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Chitra Rana Raghav

Drama Classics

2.8  

Chitra Rana Raghav

Drama Classics

नन्हीं की गुड़िया

नन्हीं की गुड़िया

4 mins
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9 साल की नन्हीं, शहर के सबसे बड़े कारोबारी की पोती थी। नन्हीं के पास दुनिया का हर खिलौना था। अलमारी, बैड, यहाँ तक कि पूरा का पूरा कमरा खिलौनों से भरा हुआ था।

आखिर ऐसा क्या हुआ कि जिन खिलौनों को वो देखती भी नहीं थी, धीरे-धीरे उसके दोस्त बनते चले गए। अपने कमरे में बंद रहना उसकी आदत-सी हो गयी। स्कूल और बाकी समय तो जैसे-तैसे काटती थी, लेकिन सांस तो उसे कमरे के भीतर ही आती। जाने क्या कहानी सुनाई थी उसने अपने गुड्डे-गुड़ियों को कि हर एक की आँखों में आंसू होने का एहसास होने लगा था। जाने क्यों लगता था कि हर गुड्डे की डरावनी-सी शक्ल पहले से थी या बना दी गयी थी। अक्सर सभी गुड़ियां कमरे के एक कोने में एक के ऊपर एक पड़ी होती थी और गुड्डे पूरे कमरे में फैले हुआ करते थे।

जब कभी भी कोई कमरे में सफाई करने आता और गुड़ियों को उठा के सारे खिलौनों के पास रख देता तो उस दिन नन्हीं बहुत रोती। फ़िर धीरे-धीरे गुड़ियां कम होने लगी, और जब आखिर की 2 बची तो सारे नौकरों को बुलाकर चोरी के इलज़ाम में तलब किया गया। लेकिन किसी ने जुर्म नहीं कबूला, सख़्ती करने पर भी कोई नहीं बोला। अंततः दादा जी ने तय किया कि अब तक जो भी नन्हीं के कमरे के पास देखा गया है, दंड उन सबको मिलेगा। यह सुनकर नन्हीं दादा जी की उंगली पकड़ कर एक तरफ ले गई और पापा की तरफ इशारा करते हुए बोली "तो आप इन्हें सज़ा क्यों नहीं देते, इन्होंने भी तो मेरे जैसी कई गुड़ियों को मार डाला है"

नन्हीं की यह बात सुनकर पूरा का पूरा घर स्तब्ध रह गया।

नन्हीं ने आगे कहा कि "मैंने उन गुड़ियों को अपनी उन्हीं बहनों के पास पहुँचा दिया है"

डॉक्टर साहब नन्हीं की बात सुनकर दुखी मन से बोले कि मैं किसी को वापस तो नहीं ला सकता पर अब कभी ऐसा नहीं होगा। सॉरी, बेटा!



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