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इंसानों की किस्में

इंसानों की किस्में

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हाँ जी! इंसानों की किस्में. आपने फलों, जानवरों की किस्में तो सुन ही रखीं होंगी पर इन्सानों की किस्में बहुत कम सुनी होंगी. पर हम आज आपकों इंसानों की किस्में बताएंगे. यकीं मानिए आप भी आज के बाद इंसानों को उनकी किस्मों से पहचानना शुरू कर देंगे.

 

आप रोज सुनते होंगें की फला आदमी लम्बा है, ऊँचा है, नीच है, नाटा है, गोरा है, काला है, गुमनाम है, प्रसिद्ध है, नकचपटा है, पसली है, सीधा है, तिरछी आँखों वाला है, बौना है, लम्बू है, गोल है, बिन पेंदे का लोटा है, अमीर है, गरीब है, भिखमंगा है, काइयां है, लुल्ल है, वीआईपी है, तनहा है, कुंवारा है, सधवा है, लम्पट है, हरामी है आदि –आदि. आप शायद मुझे बुरा सोच रहे होंगे पर ये किस्में होती हैं जिससे आप आये दिन दो चार होते रहते हैं. मैं तो यहाँ सिर्फ बोलचाल में प्रायोजित किये जाने वाले शब्द प्रयोग कर रहा हूँ, नहीं तो ऐसे कई उपनाम आप खुद भी  जानते होंगे जिन्हें बिना ‘बीप’ के बोला नहीं जा सकता और बिना ‘....’ के लिखा नहीं जा सकता.

 

इंसानों के इस रूप से मेरा तात्पर्य केवल मर्द प्रजाति से हो ऐसा नहीं है, अपितु समानरूपेण स्त्री प्रजाति से भी है. गौरकाबिल इतना है कि यहां मैं केवल मर्दों के नामों का उल्लेख कर रहा हूँ. आप अपनी सुविधानुसार इसे पुलिंग से स्त्रीलिंग में परिवर्तित कर सकते हैं.

 

यह सौ फ़ीसदी हकीक़त है की इन्सान अच्छा और बुरा दोनों होता है इस आधार पर वह दो किस्म का होता है-

 

1.जिस तरह वह बाहर से होता है अथार्त जिस तरह वह हमें दिखाई देता है या जिस तरह समाज में व्यवहार करता है।

2. जिस तरह वह होता है अथार्त वह अंदर से जैसा होता है. दूसरा रूप ही ज्यादा अहमियत रखता है क्योंकि उसमें बनावट और मुखौटा नहीं होता और यही आदमी का असली रूप होता है जिसे वह चाहकर भी नहीं बदल सकता. पर दुर्भाग्यस्वरुप इस रूप को पहचानना बड़ा मुश्किल होता है. इसीलिए जिनसे हमें आशा नहीं होती वह ऐन-वक्त पर मदद करता है और जिससे हम पूरी उम्मीद लगाए बैठे होते है वह मनुष्य की दुम की तरह विलुप्त हो जाता है, दगा दे जाता है.

 

स्त्री एक ऐसी प्राणी है जिसे शायद खुदा भी अभी तक नहीं जान पाए है. शायद इसीलिए मनीषियों को-त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यं दैवो न जानाति - कहना पड़ा है. जो भी हो पर इसने भी आदमी की किस्मों को बदला है - एक तरफ मूर्खदास से तुलसीदास और कालिदास बनाए हैं तो दूसरी तरफ बुद्धिमान को ढपोरशंख और घरघुसुवा भी बनाए हैं. अभी इन्सान की कुछ ही प्रजातियों का उनके स्वभाव एवं आचरण के अनुरूप हम नामकरण कर पाए हैं. लेकिन अभी भी बहुत सी ऐसी कैटेगरियां मौजूद हैं, जिनकी न तो आज तक किसी को आदत समझ में आई है और न ही व्यवहार. ऐसे प्राणियों को अलग संघ में रखा गया है जैसे-

1. विलुप्तपाय प्रजाति- इनमें वे कर्मचारी या अभिभावक होते हैं, जो ऑफिस या घर से हमेशा विलुप्त रहते हैं, कई दोस्त भी ऐसे होते हैं जो रहते तो आपसे थोड़ी दूरी पर हैं पर मिलते हैं कई-कई महीनों के बाद.

2. बहानेबाज प्रजाति- इनमें वे लोग आते हैं जिनकों सामूहिक काम के ऐन वक्त पर व्यक्तिगत महत्वपूर्ण काम आ जाता है. वैसे वे हरदम ख़ाली पाए जाते हैं. आप उनसे कोई काम नहीं करा सकते क्योंकि उनके पास उसे न करने के हजार सही लगने वाले बहाने होते हैं. 

3.तानाशाह प्रजाति- ये हर वक्त हिटलरशाही का रोब झाड़ते हैं, जैसे कि ऑफिस के बॉस, स्कूल टीचर आदि. 

4. उग्रवादी प्रजाति- ये स्वाभाविक रूप से प्रचंड होते हैं, जैसे चुगलखोर, काम नापसंद आदमी.

5. आतंकवादी प्रजाति- इनमें अटैक की मुद्रा में रहने वाले वाले कर्मचारियों, औरतों (खासकर बीविओं) आदि को रखा गया है. इन प्रजातियों की वजह से कभी-कभी आम इंसानों को हार्ट अटैक का भी सामना करना पड़ता है. इसमें डिमांडिंग औरतों, अस्वाभाविक काम देने वाले बॉसों, धोखेबाज मनुष्यों आदि को रखा जाता है।

 

स्वभाव अनुरूप इंसानों की बात करें तो इसमें नेक आदमी, दुष्ट आदमी, दब्बू आदमी, तेज आदमी, गुस्सैल आदमी, शांत आदमी, अकड़ू आदमी, बिगड़ू आदमी, भयावह आदमी, दिल जलाऊ आदमी, फेकू आदमी, चिपकू आदमी आदि की श्रेणी आती है. वहीं अगर आचरण की बात हो तो इसमें उबाऊ, पकाऊ, कर्कश, मिठबोलन, लुच्चा, टुच्चा, पिछलग्गू टाइप आदमियों को रखा गया है. लेकिन कुछ तो बिल्कुल ही अनोखी श्रेणी में आते हैं जैसे- भगवान पसंद आदमी, कामपसंद आदमी, बॉसपसंद, अभिभावक प्रिय आदमी, रंग बसंती आदमी, प्यारे मोहन चाचू, शहीदे आजम बाबा, लेकिन दुर्भाग्य से इन अनोखी श्रेणियों की जमात विलुप्त होती जा रही है. विलुप्ति के कगार पर आ चुके इन इंसानों को रेड डेटा बुक में शामिल करने की जरूरत है. हालांकि सरकार इनके संरक्षण के प्रयास में जुटी हुई है.

 

इसके इतर कुछ और आदमियों की श्रेणी भी है जिसका नामकरण परिस्थितिजन्य है, जैसे कि भगोड़ा आदमी - ऐसे आदमी परिस्थितिजन्य होते हैं जो हर वक्त, हर काम/जिम्मेदारी से  भागने की कोशिश में लगे रहते हैं. ऐसे आदमी राजनीति में हरदम देखने को मिल जाते हैं. इसके अतिरिक्त राजनीति में एक अन्य किस्म दरबदलू भी काफी लोकप्रिय है. वैसे ही एक अन्य किस्म है गिरगिट आदमी या छिपकली (औरत का) ऐसे आदमी/औरत परिवेशजन्य होते हैं, जो हर जगह रंग बदल लेते हैं. इनका रूप, रंग व आकार अनिश्चित होता है. इनको पहचान पाना कठिन होता है. वायरस आदमी - ये ऐसे लोग होते हैं जो छोटी से छोटी बात को वायरस की तरह फैलाने में मददगार सिद्ध होते हैं. पाकिस्तान छाप आदमी में विरोधीभाषी आदमियों को रखा गया है, क्योंकि ये दूसरे को तो छोड़ दें, अपने ही समूह का कभी समर्थन करते नहीं पाये जाते. ऐसे ही कुछ और टाइप जैसे कुकुरमुत्ते टाइप, कबाड़खाना आदमी, फाइली आदमी, दफ्तरी आदमी, ओसामा छाप आदमी, चम्मच छाप आदमी भी हैं जिन्हें परिस्थितियों ने नाम दे दिया.

 

इसी प्रकार एक अन्य ग्रुप है चुनावी आदमी का-इनका राजनीति में रुझान ज्यादा होता है. इनमें भी कई श्रेणियां हैं जैसे-झूठा आदमी, घूसखोर आदमी, भ्रष्टाचारी आदमी, संविधानी आदमी, कानूनी आदमी, वीआईपी आदमी, गुंडा आदमी, लुटेरा आदमी, नौटंकी आदमी, दिलखुश आदमी, दुखितआत्मा आदमी, सिंहासनपसंद आदमी, फ्रॉड आदमी, दलाल आदमी, आरोपी आदमी, कैदी आदमी, अपराधी आदमी आदि आदि. बॉस टाइप किस्म को अगर गौर से देखे तो इनकी भी तीन किस्में दिखती है-

 

1.  जो आपसे सिर्फ निर्देशित काम चाहते हैं-स्वेच्छाचारी;

2. जो काम को समझने में आपकी मदद करते हैं-मददगार;

3. जो निर्देशित काम के दौरान आपके साथ लग जाने में परहेज नहीं करते हैं-सहभागी.

 

अब आप खुद ही देख लें की आप किस किस्म के इन्सान हैं और किस किस्म में रहना चाहते है. अगर अपनी किस्म बदलनी हैं तो आचरण भी बदलना पड़ेगा. एक किस्म से दूसरी किस्म में जाने पर परित्यक्त किस्म की आदतें जिस अनुपात में घटती हैं उसी अनुपात में ग्रहणीय किस्म की आदतें बढ़ती हैं. पर मंद परिवर्तन होने के साथ अभ्यास और धैर्य की आवश्यकता होती है अतः धीरे-धीरे इस दिशा में आगे बढ़ते रहें.

 

आगे आपकी मर्जी!


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