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उबलता नीर

उबलता नीर

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छठवें फ्लोर पर रहने वाली कांता आंटी की बहू सुधा ने बाथरूम में शावर से लटक कर आत्म हत्या कर ली थी। हमारी बिल्डिंग में हर तरफ मानों कोहराम मच गया था। ढेर सारे लोग, पुलिस......प्रेस..... हर किसी के पास दूसरों को सुनाने के लिये अपनी एक ओरिजिनल कहानी, अपना-अपना अनुभव ..... फिर कुछ देर के बाद पहले उसकी बाॅडी पोस्टमार्टम के लिये एम्बुलेंस से गई और फिर पुलिस कांता आंटी, उनके पति जालान अंकल और सुधा के पति अंशुमान को हथकड़ी पहना कर खुली जीप से ले गई।

इसके बाद जब सब लोग आत्म हत्या के कारण की खोज में लगे तो सबसे बड़ा वी आई पी उनके घर का नौकर सोनू बन गया था, जिसको बिल्डिंग के हर घर की औरतें कुछ खिला-पिला कर अंदर की बात निकालने की कोशिश कर रही थीं। वह भी आँखों को फैला फैला कर बता रहा था कि कांता आंटी, सुधा भाभी को कितना डाँटा करती थीं और यहाँ तक कि बात बात पर हाथ भी उठा देना मामूली बात हो गई थी। साल भर की शादी हो जाने के बावजूद सुधा भाभी को आजतक मायके तक नहीं जाने दिया गया था और छोटी छोटी गलती पर दो दो दिन तक उनको भूखे रहने की सजा सुनाई जाती थी। हम औरतें आँखों को फैला फैला कर आश्चर्य कर रही थीं कि एक ही बिल्डिंग में रहने के बावजूद इतना कुछ हो रहा था और हमें कुछ पता ही नहीं चला। ये तो हमें पता था कि कांता आँटी थोड़े कड़े स्वभाव की अनुशासन प्रिय महिला हैं पर फिर भी हमारे लिये तो उनका स्वभाव बहुत अच्छा था, हमेशा समय पर साथ देने वाली औरत लगती थीं वह हमें । गरीब घर की सुधा को उन्होने उसकी सुुन्दरता पर रीझ कर बिना दान दहेज के अपनाया था पर इतना बड़ा बुटीक चलाने वाली स्मार्ट सास की बहू होने के बाद भी सुधा अगर दिन भर घर में रह कर घरेलू औरत ही बनी रहना चाहती थी तो यह उसकी अपनी पसंद थी।

सोनू की बातों पर पूरा विश्वास तो नहीं हो पा रहा था कि अगर बहू के नाम पर कांता आंटी को नौकरानी ही चाहिये थी तो फिर उस नौकरानी के लिये एक चौबीस घंटे के नौकर सोनू की क्या जरूरत थी भला ? फिर अगर कोई औरत हर समय घर में अकेली रह कर चौका बरतन देखती थी, तो फिर दिन भर बाहर रहने वाली सास उसको भूखे रहने की सजा कैसे दे सकती है भला ? मगर कोई तो बात रही ही होगी !

सुधा की वह बाॅडी अभी हमारे सामने ही ले जाई गई थी ! उसकी शादी को पूरा एक साल बीतने को आया था पर सुधा को कभी हमने घर से अकेले बाहर निकलते तक नहीं देखा था। कौन जाने इनके घर के अंदर की असलियत क्या थी ? और फिर सोनू झूठ क्यों बोलेगा भला ? फिर जो कुछ भी हो, ऐसी सुन्दर, नाजुक सी बहू को अपनी जान ले लेने तक मजबूर कर देने से बड़ा पाप दूसरा तो हो ही नहीं सकता ! अदालत में हम सभी ने बढ़-चढ़ कर कांता आंटी के खिलाफ गवाही दी थी और दिल से मनाया था कि उन लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिले कि मरणोंपरांत ही सही, सुधा को उसका इंसाफ मिल जाय। कालांतर जालान अंकल के भाई ने आकर उनके फ्लैट का सामान खाली किया था और जल्दी ही औने पौने दामों में वो फ्लैट बेच भी दिया गया था।

फिर कुछ दिनों के बाद उड़ती उड़ती खबर आई थी कि काफ़ी दिनों के बाद, जब वो लोग जेल से बाहर आए थे तो फिर ये शहर ही उन्होंने छोड़ दिया और जयपुर शिफ्ट हो गये।

फिर उनसे हमारी मुलाकात कभी नहीं हुई और वक्त की धूल पड़ते पड़ते उस घटना की यादें भी धूमिल हो गईं। आज उस घटना के इतने दिनों के बाद जब मैं अपने एक दूर के रिश्ते की नन्द के घर आई हुई हूँ और यूँ ही उनका पुराना एलबम उलटते पलटते एक ग्रुप फोटो में सुधा भाभी नजर आ गईंं तो चौंक पड़ी। पूछने पर मेरी नन्द ने बताया-

"अरे ये तो मेरी काॅलेज फ्रेंड सुधा है भाभी, .... आप के ही शहर में तो इसकी शादी हुई थी। आपने जरूर इसके बारे में कुछ सुना होगा, बाथरूम में लटक कर स्युसाइड कर लिया था इसने !"

ये लोग तो हमारी अपनी बिल्डिंग में थे दीदी ! मेरी तो उस समय शादी भी नहीं हुई थी।"

मैंने कहा तो वो बोलीं, "हमें लगता था कि इसके साथ कभी भी, कुछ भी हो सकता है। कभी-कभी कुछ कुछ गलतियाँ ऐसी होती हैं कि वो अपनी कीमत ले कर ही रहती हैं। वहाँ के एक नामी गुंडे के साथ ये एक बार भाग गई थी ये और फिर तीन चार दिन में ही पता नहीं क्या हुआ कि वापस भी आ गई थी। फिर तो इसके मम्मी पापा ने चुपचाप इसको दूसरे शहर में ले जाकर बहुत जल्दी में इसकी शादी-वादी निपटाई क्योंकि उन्होंने बिना किसी को पता चले सुधा को बिल्कुल गायब ही कर दिया था तो हमने सुना था कि बहुत दिनों तक वो गुंडा इनके घर के चक्कर लगाता रहा था, धमकी-वमकी भी बहुत देता था। काफी पावरफुल आदमी था वो कि थाना-पुलिस कुछ काम नहीं आई थी। फिर बाद में क्या हुआ मुझे ठीक से पता तो नहीं पर कोई तो ऐसी बात रही होगी जरूर.....जो सुधा ऐसा कदम उठाने को मजबूर हो गई !"

स्तब्ध थी मैं ..... "पर उनके नौकर सोनू ने तो कुछ और ही बताया था ?" मैंने दबी जबान में कहा तो वो बोलीं "अच्छा ? पर किसी की कही सुनी पर क्या भरोसा करना ? हो सकता है नौकर ने वही सुनाया हो जो लोग सुनना चाहते हैं, या उन लोगों से उसकी अपनी कोई दुश्मनी नाराजगी भी तो हो सकती है।"

हे भगवान ! कांता आंटी से इतने अच्छे संबंध होने के बावजूद ये क्या किया हमने कि बिना कुछ जाने समझे अदालत में पूरे विश्वास के साथ गवाही भी दे आए ? पता नहीं हमारी इस नासमझी से उन लोगों की परेशानी कितनी बढ़ गई होगी ? बेसाख्ता उबलता हुआ नीर मेरी आँखों से छलकने लगा था ....क्यों नहीं सोचा कि तस्वीर का कोई दूसरा पहलू भी हो सकता है ! निर्णय लेने में इतनी जल्दबाजी क्यों कर देते हैं हम लोग ?


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