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परवरिश

परवरिश

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सूरज डूब चुका था। घर की सारी बत्तियाँ जलाने के बाद भी अँधेरा-अँधेरा सा महसूस हो रहा था। डॉ. फरहा की फ़िक्र बढ़ती जा रही थी। डॉ. खान को भी चैन नहीं थी। कभी सोफे पर बैठते तो कभी बरामदे में चहल क़दमी करने लगते। बेटा शाहनवाज़ भी अब तक ऑफिस से घर आ चुका था।

"मम्मी, बताइये न प्लीज़ क्या हुआ है ? ये घर में मातम सा क्यों छाया हुआ है ? आप और पापा इतने परेशान क्यों है ?"

एक साँस में जितने सवाल थे, सारे पूछ डाले लेकिन जवाब अभी भी नदारद था। मम्मी-पापा दोनों के मुँह जैसे सिल गए हो। शाहनवाज़ ने, डॉ फरहा को झकझोडरते हुए कहा।

"मम्मी बताइये न, क्या हुआ है ?"

डॉ. फरहा के आँसू तो जैसे थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। बेटे, "आज शीलू कॉलेज से अभी तक वापस नहीं आई है।"

तो क्या हुआ आ जाएगी। किसी सहेली के साथ उसके घर चली गई होगी।

"मैं उसकी सारी सहेलियों को फ़ोन लगा चुकी हूँ। कोई भी बताने को तैयार नहीं है। किसी को भी पता नहीं है, वह कहाँ है ?"

"पापा हम पुलिस स्टेशन चलते हैं। सबसे पहले उसके गुमने की एफ.आई.आर. दर्ज करवा देते हैं। पुलिस वाले भी उसको ढूंढने में हमारी मदद करेंगे।"

खान साहब ने हिदायत दी, "नहीं बेटे, लड़की का मामला है। थोड़ा इन्तज़ार करते हैं। मैं ने अपने दोस्तों को बुलाया है। सभी बैठकर मशविरा करेंगे। इसके बाद भी कोई आगे की कार्यवाही करेंगे।"

खान साहब की सवालिया नज़रें बार-बार बेगम फरहा की तरफ उठती, लेकिन जवाब न पाकर ख़ामोश हो जातीं। बेगम फरहा भी उन नज़रों में छिपे सवालों को बखूबी समझ रही थीं लेकिन हर बार की तरह आज उनकी हाज़िर जवाबी, जवाब दे चुकी थी। आज अपने आप को परवरिश की अदालत के कटघरे में खड़ा महसूस कर रही थी।

तभी आँगन में किसी के पत्थर फेंकने की हलकी सी आहट हुई। शाहनवाज़ ने जब लाइट जला कर देखा तो आँगन के बीचो बीच, कोई मोटर साइकिल से, तेज़ी से, काग़ज़ में लिपटा हुआ एक पत्थर फेंक कर गया था।

अब तक सारे परिचित और मोहल्ले वाले भी इकट्ठा हो चुके थे। जब सब के सामने इस काग़ज़ को खोला तो ये कोई साधारण काग़ज़ नहीं था। ये तो एक शपथपत्र था। जिसमें शीलू के साथ वसीम की फोटो और दोनों के दस्तखत भी थे। कोर्ट का हवाला देते हुए होशोहवास में शादी करने की बात कही गई थी। नीचे था,

"सॉरी मम्मी-पापा मैंने शादी कर ली है, मैं ठीक हूँ।" और नीचे पता भी लिखा था।

खान साहब आँखें लाल करते हुए बेगम फरहा को शपथ दिखा रहे थे। जैसे कह रहे हो। "लो, आज तुम्हारी परवरिश का नतीजा आ गया।"

फरहा बेगम ने जैसे ही शपथ पत्र हाथ में लिया, शीलू, तो जैसे तस्वीर से बाहर निकलकर, अपने हाथों में हेंगर में दो ड्रेसेस लिए खड़ी थी। पूछ रही थी, "मम्मी आज कॉलेज इनमें से कौन सी ड्रेस पहन कर जाऊँ।

डॉ. फरहा सोच रही थीं, मेरी बच्ची जो कल तक कॉलेज जाने के लिए कौन सा सूट, कौन सी चप्पल पहन कर जाए। ये फैसला नहीं कर पाती थी। आज शपथपत्र में उसका मुस्कराता चेहरा और दस्तखत कह रहे थे।

"मम्मी, मैंने वसीम से शादी कर ली है। ये वही वसीम है जिसकी मम्मी आपके पास कई बार रिश्ता लेकर आईं थीं। लेकिन पापा ने अपने ख़ानदान का न होने के कारण मना कर दिया था।"

डॉ. फरहा ने वसीम की फोटो की तरफ इशारा करते हु, खान साहब को वह शपथपत्र वापस कर दिया।


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