मन या धन
मन या धन
"रिम्पी हम वो महँगा वीडियो गेम तुम्हारे लिये नहीं खरीद सकते... अभी पैसे नहीं हैं बेटा"। सुमित्रा ने खट्टे मन से अपने बेटे से कहा।
"सुमित्रा देखो... देखो इस बार कितनी बड़ी ट्रॉफी मिली है मुझे कवि सम्मेलन में। सभी ने बहुत सम्मान भी दिया...मेरा तो जैसे जीवन सफल हो गया। कल के अखबार में फोटो भी आएगी", मेहता जी ने बेहद उत्साह से सुमित्रा को ट्रॉफी थमाते हुए कहा।
"पापा...मुझे वो बड़ा वाला वीडियो गेम चाहिये, लेकिन मम्मी दिला ही नहीं रही हैं। पापा आप दिला दो ना", रिम्पी ने आखों में चमक भर कहा।"सुमित्रा दिला क्यों नहीं देतीं इसे वीडियो गेम...एक ही तो बच्चा है उसे भी मन की चीज़ ना दिलाओगी ?"
"मेहता जी ऐसा करते हैं आपके जितने भी सम्मान, पुस्कार और समाचार पत्रों में जो कविताएँ हैं, वो यदि कहीं भी बिक जाए तो रिम्पी का मन रह जायेगा क्योंकि मेरे पास तो पैसे हैं नहीं इतने कि उसकी बेतुकी ख्वाइशें पूरी कर सकूँ। मेहता जी आपकी शायरी से आपका शौक तो पूरा हो रहा है, लेकिन सम्मान से रसोई में राशन नहीं भरता।"