जान है तो जहाँ है
जान है तो जहाँ है
ये कहानी है लाली (काल्पनिक नाम) की वही लाली जो दिन भर में न जाने कितनो के चेहरों में लाली ले आती है, सुबह उठ कर खुद बिना एक प्याली चाय की पिये लग जाती है काम में, बच्चो का नास्ता फिर लंच फिर उनको स्कूल भेजना फिर पति को चाय नास्ता लंच फिर से सारा वही काम और भी ना जाने कितने जाद्दोजहद निपटा कर निकल पडती है काम में।
बिज़नेस वुमेन जो है क्यौ की उस ने सायद कभी सिखा ही नही खाली बैठना और बैठे भी क्यौ जब सारा देश नारी सशक्तिकरण की ओर बड़ चला है तो लाली कहा चुप बैठने वाली, संभालती है सारे काम खुद ही घर भी,फैकट्री भी,बिज़नेस भी और नही सम्भाल पाती तो खुद को क्यौ की नारी जो है नारी तो सायद लिखवा कर ही आती है की उस को बस घर, बच्चे,पति और किचन में ही सिमट कर अपने जीवन के हसीं पल बसर कर देने हैं, तभी तो लाख पीड़ा सहे, दर्द सहे, ताने सहे अपने काम को निस्वार्थ ही सिद्दत से निभाती चले जाती है, और अपनों के लिये वो ये तक भूल जाती है।
उस को दुख है या तकलीफ है, ये वही लाली है जिस को मैं जानता हूँ समझता हूँ पहचानता हुँ, ये वही लाली है जब जब मुझे खुद कभी दुख तकलीफ से गुजरना पड़ा ये हमेसा मेरे सामने खडी रही चाहे वो दूर थी पर उस ने अपना स्नेह मेरे लिये कभी कम नही किया क्यौ की लाली को दोस्ती निभानी भी आती है वो सर्वगुण संपन्न जो ठहरी है, और मैं भी अपने हर दर्द दुख बिना सोचे समझे उस को बोल देता हूँ।
मुझे लगता वही इक है जो मुझे समझ सकती है मुझे समझा सकती है मुझे डांट सकती है, क्यों की मेरा रिश्ता ही कुछ ऐसा है उस से दोस्ती का हाँ सही सुना आपने दोस्ती का क्योंकि लोग तोहमत लगाने में वक़्त नहीं लगाते और वो लड़की जो ठहरी क्योंकि हम तो आज भी उसी समाज में जी रहे हैं जहाँ बेटा सदैव राजा बेटा कहलाता है और बेटी कभी रानी बेटी नही बन सकती।
काश समाज को लाली थोड़ी शिक्षा भी दे पाती, खैर समाज शिक्षित हो ना हो हमारी लाली तो शिक्षित है ही, यही उस की दिनचर्या थी रोज घर का काम, ऑफ़िस,फक्ट्री का काम और थोड़ा वक़्त निकाल मुझ से बातें कर लिया करती है, और इक दिन येसे ही बातों बातों में उस ने कहा मेरी तबियत ठीक नहीं है।
असहनीय दर्द है शायद पीड़ा वो सहन नहीं कर पा रही होगी, नहीं तो वो हर कष्ट सहने में सक्षम हैं।
मैंने कहा डॉक्टर को दिखाओ वो गई भी डॉक्टर को दिखाया भी... पर आज लाली दर्द के बदले इक नया दर्द ले आई वो दर्द सुनकर ही शरीर में इक अजीब सी सिरहन होती है, सांसें दो पल को ठहर गई थी मेरी, मैंने पूछा क्या कहा डॉक्टर ने, उस ने मुझे डॉक्टर की पर्ची भेजी "small nodes (lumps) near breast"
और उसी पर्ची में लिखा था Tata memorial cencer hospital.. देख कर दिल घबरा गया था धड़कनें कुछ पल के लिये रुक सी गई थी, मुझे लगा वो सब मजाक है।
मैंने फिर से पूछा तो यकीन हुआ की आज लाली सच में दर्द में है तब लगा ज़िंदगी क्या है ? एक हवा का झोंका या इक माटी का गोला इस से बढ़कर शायद कुछ भी नहीं।
मुझे भी शायद तब ज़िंदगी की असलीयत मालूम हुई की जिन्दगी और मौत के दरमिया जो फ़ासला है वो इक डॉक्टर 2 रुपए के पेज में 10 रुपए की पेन से लिख देता है, और इंसान ना जाने उस के बाद 1 पल में 100 दफा मरता है और 100 दफा जीता है, आज लाली भी शायद उसकी मनोदशा से गुजर रही होगी।
काश मैं लाली को बोल पाता की शायद डॉक्टर ने झूठ लिख दिया हो, काश ऐसा ही हो, पर ज़िंदगी में किसी का जोर नहीं चलता और लाली भी अभी उसी मुहाने में खड़ी है जहा घर बच्चे, ऑफ़िस, फैक्ट्री और खुद का स्वास्थ्य है।
भगवान उस को लम्बी उमर दे अच्छा स्वास्थ्य से ताकी वो अपनी ज़िंदगी में ये चांद तारे फूल बरखा बहार होली दिवाली और ये तीज त्योहार खुशी खुशी मना सके और अपनी अपनी ज़िंदगी को मुक्कमल बना सके।
ऐसी ही बहुत सारी लाली हैं देश में जो हर रोज इस दर्द से गुजरती हैं। मैं भगवान से उनकी अच्छी स्वास्थ्य की कामना करता हूँ, और उन सब से भी इक गुजरिश करता हूँ थोड़ा सा अपने लिये भी समय निकाल कर समय रहते अपना चेकअप कराये क्योंकि जान है तो जहाँ है।