहानी प्रतियोगिता 2012 में प्रथम पुरस्कार प्राप्त कहानी]
आज बिरजू बहुत हताश है। सीधा सा ग्रामीण युवक बिरजू अपनी तरंग में एक सुनसान
सड़क पर चला जा रहा है- दिशाहारा सा। वह दुखी और परेशान ज़रूर है लेकिन उसके चेहरे
पर आत्मविश्वास की परछाईं भी झलक रही है। सड़क चौड़ी और सुनसान है। कुछ देर पहले
उसने एक बड़ा चौराहा पार किया है। चौराहे पर बरगद के पेड़ के नीचे लगे हैंडपंप से उसने
अपनी प्यास भी बुझाई थी। लेकिन अपनी हताशा के चलते वह चौड़ी सुनसान सड़क पर
निरुद्देश्य आगे बढ़ता गया। उसकी चाल में ही जैसे उसकी निरुद्देश्यता झलक रही है। किंतु
बिरजू के कदमों में जैसे ब्रेक लगा- अरे ! यह कौन? इतनी धूप में !!! इस तरह !!!
सड़क के किनारे अधलेटे से एक विक्षिप्त या पागल व्यक्ति पर बिरजू की दृष्टि पड़ी और
उसी पर गड़ गई। वह व्यक्ति अधेड़ था। बिरजू यह अनुमान न लगा पाया कि वह पागल है
या मानसिक रूप से रोगी या कोई और! लेकिन बिरजू उसके पास गया ज़रूर। शायद अपनी
निरुद्देश्यता को दूर करने का कोई सार्थक कारण बने अथवा सहज जिज्ञासा के वशीभूत
होकर ही वह पागल के निकट गया। पागल के पास फटी-पुरानी- सड़ी पोटलियों में बहुत सा
कूड़ा-कबाड़ा जमा था। हालाँकि बिरजू बड़ी सतर्कता से उसके निकट गया था लेकिन पागल ने
उस पर कोई ख़ास ध्यान न दिया। पर जब बिरजू उसके बिलकुल करीब आ गया तो वो कुछ
सशंकित दिखाई दिया।
पागल को सशंकित देखकर बिरजू वहीं ठहर गया। उसे लगा कि पता नहीं पागल किस दर्ज़े
का पागल है! बिरजू के रुक जाने से पागल अपने में फिर खो गया। बिरजू ने उसके सामान
पर नज़र डाली। कोई भी सामान काम का नहीं था और पागल के पास उस सामान का कोई
अर्थ भी नहीं था, सिवाय एक चीज़ के। दस-बारह सालों से पुजारी का काम करने वाले बिरजू
की नज़र पागल के पास बड़े जतन से रखे हुए एक काले गोल पत्थर पर पड़ी। उसे देखते ही
बिरजू की आँखों में एक लपक उठी। अरे! यह तो....। ग़ौर से देखने पर उसे पत्थर पर एक
तिरछी भूरी लाइन भी दिखाई दी। "जय बाबा भोलेनाथ"- बिरजू का धार्मिक मन स्वयं ही
श्रद्धा से झुक गया। उस पत्थर को देखते हुए बिरजू को पागल ने शंका से देखा और सुरक्षा
के लिए उसे अपने हाथों से ढँक लिया। पागल के इस रुख़ से बिरजू आगे बढ़ गया।
लेकिन बिरजू को चैन नहीं था। वह अनिश्चितता में कुछ सोचकर लौट आया। वह अपने
झोले से रोटियाँ और प्याज निकालता है और पागल को देता है। भूखा पागल तेज़ी से रोटियाँ
खाता है। बिरजू उसके पास बैठ जाता है। पागल को खाने में तल्लीन देखकर बिरजू उस
पत्थर को सहमते हुए हाथ लगाता है। लेकिन यह क्या? पागल एक झटके से बिरजू का हाथ
झटक देता है। बिरजू सहमकर उठ जाता है और जाने लगता है।
पागल रोटी खाकर वहीं लेट जाता है और सो जाता है। कुछ देर बाद बिरजू वापस आता है
और दबे पाँव पागल के पास आकर उसका पत्थर उठा लेता है और चुपके से चौराहे की ओर
निकल जाता है।
बिरजू उस सुनसान चौराहे के किनारे लगे बरगद के पेड़ के नीचे बैठ जाता है, जहाँ एक
सरकारी हैंडपंप लगा है। बरगद के तने में रंगीन धागे लिपटे हैं, जिन्हें गाँव की औरतें पूजा
करते समय बाँध जाती हैं। यह चौराहा हाइवे पर है, इसलिए इस पर बड़ी गाड़ियों का आना-
जाना लगा रहता है।
बिरजू ने उस पत्थर को पानी से धोया और श्रद्धा से उसे बरगद के चारों ओर बने छोटे से
चबूतरे पर रख दिया। अब वह एक पत्थर नहीं रह गया था- वह शिवलिंग बन गया था।
दोनों हाथ जोड़कर बिरजू ने पूरी आस्था और तन्मयता से सस्वर शिव तांडव स्तोत्र का पाठ
किया-
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वय
चकार चण्ड्ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||
हैंडपंप से जल लेकर बिरजू ने शिवलिंग का जलाभिषेक किया और स्वय़ं पानी पीकर एक
किनारे बैठ गया। अब उसके चेहरे पर हताशा-निराशा का रंचमात्र अंश भी नहीं था। भोलेनाथ
ने जैसे उसका आत्मविश्वास लौटा दिया था। आश्वस्त बैठे हुए बिरजू को झपकी लग गई।
कुछ देर बाद एक ट्रक वाला उधर से गुजरा और पानी पीने के लिए रुका- साथ में उसका
क्लीनर भी उतरा। उन्होंने पत्थर को शिवलिंग समझा और "जय भोलेनाथ" कहकर जेब से
पाँच रुपए का सिक्का निकालकर चढ़ा दिया। बिरजू ने अधखुली आँखों से यह दृश्य देखा।
ट्रक वाले के जाने के बाद बिरजू ने शिवलिंग को प्रणाम किया और सिक्का उठा लिया। उसके
चेहरे पर असीम श्रद्धा का भाव जगा। उसी श्रद्धा से अभिभूत होकर उसने पत्थर के चारों
ओर ठीक तरह से सफ़ाई कर दी। अब वह पत्थर पागल का पत्थर न था, वह शिवलिंग में
परिवर्तित हो चुका था, जिसका रखवाला था बिरजू पंडित!
कुछ देर बाद दूसरी ओर से एक कीमती कार आकर रुकी। उसका ड्राइवर पानी लेने के लिए
हैडपंप पर आया। वह कार में पानी डालता है। उसके साथ एक अधेड़ औरत है जो शायद
उसकी माँ है। माँजी वहाँ आकर हाथ मुँह धोती हैं और पानी पीकर शिवलिंग पर श्रद्धा से
पचास रुपए का नोट चढ़ाती हैं। माँजी को नोट चढ़ाते देख बिरजू वहाँ आ जाता है और उनके
लिए आशीर्वचन का पाठ कर देता है। माँ जी उससे प्रभावित हो जाती हैं। वे बिरजू से पूछती
हैं- आप यहाँ कैसे आए और यहाँ शिवलिंग की स्थापना कब हुई?
बिरजू दार्शनिक होकर कहता है- 'मैं तो रमता जोगी बहता पानी की तरह हूँ माँजी! जिस
दिन सपने में भोले बाबा ने बुलाया, उसी दिन चला आया उनकी सेवा में! जब वे फिर कहीं
बुलाएंगे, तो वहाँ चला जाऊँगा। ये तो इनकी माया है, जैसा चाहेंगे, वैसा ही होगा। मुझे भी क्या
पता था कि मैं यहाँ आ जाऊँगा...'- इतना कहकर बिरजू खो जाता है- उन यादों में जिन्होंने
उससे उसका गाँव-घर छुड़ा दिया।
बिरजू को याद आता है अपना गाँव। कम उम्र से ही वह गाँव के मंदिर में पूजा करवाने लगा
था। मासूमियत से भरा हुआ नौजवान बिरजू बड़ी ईमानदारी से लोगों की पूजा करवाता था,
उन्हें आशीर्वाद देता था। लोग बड़े प्रसन्न होते कि बिरजू पंडित ने मंत्र बड़ी अच्छी तरह से
पढ़े हैं। हालाँकि बड़े पुजारी महादेव दुबे इसी कारण उससे चिढ़ते थे कि गाँव वाले उसे बहुत
पसंद करते थे। बड़े पुजारी उसे बिना बात के डाँटते रहते थे और सारा चढ़ावा अपने पास
रखते थे। लेकिन बिरजू को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। लेकिन मंदिर के दानपात्र में जो
रुपया आता था, उस पर पंचायत का हक होता था, क्योंकि पंचायत ने ऐसा ही नियम बना
रखा था। महादेव दुबे का स्वभाव भी कुछ रुखा और दुनियादार जैसा था, इसलिए भी बिरजू
पर लोगों की अधिक आस्था थी। लेकिन एक दिन लोगों की आस्था ही बिरजू के लिए खतरा
बन गई।
बिरजू ने रात के समय महादेव दुबे को दानपात्र से चोरी करते हुए देख लिया। महादेव बिरजू
को देखकर बहुत परेशान हो गए, लेकिन कुछ सोचकर उन्होंने शोर मचा दिया। गाँव की भोली
जनता जुट गई। महादेव ने बिरजू पर चोरी का इलजाम लगा दिया। भीड़ ने बिरजू को बहुत
पीटा। लोगों की आस्था नफ़रत में बदल गई। गाँव के मुखिया ने बिरजू को एक कोठरी में
बंद करवा दिया और अगले दिन पंचायत बुला ली। महादेव की गवाही पर बिरजू को दोषी
माना गया। पंचायत मानती है कि वह बहुत दिनों से दानपात्र का पैसा गायब कर रहा था।
ऐसे इंसान को गाँव में रहने का कोई हक नहीं क्योंकि उसने गाँववालों की भावनाओं से
खिलवाड़ किया है। पुलिस में देने से गाँव की बदनामी न हो इसलिए पंचायत उसे गाँव छोड़ने
का आदेश देती है।
बेसहारा बिरजू ने गाँव छोड़कर शहर का रुख किया। शहर पहुँचने से पहले उसे एक ठोकर
लगी और वह गिरते-गिरते बचा। आँख खुली तो उसने देखा- गाँव की एक सुंदर लड़की उसके
सामने खड़ी उसे घूर रही है। लड़की ने बिरजू को धीरे से धक्का देकर जगाया। बिरजू जैसे
नींद खुलने से गिरते-गिरते बचा। उसने बिरजू से पूछा- तुम कौन हो?
बिरजू- आँ...हम हैं बिरजू...
लड़की- कौन बिरजू?
बिरजू- हम पुजारी हैं और आज ही यहाँ आए हैं।
लड़की- पुजारी... तो ये भोलेनाथ तुम्हीं लेकर आए हो?
बिरजू- लेकर नहीं, ये तो यहीं प्रकट हुए हैं। इनकी कृपा से हम यहाँ आए हैं। भोले बाबा ने
सपने में दर्शन देकर यहाँ बुलाया कि यहाँ आओ और उनकी स्थापना करो। बस! हम चले
आए...
लड़की- हूँ...हमारा नाम सुमित्रा है! हम यहाँ की मालिन हैं। इधर के पाँच गाँवों में फूल-माला
हम ही बेचते हैं।
बिरजू- वाह! तब तो बहुत अच्छा है। काहे कि फूल माला की ज़रूरत तो यहाँ भी होगी।
सुमित्रा- तो कल से ही रखवा देती हूँ...
बिरजू- रखवा देती हूँ... किससे?
सुमित्रा- मेरा छोटा भाई संजय है... अभी आता होगा... वो उधर जाता है पाण्डेपुर की तरफ।
वो देखो आ रहा है।
बिरजू- ये तो बहुत अच्छा है...संजय फूल लेकर यहाँ बैठ जाएगा तो भक्तों को आराम हो
जाएगा।
लड़की- भक्तों को आराम हो चाहे न हो, हमको ज़रूर हो जाएगा। दिन-दिन भर भटकती हूँ तो
पेट भरता है। भगवान पर चढ़ाने के लिए लोगों को ताज़े फूल चाहिए लेकिन पैसे देने में
उनकी नानी मरती है। अरे हम भी तो फूल खरीदकर लाते हैं, तो उसका दाम नहीं लेंगे?
बताओ?
बिरजू- बिलकुल... क्यों नहीं लोगी? भला मंदिर में आते हैं तो लोग फूल-माला खरीदते हैं कि
नहीं? तुम कल से यहाँ संजय को बैठा दो और बेल-पत्र, फूल, धतूरा, दूब, पान आदि रखवा दो।
सुमित्रा- ठीक है... संजय भी आ गया। ऐ संजय! ई हैं बिरजू पंडित... बाबा भोलेनाथ इनको
दर्शन देकर बुलाए हैं कि यहाँ मंदिर बनाओ। तो तुम कल से फूल, पत्ती, माला, सब लेकर यहीं
बैठना।
संजय- भोलेनाथ! मंदिर!
सुमित्रा- हाँ रे... अच्छा हुआ, इधर कोई मंदिर था भी नहीं। कल से आ जाना... ठीक!
संजय स्वीकार में सिर हिलाता है लेकिन वह अभी भी आश्चर्य में है।
सुमित्रा- अच्छा, पंडित जी, अब हम चलते हैं। कल सवेरे संजय आ जाएगा।
बिरजू- हाँ-हाँ... बहुत अच्छा, चलो, सुमित्रा, चलो संजय... 'जय बाबा भोलेनाथ...'
सुमित्रा और संजय अपनी डलिया लेकर जाते हैं लेकिन जाने से पहले 'जय बाबा भोलेनाथ'
कहकर शिवलिंग के सामने मस्तक झुकाना नहीं भूलते।
उधर जब पागल बाबा की नींद खुली, तो पत्थर को न पाकर उसे कुछ बेचैनी हुई। उसने
अपना सारा सामान गुदड़ियों से निकालकर बाहर फैला दिया कि कहीं वह उनमें न छिपा हो।
लेकिन वह तो वहाँ था ही नहीं। पर उसका अस्थिर मन कुछ देर में ही उसे भूल गया।
दूसरे दिन सुबह चलते हुए वह उस पेड़ तक आया जहाँ बिरजू ने उसका पत्थर स्थापित कर
रखा था। बिरजू ने पागल को देखते ही उसे कुछ दूर पर बैठा दिया और उसे कुछ खाने को
दिया। तभी सुमित्रा अपने भाई संजय के साथ आई और फूल-माला की डलिया के साथ उसे
बैठाकर चली गई। पागल कुछ देर रुककर और दी हुई चीज़ें खाकर वापस चला गया। उसे
जाते देखकर बिरजू कुछ आश्वस्त हुआ।
बिरजू ने संजय की मदद से कुछ पत्थर, ईंटें, लकड़ी और इसी तरह की प्राकृतिक वस्तुएं
इकट्ठा करवाईं और बरगद के पास ही ऊँची सी जगह पर दो-तीन फुट ऊँचा एक ढाँचा जैसा
बनाया। आज कल से अधिक आमदनी हुई क्योंकि फूल, बेलपत्र आदि की व्यवस्था होने से
भक्तों ने दक्षिणा अधिक चढ़ाई। संजय उसका सहयोगी, साथी और मार्गदर्शक हो गया। संजय
पास के बाज़ार से खाना बनाने का सामान ले आया। दोपहर में बिरजू ने रोटियाँ बनाईं जो
उसने संजय के साथ खाईं। दोपहर तक सब फूल खत्म हो गए।
शाम के समय सुमित्रा आई। वह संजय के लिए कुछ खाने का सामान लाई थी। उन तीनों ने
मिलकर खाया। दिन भर की रिपोर्ट लेकर उसने बिरजू से कहा कि- ऐसे कैसे चलेगा? तुम
रोटी बनाओगे कि मंदिर सँभालोगे? मैं तुम्हारे और संजय के लिए खाना भिजवा दूँगी।
ढाँचा देखकर उसने सराहा और कहा- पंडितजी, ऐसा कुछ करो कि ये ढाँचा जल्दी ही ऊँचा उठ
जाए। बिरजू सोच में पड़ गया। रात में उसने उस पत्थर को ढाँचे में रख दिया। सुबह सुमित्रा
ढाँचे पर लटकाने के लिए एक लाल कपड़ा ले आई। संजय आज डलिया भर फूल लेकर
आया। आज एक और आदमी उसके साथ था, जिसके साथ नंदी था। अब मंदिर की धजा पूरी
हो गई।
हाइवे से गुजरती हुए गड़ियाँ, आते-जाते हुए लोग, आस-पास के गाँव वाले वहाँ कुछ फूल, पैसे
चढ़ाने लगे। कुछ भक्त नंदी को तेल चढ़ाने और घास खिलाने लगे। इस प्रकार वहाँ एक
छोटा सा मंदिर बन गया। मंदिर का स्वरूप लेते-लेते उस पर आस-पास के गाँव वालों की
नज़र भी पड़ी। सुबह-शाम गाँव की स्त्रियाँ, बच्चे मंदिर आने लगे। मंदिर का प्रभाव छोटे से
बड़ा होने लगा- साथ में बिरजू का यश भी फैलने लगा।
पागल अब मंदिर के आस-पास ही रहने लगा। बिरजू उसे बाबा कहता है। उसकी देखा-देखी
सब उसे पागल बाबा कहने लगे। बिरजू बाबा को नियमित रूप से खाना, प्रसाद भिजवाता
रहता है। मंदिर का चढ़ावा बढ़ने लगा तो बिरजू ने उसे भिखारियों में बाँटने और चारों ओर
कुछ सुविधाएँ बनवाने में खर्च कर दिया। अब मंदिर का ढाँचा कुछ और ऊँचा हो गया था
और पास में बिरजू का कमरा भी बन गया था। सुमित्रा ने भी उसे कुछ नई सलाह दी। उसने
जागरण करने वाले जयकिशन उर्फ़ जैकी को बिरजू से मिलाया और रोज़ शाम को मंदिर पर
दो घंटे के भजन गाने का प्रस्ताव रखा। जैकी ने यह प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया। उसे
कुछ पैसे भी मिलने की उम्मीद थी, और नियमित काम से उसका यश भी बढ़ने वाला था।
अब रोज़ शाम को मंदिर के पास दो घंटे का जागरण होने लगा। मंदिर का कद दिन-पर- दिन
ऊँचा होता जा रहा था। उस चौराहे का कायापलट हो गया था। अब उस इलाके के विधायक,
नेता और पुलिस वाले भी बिरजू से आशीर्वाद लेने आने लगे। बिरजू बहुत अच्छी तरह से
पूजा करवाता है और लोग उसे बहुत चाहने लगे हैं- ये बातें लोगों में प्रसिद्ध हो गईं। कभी-
कभी उसकी कही गई बातें सही हो गईं जिससे लोग उसे बहुत सम्मान देने लगे। दूसरी बात
यह कि बिरजू लालची नहीं है। वह सारा चढ़ावा मंदिर के निर्माण और गरीबों को खिलाने में
खर्च कर देता है। इससे उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई है। कई भिखारी वहीं स्थाई रूप
से डेरा डाल चुके हैं।
पागल बाबा अब थोड़ा सुधर गया है। उसने नहाना-धोना शुरू कर दिया है। किसी से बोलता
तो नहीं है वह लेकिन शांत रहता है। वह वहीं घूमता रहता है लेकिन उसे मंदिर में जाने नहीं
दिया जाता है। एक दिन वह दोपहर में मंदिर में झांक लेता है। उसे अपना पत्थर दिखाई
देता है। जैसे ही वह उसे लेने बढ़ता है कि संजय चिल्ला देता है कि पागल बाबा भगवान को
छू रहा है। भक्त उसे पकड़कर बाहर कर देते हैं। बिरजू को जब यह बात पता चलती है तो
वह पागल बाबा को कुछ खाने के लिए देता है। लेकिन उस दिन से बाबा अपने पत्थर को
लेने की फिराक में रहता है। सुमित्रा भी अब अधिकतर मंदिर में ही रहने लगी है। उसे बिरजू
से प्रेम हो गया है। बिरजू भी उसे चाहता है लेकिन कहने में शर्माता है।
शिवरात्रि का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जा रहा है। सुबह से ही भक्तों का ताँता लगा है।
बिरजू सबको पूजा करवा के आशीर्वाद दे रहा है। स्थानीय विधायक गोटिया बिरजू से कई
बार आशीर्वाद ले चुका था और आज उसने मंदिर के पास ही एक छोटा सा स्टेज बनवाया
कि अपनी राजनीतिक रोटियाँ भी सेंक सके। उसके साथी, चमचे, गुर्गे वहाँ जमा थे और शहर
से आने वाले अधिकारियों, मंत्रियों और धन-कुबेरों का स्वागत कर रहे थे। आगंतुकों को वे
बिना लाइन के बिरजू से आशीर्वाद भी दिलवाते और दक्षिणा भी चढ़वाते। इस बड़ी घटना से
फायदा उठाने के लिए उसने कुछ चैनलों और अख़बार वालों को भी बुला लिया था। आख़िर
नया-नया मंदिर बना था, मान्यता क्यों न होती! सब कुछ बड़ी अच्छी तरह से चल रहा था।
दोपहर में जब भीड़ कुछ देर के लिए कम हुई कि पागल बाबा मौका पाकर चुपके से मंदिर
में घुसा और शिवलिंग उठाकर भागा। जैसे ही वह बाहर आया कि किसी भक्त की नज़र उस
पर पड़ी। शोर मच गया और भीड़ जमा हो गई। लोगों ने पागल बाबा को पीट-पीट कर
अधमरा कर दिया। इस घटना की प्रत्यक्षदर्शी बनी- "अपनी ख़बर" चैनल की तेज़-तर्रार
रिपोर्टर सुनीता अय्यर, जो गोटिया के निवेदन पर मंदिर की पूजा को कवर करने आई थी।
अब उसे एक चटपटा मसाला मिल गया।
जैसे ही लोगों ने पागल को पीटना शुरू किया, बिरजू शोर सुनकर वहाँ भागा आया और लोगों
को रोकने लगा। लेकिन भीड़ इतनी नाराज़ थी कि जब तक वह पागल तक पहुँचता, पागल
अधमरा हो चुका था। बिरजू पागल को बचाने के लिए उस पर लेट जैसा गया कि उसे बचा
ले, लेकिन लोगों का जुनून ऐसा था कि पागल को पीटने के चक्कर में बिरजू भी चोट खा
गया और बेहोश हो गया। सुनीता ने फुर्ती से अपने चैनल में बाइट दे दी, जो पाँच मिनट में
ही लाइव प्रसारित हो गई। ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में सुनीता की ख़बर को दूसरे चैनलों ने
लपक लिया और लगभग 15-20 मिनट में ही वहाँ चार पाँच चैनल वाली गाड़ियाँ और पहुँच
गईं।
इधर घायल बिरजू और पागल को गोटिया और उसके आदमी पास के सरकारी अस्पताल
लेकर चले गए। पुलिस आ गई और उसने बिरजू और पागल पर पहरा बैठा दिया। अब कोई
भी उन तक पहुँच नहीं सकता था। अस्पताल में बिरजू और पागल को आइ सी यू में भर्ती
कर लिया गया। बिरजू को तो सब लोग पुजारी के रूप में जानते थे लेकिन पागल की
शिनाख़्त नहीं हो सकी।
सभी प्रमुख चैनलों पर यह ख़बर छा गई कि किसी ने पागल का रूप धरकर रिंग रोड के
मंदिर को भ्रष्ट करने की कोशिश की है। मंदिर में अफरा-तफरी का माहौल है। गुस्साई लोगों
की भीड़ ने उस बने हुए पागल को बहुत पीटा और शिवलिंग ले जाने के चक्कर में पागल ने
मंदिर के पुजारी बिरजू पंडित पर भी जानलेवा हमला किया है और उनकी जान अभी भी
खतरे में है।
उधर गोटिया ने मंदिर के परिसर में बने स्टेज पर अपने समर्थकों की एक छोटी सी सभा
कर डाली। भरी संख्या में गाँव वाले और बाहर के बहुत से लोग वहाँ मौजूद थे- अख़बारों और
चैनलों के रिपोर्टर तो पहले ही आ चुके थे। उन्हें कुछ और मसाला चाहिए था। गोटिया के
भड़काऊ भाषण के बाद उसके समर्थकों ने देश को बाँटने वाली शक्तियों से टकराने वाले नारे
लगाए और पागल को पाकिस्तान का एजेंट बताया। उन्होंने यह भी कहा कि अब पागल जैसे
मुसलमानों को कड़ा सबक सिखाने का वक्त आ गया है। अगर बिरजू पंडित को कुछ हो गया
तो हम अस्पताल में घुसकर पागल को सज़ा देंगे।
चैनल वालों ने इस मुद्दे को इस कदर उछाला कि अधिकतर जनता पागल को ISI या
पाकिस्तान का एजेंट मानने लगी। एक चैनल ने उसे आतंकवादी गतिविधि करार दिया। दूसरे
ने उसे राष्ट्रद्रोही और इंसानियत के लिए सबसे बड़ा ख़तरा। तीसरे ने उसे किसी बड़ी साजिश
का सूत्रधार बताया। अब यही बचा था कि उसकी पहचान कैसे स्थापित की जाए।
सरकारी अस्पताल के बाहर सभी चैनलों की वैन जमा हो गईं। पुलिस कमिश्नर ने व्यक्तिगत
रुचि लेकर अस्पताल पर पहरा कड़ा कर दिया। किसी को भी पागल या बिरजू से मिलने से
रोक दिया गया। डॉक्टरों ने पागल और बिरजू के इलाज़ में अपनी सारी शक्ति लगा दी।
सुनीता ने अपने चैनल में पिटते हुए पागल की तस्वीरें और वीडिओ जारी करवा दिया। अब
उसका प्रमोशन भी निश्चित हो गया। घटनाक्रम कुछ इस तरह आगे बढ़ा कि दो दिन में ही
सारे शहर में कर्फ़्यू लगाने जैसे हालात हो गए।
गोटिया के समर्थन में मंदिर के बाहर धर्म की रक्षा के लिए कई धार्मिक नेताओं ने एक बड़ी
सभा का ऐलान किया। गोटिया के कारण बहुत से राजनीतिक लोग भी इसमें शामिल हो गए।
शाम को हुई सभा में ऐलान किया गया कि जिन लोगों ने हमारी धार्मिक भावनाओं के साथ
खिलवाड़ किया है, हम उन्हें चेतावनी देते हैं कि हम उनकी इन हरकतों को कतई बर्दाश्त नहीं
करेंगे। भीड़ ने जोर-शोर से नारेबाजी शुरू कर दी। जनता भड़क उठी और धर्म की रक्षा के
लिए सड़कों पर उतर आई। पुलिस उनकी इस गतिविधि पर नज़र रखे थी। लेकिन भीड़ बहुत
हो गई और उसे सँभालना मुश्किल हो गया।
सूबे के मुख्यमंत्री ने गोटिया को फ़ोन किया और उसे जनता को शांत करने के लिए कहा।
लेकिन गोटिया इस मौके को कैसे छोड़ सकता था। उसने जनता को और भड़का दिया।
लिहाजा गोटिया के समर्थकों ने कुछ इलाकों में तोड़-फोड़ करनी शुरू कर दी। कुछ
कार्यकर्ताओं ने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मार-पीट कर दी। जिससे अब यह लड़ाई हिन्दू-मुस्लिम
जनता के बीच शुरू हो गई। शहर में दंगे भड़क उठे। पुलिस ने कर्फ़्यू लगा दिया। एक चैनल
ने इस पूरे घटनाक्रम पर तीन विशेषज्ञों को बुलाकर चर्चा शुरू कर दी। एक चैनल ने तो यह
खुलासा भी किया कि पागल का खतना भी हुआ है।
उधर अस्पताल में पागल को होश आ गया लेकिन वह कुछ बोल नहीं सकता था। बिरजू की
हालत सुधर गई और उसे आइ सी यू के बाहर वार्ड में भेज दिया गया। लेकिन पुलिस का
पहरा बराबर बना रहा। उधर यह ख़बर उड़ गई कि पागल जान-बूझकर चुप्पी साधे बैठा है।
ज़रूर वह किसी बड़ी साजिश का हिस्सा है, जो अपना मुँह नहीं खोल रहा है।
गोटिया ने पुलिस की मदद से बिरजू से मुलाकात की। उसने बिरजू से पूछा कि उसने पागल
को बचाने की कोशिश क्यों की? तो बिरजू ने कहा कि पागल निर्दोष है। तो गोटिया ने कहा-
तुम्हारा दिमाग़ फिर गया है पंडित! पागल को निर्दोष बता रहे हो? मुझसे तो कह दिया
लेकिन और किसी से मत कहना वरना इसमें तुम्हारी मिली भगत बता देंगे और देशद्रोह के
नाम से ज़िंदगी भर चक्की पिसवाएँगे!
बिरजू डर गया। सुमित्रा ने अस्पताल की नर्स की मदद से बिरजू से मुलाकात की। बिरजू ने
उसे बता दिया कि पागल निर्दोष है। लेकिन सुमित्रा ने उसे चुप रहने को कहा क्योंकि गोटिया
और उसके लोगों ने जो हंगामा मचाया था उससे सारे शहर में सांप्रदायिक हिंसा फैलने लगी
थी। और सुमित्रा भी नहीं जानती थी कि कैसे इस मुसीबत से छुटकारा पाया जाए?
बिरजू कुछ सोचने की स्थिति में नहीं था। वह एक छोटा पुजारी था, लेकिन ऐसी स्थिति का
सामना उसने कभी नहीं किया था। सुमित्रा और उसने सोचा कि पागल को बचाया जाए।
लेकिन कैसे?
अगले दिन बिरजू को छुट्टी मिल गई। उसे गोटिया के आदमी गाजे-बाजे के साथ मंदिर ले
गए। सुनीता अय्यर के चैनल ने बिरजू और गोटिया को बुलाया। गोटिया ने बिरजू को कई
तरह से समझाया था कि क्या कहना है लेकिन बिरजू को बहुत अधिक समझ में नहीं आया।
लाइव शो में बिरजू ने पागल की सच्चाई बताने की कोशिश की, लेकिन चैनलवाले ने और
गोटिया ने उसे बोलने ही नहीं दिया। उसकी आवाज़ दबकर रह गई।
इधर यह ख़बर राष्ट्रीय ख़बर बन चुकी थी। सारे देश में हलचल मची हुई थी। हर व्यक्ति की
नज़र इस ख़बर पर थी कि पागल कौन है और उसका बयान आया या नहीं? दो-तीन दिन
इन्हीं कयासों में लग गए।
उधर जाने कैसे सुनीता अय्यर को यह पता चल गया कि पागल गूँगा है और बोल नहीं
सकता- उसने अपने चैनल को यह ख़बर लगाने को कहा। लेकिन उसके चैनल-हेड ने कहा कि
तुम मूर्ख हो। अच्छी ख़ासी हलचल को किल करना चाहती हो तुम!
इधर गोटिया ने अपने कुछ विश्वस्त समर्थकों को मंदिर में बुलाया और उन्हें भोले नाथ की
कसम दिलाकर अस्पताल भेजा कि किसी तरह उस पागल रूपी आतंकवादी को खत्म कर दें।
यह बात सुमित्रा ने सुन ली और उसने बिरजू को बता दी।
गोटिया के समर्थक तैयार होकर अस्पताल की ओर चले। सुमित्रा भी बिरजू के साथ छिपती
हुई अस्पताल पहुँची। अब तक पुलिस की सख्ती भी कम हो गई थी। गोटिया के समर्थक वेश
बदलकर अस्पताल पहुँचे और स्टाफ़ की मदद से पागल को पीछे के गेट से बाहर निकालने
में कामयाब हो गए, जहाँ बिरजू और सुमित्रा उनका इंतज़ार कर रहे थे। बिरजू और सुमित्रा ने
उन लोगों को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वो कुछ न कर सके। तब बिरजू पागल को
पकड़कर बैठ गया कि इसे मत मारो, यह निर्दोष है। यह बोल नहीं सकता, गूँगा-बहरा है।
लेकिन इस समय तो गोटिया के गुर्गे गूँगे-बहरे बने हुए थे। पागल को बचाने में बिरजू
अधिक देर ठहर नहीं सका और हाथापाई में गिर पड़ा। वे पागल को लेकर भागने लगे तो
बिरजू ने उनका रास्ता रोक लिया और कहा कि तुम लोग इसे नहीं ले जा सकते। लेकिन उन
लोगों ने बिरजू को ज़ोर का धक्का दिया और पागल को लेकर भागे। बिरजू उनके पीछे भागा
और एक गुर्गे को पकड़ लिया। उसने अपने मज़बूत हाथों से बिरजू को एक तरफ फेंक दिया
जिससे उसका सिर एक पत्थर से टकरा गया और वो वहीं ढेर हो गया।
सुमित्रा बिरजू की हालत देखकर चिल्लाने लगी। बिरजू को ज़रा सा होश आया। उसने कहा-
पागल बाबा निर्दोष है... वो शिवलिंग पागल बाबा का है।
लेकिन सुमित्रा ने जैसे वो सुना ही नहीं। उसे तो बिरजू को बचाने का खयाल आ रहा था।
अस्पताल के एक कर्मचारी को जाते देखकर वो चिल्लाई- बचाओ... बिरजू पंडित को बचाओ!
उन लोगों ने बिरजू पंडित को मार डाला है... वो पागल बाबा को भी मार देंगे...लेकिन जब
तक वो कर्मचारी आता, बिरजू की नब्ज़ बंद हो चुकी थी।
उधर मीडिया में ब्रेकिंग न्यूज़ शुरू हो गई कि आतंकवादियों ने अस्पताल पर हमला करके
पागल बने अपने साथी को छुड़ा लिया है और उन्होंने बिरजू पंडित की हत्या कर दी है।
गोटिया के समर्थकों ने पागल को मारकर रास्ते में फेंक दिया। मीडिया में फिर ब्रेकिंग न्यूज़
फ़्लैश हो रही है कि आतंकवादियों ने अपने साथी को भी मार डाला कि कहीं वो उनकी
पहचान जाहिर न कर दे।
बहरहाल, एक बार फिर शहर में अनिश्चित कालीन कर्फ़्यू लगा दिया गया है कि बिरजू की
हत्या से कहीं फिर दंगा न भड़क जाए...
हाँ, मंदिर पर गोटिया के समर्थकों का अखंड भजन चालू है, जब तक यह मामला ठंडा न पड़
जाए।
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