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हाईटेक माँ

हाईटेक माँ

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“माँ तुम परसों किसी भी हालत में यहाँ पहुँच ही जाना . परसों मैं अस्पताल में एडमिट हो जाऊँगी  और
अगले दिन सुबह ऑपरेशन हो जाऐगा  .”
    फोन पर अनन्या के मुँहसे ये बातें सुनते ही वैशाली के हाथ पैर फूल गऐ  “क्या बात है बेटी तुम्हारी डिलीवरी में तो अभी पूरे सत्रह दिन हैं फिर अचानक क्या परेशानी आ गयी कि एकदम से ऑपरेशन की इमरजेंसी आ गयी . सब ठीक तो है न ?” वह घबराकर बोली , माथे पर पसीना चुहचुहा आया .
  “हाँ माँ सब ठीक है . वो बात दरअसल यह है कि ऑफिस में एक बहुत ही इम्पोर्टेन्ट प्रोजेक्ट आया है जो किसी भी कीमत पर मुझे ही करना है. अगर मैने ड्यू डेट तक राह देखी तो समय पर ऑफिस ज्वॉइन नहीं कर पाऊँगी और प्रोजेक्ट मेरे हाथ से निकल जायेगा . मेरे कैरिएर के लिऐ  यह प्रोजेक्ट करना बहुत जरुरी है.” उधर से अनन्या का जवाब आया . 
“क्या ?” वैशाली जैसे असमान से गिरी “तुम एक मामूली प्रोजेक्ट के लिऐ  अपने बच्चे की जान से खिलवाड़ कर रही हो . प्रीमेच्योर डिलीवरी करवा रही हो . अनन्या तुम पागल हो गयी हो क्या .?”
“ओ माँ . इतना परेशान मत हो . मैंने डॉक्टर से बात कर ली है. बच्चा पूरा डेवेलप हो चुका है . कोई खतरा नहीं है ज्यादा से ज्यादा दो –चार दिन इन्क्यूबेटर में रखना पड़ेगा बस .” अनन्या बोली . 
“अरी तू माँ है या कसाई . एक मासूम बच्चे से माँ की कोख में पलने के नैसर्गिक अधिकार को भी छीन रही है .” वैशाली ने गुस्से से कहा .
“क्या करू माँ . मेरी भी मज़बूरी है मेरा करियर चार-पाँल साल पीछे चला जायेगा .तुम तो जानती हो मैंने पढाई में कितनी मेहनत की है . अब तो अवसर मिला है अपनी मेहनत का फल प्राप्त करने का . तुम बस समय पर आ जाना “ अनन्या ने बिना माँ का जवाब सुने फोन काट दिया .
  वैशाली ने अपना सर पीट लिया . ये कमबख्त किस तरह की माँ है. एक भौतिक वस्तु के चलते अपनी कोख में पलती नन्ही सी जान के साथ जबरन खिलवाड़ कर रही है. उनका पारंपरिक मन किसी भी तरह से इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहा था कि बच्चे को यूँ जबरदस्ती समय से पहले माँ के पेट से बाहर निकाल लिया जाए . मातृत्व तो कितना सुखद अहसास होता है. एक –एक पल अपने बच्चे को अपने  अन्दर बढ़ते हुऐ  महसूस करना उसकी हलचल से पुलकित होना ........
और ये लड़की ?
असमय ही इस सुख से वंचित हो जाना चाहती है । वैशाली को उस अजन्मे शिशु के लिऐ  चिंता भी हो आयी और मन करुणा से भर उठा . पता नहीं बेचारे ने पिछले जनम में क्या पाप किये होंगे जो ऐसी नालायक माँ की 
                                        (१ )

कोख में आ गया . वैशाली का मन जब बहुत परेशान हो गया तो वो बाहर पति के पास जाकर बैठ गयी . वे पेपर पढ़ रहे थे . पेपर में नजरे गडाए हुऐ  ही उन्होंने पूछा –
“क्या हुआ अभी फोन पर किस पर चिल्ला रही थी “
“आपकी लाडली पर “ वैशाली भुनभुनाती हुई बोली . 
“क्यों क्या हुआ ?” पति की नजरें पूर्ववत पेपर पर जमी हुई थी। तब वैशाली फट पड़ी . उसने अनन्या से हुई सारी बाते कह सुनाई . सुनकर शेखर भी स्तब्ध हो गऐ  . पेपर एक और रखकर वे गुमसुम से बैठे रहे . आधे घंटे तक इस विषय पर भावनात्मक बातचीत करने के बाद शेखर यथार्थ में वापस आये . जो हुआ सो हुआ अब महत्वपूर्ण यह है कि वैशाली समय पर बेंगलूर कैसे पहुँचे। भोपाल से बेंगलूर डायरेक्ट फ्लाइट भी नहीं है. भोपाल से पहले मुंबई और फिर मुंबई से बेंगलूर जाना पड़ेगा . शेखर कंप्यूटर खोलकर फ्लाइट बुक करने लगे भाग्य से बस दो ही सीटें बची थी . शेखर ने एक सीट वैशाली की बुक कर दी .
  चलो इस हाईटेक ज़माने के कुछ फायदे तो जरुर है . वैशाली तो निश्चिन्त थी कि अभी बहुत समय है जाने में लेकिन अब एकदम से हडबडा गयी . वह पडौस में जाकर उनके रसोइये से बात कर आयी कि जब तक वे नहीं है आकर सुबह शाम शेखर का खाना बना दिया करे .
शेखर के खाने पीने की चिंता से निवृत होकर वैशाली ने अपने कपडे-लत्ते सहेजे. पंद्रह बीस दिन वहां रहकर अनन्या और बच्चे को लेकर वे भोपाल आ जायेंगी . भाग्यवान है अनन्या उसे खूब भले सास-ससुर मिले है . वर्ना आजकल की लडकियों के सामने करिएर के चलते बच्चे पालना कितना मुश्किल हो जाता है. 
और करिएर के चलते माँ भी कहा बनना चाहती है . अनन्या की उम्र भी तीस पार हो गयी थी उसके सास-ससुर के सामने वह अपराधी सा महसूस करने लगी थी. क्योंकि उनकी बेटी ही अपने करियर में नयी ऊँचाइयों को छूने की हसरत में परिवार बढ़ाने को तैयार नहीं थी .
जब अनन्या ने वय के चौतीस बरस पूरे कर लिऐ  तब उन्होंने अनन्या के पास जाकर उसे खूब समझाया मनाया हाथ पैर जोड़े कसमें दी ,आयुष और उसके माता –पिता की इच्छा का मान रखने का वास्ता दिया 
                                    (२)

तब कही जाकर वह माँ बनने को तैयार हुई . वो तो भागवान की दया से अभी तक सब ठीक ठाक है और माँ –बच्चा दोनों स्वस्थ है नहीं तो पैतीस बरस की उमर में कॉम्प्लिकेशन होने की संभावना बढ़ जाती है.
       वैशाली अपना सूटकेस ज़माने लगी . पहले बेटियाँ प्रसव के लिऐ  मायके आती थी अब माँ को जाना पड़ता है। पहले ख़ुशखबरी मिलते ही झबले सिलने और स्वेटर बुनने का कार्यक्रम प्रारंभ हो जाता था अब बाज़ार में सब रेडीमेड मिल जाता था।  छोटी –छोटी बातो से जुडी हुई मातृत्व की नन्ही-नन्ही ख़ुशियों के धागे इस पीढ़ी में विलुप्त हो गऐ  है .
नियत दिन सुबह ही वैशाली बेंगलूर पहुँच गयी . ड्राईवर उसे लेने नियत समय पर एअरपोर्ट पर पहुँच गया था . घर पहुँची तो अनन्या और आयुष दोनों ही घर पर नहीं थे . आयुष तो ठीक है लेकिन अनन्या को तो आज घर पर होना चाहिए . सास ने बताया की आज वह अपने महत्वपूर्ण काम पूरे करने गयी है क्योंकि कल से तो वह छुट्टी पर रहेगी . शाम के सात बजे अनन्या और आयुष घर आऐ  . 
           दुसरे दिन सुबह समय पर आयुष अपने माता पिता को लेकर अस्पताल आ गया . अनन्या को ओपरेशन थिएटर ले जाया गया बाहर सब लोग आतुरता से नए मेहमान के आने की प्रतीक्षा करने लगे चालीस मिनट बाद नर्स ने आकर खबर दी कि बेटा हुआ है.
          “बच्चा कैसा है ? अनन्या कैसी है ? बच्चा बाहर लाकर कब दोगी ?” सबने मिलकर ढेर से सवाल पूछ डाले . 
“बच्चा ठीक है. डॉक्टर चेकअप कर रहे है थोड़ा समय लगेगा . अनन्या बिलकुल ठीक है. अभी स्टिचेस लग रहे हैं थोड़ी देर में रूम में शिफ्ट कर देंगे “नर्स ने मुस्कुराकर कहा और तेजी से अन्दर चली गयी .
सबके चेहरों पर राहत के भाव आ गऐ . कुछ ही देर बाद अनन्या को रूम में शिफ्ट कर दिया गया . डॉक्टर नींद और पेनकिलर का इंजेक्शन देकर चली गयी. वैशाली का मन बच्चे के लिऐ  छटपटा रहा था . तभी नर्स ने आकर कहा की नर्सरी में चलकर बच्चे को देख लो . वैशाली और उसकी समधन अरुणा दोनों नर्स के साथ दौड़ पड़ी . देखा बच्चा इन्क्यूबेटर में है . गोरा गदबदा प्यारा सा शिशु सिर्फ डायपर पहने बिना कपड़ो के तेज लाइट के नीचे पड़ा रो रहा था . वैशाली और अरुणा का दिल तार-तार हो गया . नानी ,दादी,दादाजी, बाप सब यहाँ पर हैं, लेकिन यह मासूम अपनों की गोद को तरसता हुआ यहाँ अनाथ की तरह अकेला पड़ा बिलख रहा है . दोनों की 
                                     (३ )

आँखे भर आयी . पहली बार वैशाली को बेटी की उच्च शिक्षा पर क्रोध आया . इससे तो अच्छा था अनन्या बी.ए. , एम.ए. कर लेती . बच्चे का बिलखना उनसे देखा नहीं जा रहा था। नर्स ने बोतल में पाउडर का दूध बनाकर डाला और बोतल बच्चे के मुँह से लगा दी . वैशाली के मन को एक और धक्का लगा . 
    नर्स के कहने पर की यहाँ ज्यादा देर रुकने की परमिशन नहीं है , बेमन से दोनों वापस आ गयी . वैशाली का मन बहुत बुझ गया था उसे अनन्या से बात तक करने का मन नहीं कर रहा था . छह  दिन बाद जब बच्चा अब पूरी तरह स्वस्थ है कहकर डॉक्टरों ने उसे घर ले जाने की बात करके वैशाली की गोद में दिया तब उसके कलेजे को ठंडक मिली . 
     अब वैशाली और अरुणा ही रात-दिन बच्चे की देखभाल करती रहती . अनन्या दिनभर फोन पर या लैपटॉप पर अपने ऑफिस का काम करती रहती . बीस-बाइस दिन बाद ही उसने ऑफिस ज्वाइन कर लिया . अब तो वह इतना व्यस्त हो गयी कि पाँच मिनट भी बच्चे के पास बैठ नहीं पाती थी . अपनी बेटी का व्यवहार देखकर वैशाली अरुणा के सामने संकोच से गढ़ जाती . आयुष तब भी बच्चे पर जान छिडकता और जब भी समय मिलता बच्चे को संभालता .
     दिन पर दिन बीत रहे थे . शेखर वहाँ अकेले उकता गऐ  थे . वैशाली भी अब घर वापस जाना चाहती थी . उसने अनन्या से अपने साथ भोपाल चलने को कहा मगर उसने साफ मना कर दिया कि जिस प्रोजेक्ट के लिऐ  उसने अपनी डिलीवरी जल्दी करवा ली अब उसे छोड़कर वह कही नहीं जा सकती . अगर वैशाली जाना चाहे तो जा सकती है वह बच्चे के लिऐ  आया रख लेगी . वैशाली सन्न रह गयी . बच्चे को आया के हाथ सौंपने का तो वह सोच ही नहीं सकती . अनन्या बच्चे को जनम देकर भी माँ नहीं बन पाई मगर वह तो पहले से ही माँ है न . वैशाली ने कठोर शब्दों में उसे समझाना चाहा तो वह बहुत मायूस और दुखी स्वर में बोली  –
“माँ यह उच्च शिक्षा का भूत भी तो तुमने ही मेरे सर में भरा था न . तुम ही कितनी ज्यादा महत्वकांक्षी थी अपनी इकलौती बेटी को लेकर कि यह तो बेटो से भी ज्यादा ऊँचा मुकाम हासिल करेगी और अब तुम चाहती हो कि मैं वहाँ से नीचे आ जाऊँ तो अब यह नहीं होगा माँ . अब यह मुकाम ही मेरी ज़िंदगी  है. मेरा सपना है। तुमने ही दुनियाभर की औरतों के उदाहरण प्रस्तुत करके ऊँचाई पर चढ़ने को प्रेरित  किया और अब नीचे खींच रही हो। कुछ महीनों की खातिर मेरी उमर भर की मेहनत पर पानी फिर जायेगा . तुमने पढाई में हमेशा मेरा साथ दिया मेरा हौसला बढाया , कभी मै थक जाती , हताश हो जाती परीक्षा के समय तो तुम ही मेरा संबल बनती मेरा मनोबल बढाती . तुमने शिक्षा में मेरा इतना साथ दिया अब ज़िंदगी  के इम्तिहान में भी मेरा साथ दे दो माँ .” फिर वह सास से बोली “ मुझे गलत मत समझिये . अपने बेटे से मै भी बहुत प्यार करती हूँ . मै उसकी और से लापरवाह नहीं हूँ बस मै इतना जानती हूँ कि मुझसे भी ज्यादा प्यार करने वाले और सुरक्षित हाथों में है वह . आप दोनों के रहते मै पूर्णतः निश्चिंत हूँ . कुछ महीनो की बात है बस मेरा साथ दे दीजिये प्लीज.  ” अनन्या अपना बैग उठाकर थके कदमो से ऑफिस के लिऐ  निकल गयी।                                वैशाली और अरुणा एक दूसरी से नजरे चुराती हुई चुपचाप खड़ी रह गयी . सच ही है इस हाईटेक जेनेरेशन को जनम देने वाले तो हम ही है न . हमने उन्हें पारिवारिक मूल्य और महत्व सिखाये ही कहा है . बचपन से ही हम उन्हें बस बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ और मल्टीनेशनल कंपनियों में ऊँचे पद हासिल करने की ही शिक्षा देते है . भूल तो कही न कही हमसे ही हुई है . हमने ही इस पीढ़ी को रूढियाँ तोड़कर असमान छूने को प्रेरित किया अब कैसे उम्मीद करे कि वे धरती पर घोंसला बनाकर रहे . बस चिंता तो अनन्या की सेहत की थी . पर कुछ पाने का मूल्य तो हमेशा चुकाना पड़ता है . हमें अलग मूल्य चुकाने पड़े और इस हाईटेक जनरेशन को अलग मूल्य चुकाने पड़ेंगे और अनायास ही वैशाली और अरुणा को इस हाईटेक माँ से सहानुभूति हो आयी . बेचारी दोनों मोर्चो पर पिस रही है .
   दोनों देर तक अपनी सोचो में डूबी खड़ी रही. अन्दर बच्चा नींद खुल जाने पर रोने लगा . बच्चे के रोने की आवाज़ सुनकर दोनों चौंक गयी और तत्परता से कमरे की और भागी .


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