एक सबक
एक सबक
क्या वेदांत ! तुम जब देखो तब लड़कियों की तरह रोते हो ? सब तुम्हारे मन की चीज़ें रख दी हैं टेबल पर, लिली आँटी खिला देगी।"
सुबह-सुबह सात बजे नौकरी पर जाती निकिता अपने सात साल के बेटे वेदांत को डाँट रही थी। वेदांत अपने पापा रोहित का हाथ पकड़े लाचार आँखो और मजबूर निगाहों से अपनी मम्मा को जाते देख रहा था। रोहित भी उसे समझा रहा था कि "गुड बॉयज बिल्कुल भी रोते नहीं, बहादुर होते हैं, स्ट्रॉन्ग। अपने पापा के जैसे बनेगा है न वेदांत !"
यह कहकर उसने अपना एक हाथ ऊपर उठाया, प्रतिउत्तर में आँसू भरी आँखों से वेदांत ने अपना भी एक हाथ फिर उठा दिया। रोहित खुलकर हँसा पर वेदांत को हँसी नहीं आई और रोहित इसकी वजह उसकी माँ के नौकरी पर जाने को समझता रहा।
"नाउ स्माइल बेटू, बॉयज रोते नहीं, ये तो गर्ल्स का काम है। आप गर्ल थोड़े ही न हो !"
पर स्कूल जाते समय वेदांत फिर चीख़-चीख कर रोने लगता। अब वह आये दिन बीमार भी रहता और बेहद चिड़चिड़ा और परेशान भी करता, तो अक्सर रोहित भी डाँट देता या एक चांटा लगा देता। रोहित एक बैंक में काम करता था, निकिता एक मल्टीनेशनल कम्पनी में पी.आर. की जॉब कर रही थी। नई जॉब थी तो छुट्टी भी मुमकिन नहीं थी। घर पूरी तरह से मेड लिली पर डिपेंड था और वेदांत लिली के भरोसे। जब कि रोहित के माता पिता उसी शहर में खुद के घर में रहते थे, पर निकिता के खराब व्यवहार के चलते आना जाना नगण्य ही था। निकिता अपनी शर्तों और आज़ादी में विश्वास रखने वाली महिला थी, जिसने वेदांत को सिर्फ रोहित की ज़िद के चलते जन्म दिया था। इसलिए वह अपने उसूलों और ज़िंदगी से कोई समझौता नहीं करना चाहती थी। उसकी माँ भी आये दिन रोहित को यही जताती थीं कि उन्होंने अपनी बेटी को बच्चा और चूल्हा सम्भालने नहीं भेजा। ऐसे में रोहित अक्सर पड़ोसी शर्मा जी और उनकी पत्नी सिया की मदद लेता, जो सामने वाले फ्लैट में ही रहते थे। पर निकिता ने लिली को कुछ ज़्यादा ही छूट दे राखी थी।
सिया गौर कर रही थी कि सोसायटी के पास वाला दुकानदार कुछ दो महीनों से अक्सर रोहित के फ्लैट पर आता, उसने सोचा कि राशन का सामान देने आता होगा। पर जब एक दिन जब वह छत पर कपड़े उठाने गयी तो उसने सोसायटी की छत की बाउंड्री पर अकेले वेदांत को चॉकलेट पकड़े रोते और कूदने की कोशिश करते देखा तो घबरा गयी उसके पास गयी और समझा बुझा कर अपने साथ ले आयी। उसने वेदान्त को गोद में उठाकर पूछा लिली आँटी कहा हैं और आप ये क्या करने जा रहे थे ?
उसने उंगली उठाकर बताया अंदर, उसे तेज़ बुखार भी था और बेहद डरा हुआ भी था। सिया उसे गोद में उठाकर नीचे लायी और अंदर कमरे में ले गयी पर उसकी उदासी सान्या और खुशी के साथ खेलकर भी कम नहीं हुई। सिया उसे अपने हाथ से खाना खिलाने लगी तो वह उसके सीने से लगकर फफक कर रोने लगा। उसने प्यार से उसे विश्वास में लेकर कहा, "क्या बात है बेटा कुछ कहना है ?"
"हाँ आँटी ...पर पर मम्मा और पापा को बोल नहीं पाता, वो नहीं सुनते मुझे। अगर किसी को कुछ बोला तो लिली आँटी और गन्दे शॉपकीपर अंकल मम्मा पापा को मार देंगे, फिर मैं रोड पर कूड़ा उठाऊँगा। इसलिए मैं मरने जा रहा था।"
"ये तुमने किस से सीखा ?"
"सीरियल से आँटी" उसने रोते हुए बताया।
"नहीं बेटे, तुम मेरे पास सेफ हो, मैं उनसे कुछ नहीं कहूँगी। अब तुम चलो अंदर वाले रूम में बताओ मुझे।"
अंदर तो सिया भी सहम गई वेदांत की बात सुन के। उसके निजी अंगों के साथ अक्सर लिली और दुकानदार छेड़खानी करते थे। निकिता और रोहित के पास समय नहीं था। आज सिया ने वेदांत की तकलीफ जानी कि लोग बस लड़कियों की ही फ़िक़्र करते हैं, पर यहाँ तो वेदांत लड़का होकर काफी कुछ अकेले ही झेल रहा है।
"चुप हो जाओ बेटा, तुम यहीं रहो, मैं लिली आँटी से घर की चाभी लेकर उसे भेज देती हूँ। आप सही हो आपने कुछ भी गलत नहीं किया है और अच्छा किया जो मुझे बताया।"
अब वेदांत थोड़ा सामान्य था और शांत भी। शाम को साढ़े पाँच बजे तक जब रोहित घर लौटा तो शर्मा जी और सिया ने उसे सब बताया।
"क्या ...ये रॉकी स्टोर वाला ? मेरे घर आता है और अक्सर ? लिली को तो उसी ने रखवाया था। ओह माय गॉड, मेरे घर का इस्तेमाल मेरे और बच्चे के खिलाफ ! वह मेरे घर क्यों आता है ? भाभी मैं तो ग्रोसरी मंगवाता ही नहीं, अक्सर तो खाना ऑर्डर करता हूँ निकिता के लेट होने पर"।
"भैया आये दिन का है उसका"
सुनते ही रोहित बौखला गया, पर शर्मा जी ने उसके कान में कुछ कहा और वो वेदांत को लेकर कहीं चले गए, सिया भी साथ में थी। वो पुलिस स्टेशन गए थे, वहीं उन्हें इंस्पेक्टर ने एक प्लान बताया और वेदान्त को डॉक्टर के पास भेजा मेडिकल रिपोर्ट के लिये।
अगले दिन रोहित ने वेदांत को दरवाज़ा बन्द करने को कहा और कहीं चला गया। थोड़ी देर बाद अपने टाइम पर लिली भी आ गयी और एक घण्टे बाद दुकानदार भी, अब वेदांत सहम गया। उसका उसे तकलीफ देना शुरु हुआ ही था कि पाँच मिनट के अंदर कई लोग रोहित के साथ बालकनी से आते दिखाई पड़े। तुम्हारी हरकतें कैमरे में क़ैद हैं जो हमने कल ही लगवा दिया था। अब दोनों पुलिस की हिरासत में थे।
सबसे पहले तो रोहित को भी इंस्पेक्टर ने समझाया "बच्चा है बोझ नहीं जो नौकरी और पैसे की सहूलियत के चलते आप लोग बगैर किसी रेकॉर्ड के किसी को भी नौकरी पर रख लेते हैं। आप लोग बच्चे का नहाना धोना भी नौकर-नौकरानी पर छोड़ देते हो। बच्चों को क्या उनके भरोसे पर पालते हो साहब ? आधा सिरदर्द तो पुलिस का आप लोगों की लापरवाही बढ़ा देती है।"
पूछताछ में पुलिस को यह भी पता चला कि दुकानदार का भी इतिहास कोई अच्छा नहीं था। ये सब करीब तीन माह से चल रहा था और लिली दुकानदार की गर्लफ्रैंड थी और अक्सर सोसायटी के ऐसे ही घर के बच्चों को निशाना बनाया जाता जहाँ माँ बाप दोनों कामकाजी हों।
पाक्सो एक्ट के तहत सबूतों और सोसायटी के लोगों की गवाही के आधार पर उन पर कार्यवाही और सज़ा भी हुई। इधर रात के नौ बजे घर बन्द देखकर ऑफिस से लौटी निकिता ने रोहित को फ़ोन किया पर नम्बर वापस नीचे उतर कर वॉचमैन से पूछा "साहब कहीँ गये हैं क्या वेदांत के साथ ?"
उसने न में सिर हिलाते हुए कहा "सुबह की ड्यूटी वाले को पता होगा, मैं तो सात बजे ही आया हूँ।"
एक तो थकान ऊपर से घर बन्द, सिया के फ्लैट की बेल दबाई तो बेटी सान्या ने दरवाजा खोला और अंदर आने को कहा।
"बेटा ...मम्मी पापा घर नहीं हैं ?"
"आप बैठिए आँटी", फिर उसने जो बताया उससे निकिता के होश उड़ गये।
उसने बताया कि आपके घर पुलिस आई थी और मम्मी पापा अंकल के साथ वेदांत को लेकर हॉस्पिटल गए हैं।
हॉस्पिटल में वेदांत के चेकअप में डॉक्टरों ने पुष्टि की उसके साथ हुई ज़्यादती की तब तक निकिता भी वहाँ पहुँच गयी। डॉक्टर ने उन्हें काफी धैर्य से काम लेने और बच्चे को समय व दुलार देने को कहा। इसके अतिरिक्त काउंसलर से भी मिलने को कहा ताकि बच्चे के मन पर लगे घाव भर जायें। तब तक निकिता और रोहित के माता पिता भी उनके घर खबर मिलने पर आ चुके थे। रोहित का गुस्सा आज सबके सामने ही निकिता पर फूट पड़ा।
"तुम्हारी आज़ादी, स्वछंदता और अलग रहने की ज़िद ने वेदांत को इस हाल में पहुँचा दिया है। एडजस्ट तो ऑफिस में भी करना होता है, वहाँ कोई समस्या नहीं होती, बॉस को छुट्टियों और आने जाने का हिसाब देने में ? लेकिन अगर सास ससुर पूछ दें तो गलत हो जाते हैं। आज अनजान लोगों पर भरोसा करके देख लिया। अगर वह दादी बाबा के पास रहता तो कम से कम यह न झेलता। आत्मनिर्भर तो तुम टीचिंग में भी होतीं और बच्चे के साथ भी। मैं तो बाप हूँ, मेरा तो कमाना मज़बूरी था, पर तुम्हे पैसे की न कमी थी न ज़रूरत, बस एक अहम और अकड़ बराबरी की। बाप माँ की बराबरी नहीं कर सकता, इसलिए अब मैं नौकरी छोड़ दूँगा। इस नौकरी में तुम्हें पैसे चाहे जितने मिल जाएं, बच्चे के मासूम मन के जख्म भरने के लिए कम हैं।क्या नौकरी और ज़िद बच्चे की ज़िंदगी से बढ़कर है ?"
आज निकिता और उसकी माँ भी मारे शर्म के आँख नहीं उठा पा रही थीं। काफी लम्बे इलाज और देखभाल के बाद सामान्य हो पाया वेदान्त, तन से भी और मन से भी। अब निकिता ने नौकरी बदल दी थी और वापस अपने सास ससुर के साथ रहने लगी थी। निकिता और रोहित तो तब भी संभल गए पर ऐसे परिवार हैं कितने जो अपने बच्चे की सुनते हैं ? यह घटना एक सबक है, ऐसी सोच रखअक्सर ऐसा होता है कि बेटे के बारे में क्या चिंता करना, लड़के को सुरक्षा की क्या ज़रूरत या ये तो लड़का है उसके रोने और आँसुओं का मज़ाक बनाकर हम उनकी तकलीफ से पल्ला झाड़ लेते हैं। पर यह भी सच है कि बेटे भी यौन दुर्व्यवहार का शिकार उतना ही हो रहे हैं जितना बेटियां। इसलिए आज के समय में यह बेहद ज़रूरी है कि मां बाप को पॉक्सो एक्ट का भी ज्ञान हो
पॉक्सो एक्ट, बच्चों के साथ दुर्व्यवहार करने पर अपराधी को सज़ा देता है और मेडिकल करते समय बच्चे के साथ डॉक्टर के अलावा अपने ही होते हैं। बच्चे को बस अपनों की उपेक्षा नहीं, उनका साथ और विश्वास चाहिए और हमें यह उन्हें देना भी चाहिए ताकि मासूम बचपन फिर खिलखिला उठे। जिससे हम अपने बच्चे की मदद कर पाएं उस समय जब उसे प्यार, विश्वास और सहारे की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। शिकारी कोई अपना भी हो सकता है पर सही मार्गदर्शन और बातचीत बच्चों को गलत कदम उठाने से रोक सकता है।