खास दोस्त
खास दोस्त
“हाय रवि।“
“अरे तुम ? यहाँ?”
“ काफी दिनों बाद मिले हो चलो इसी रेस्टुरेंट में बैठकर बातें करते हैं।” झट से कार का दरवाजा बंद कर, मैं रवि के साथ रेस्टुरेंट में घुस गई।
“ बताओ, क्या पिओगे ?”
“जो पिलाओगी।”
“ सब पता है मुझे। तुम जैसे चंदन , टीका लगाने वाले और लंबी शिखा रखने वाले लोग कभी चाय-कॉफ़ी से अधिक, कुछ पी ही नहीं सकते !”
“कसम से जो पिलाओगी, पीऊँगा। ब्लैक जींस और गुलाबी टी शर्ट’ उफ्फ्फ ! सचमुच, तुम बहुत स्मार्ट लग रही हो।” मेरे कंधों को थपथपाते हुए रवि बोला।
“अरे वाह शादी होते ही कितने बदल गए हो तुम ! अच्छा मजाक कर लेते हो ! ठीक है, फिर मैं अपनी पसंद की बियर मंगवाती हूँ।”
"जरूर, शौक से।" रवि की हरकतें कुछ अजीब सी लगी।
मैं, मन ही मन सोचने लगी, कुछ तो बात है जिस ‘शराब’ शब्द के नाम से रवि को इतनी घृणा थी, आज, अचानक ऐसे?!
“अच्छा, पहले ये तो बताओ, बीबी कैसी लगी ? हनीमून कैसा रहा ? देखो, मुझसे कुछ मत छुपाना। मैं, तुम्हारी ख़ास दोस्त हूँ। केवल संस्कार में ही फर्क है तुम, पुरातन विचारधारा केऔर मैं, थोड़ामॉड , हाहाहा।” बियर का ग्लास रवि के हाथ में थमाते हुए, मैं उसकी नजरों को पढ़ने लगी।
“अरे छोड़ो बीबी की बातें कुछ भी अच्छा नहीं रहा ! लेकिन , तुम , लड़के को अच्छी तरह देखकर शादी करना वरना , मेरी तरह !! ” कहते हुए, रवि एक सांस में सारा बियर गटक गया।
“पर क्या तुम शादी से पहले उसे अच्छी तरह देखे नहीं थे ?”
“हाँ देखा था उसेचेहरा ही देखता रह गया ! उसकी हाई-हील सेंडलपर नजर नहीं गयी ! अब सोचता हूँ तो लगता है, उसे साड़ी पहना कर शायद इसलिए दिखाने लाया गया था। कंधे के बराबर भी नहीं है मेरी !
अब तुम ही बताओ, कहाँ मेरी लम्बाई और कहाँ उसकी ! बाहर उसके साथ निकलने में शर्म आती है मुझे ! लोग हमें देखकर यही सोचेंगे कि, मैंने दहेज़ के कारण ऐसी नाटी लड़की से शादी की है। ज़रा तुम्हीं बताओ, मुझे अच्छे संस्कारवाले लड़की चाहिए थीइसका ये मतलब तो नहीं कि बेमेल !!”
मैं, हतप्रभ उसे देखती रही नशा, उसकी आँखों में पतले लाल धागों की तरह, स्पष्ट नजर आ रहा था।”
“रवि थोड़ा सा धैर्य रखो। स्त्री-पुरुष, दोनों को सानिध्य की जरूरत होती है। पत्नी पाकर भी तुम प्यासे हो जानकर, अच्छा नहीं लगा। हाइट में छोटी है तो क्या हुआ ? तुम्हें पता है नइस मॉडर्न जमाने में भी, कइयों ने एसिड अटैक वाली लड़की को अपना अर्धांगिनी बनाया है ? और तुम ? इतने संस्कारवान होकर भी ! छी छी हाइट को लेकर, अपनी बीबी से उफ्फ ! तरस आता है तुम्हारे पुरातन संस्कारों पर !! ”
थोड़ी देर के लिए सन्नाटा पसर गया। आधुनिक संस्कार, पुरातन संस्कार को तरेरने लगे।
अचानक , रवि मेरे सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया, "तुम ठीक कहती हो। आधुनिकता को ओढने के बाद भी तुम्हारे संस्कार जीवित हैं और मैंने अपने संस्कार से काश ! कुछ भी सीख पाता !
आज मेरी आँखें तुमने खोल दी ।” कहता हुआ, रवि, तेज कदमों से बाहर निकल गया। उसकी आँखों में लाल डोरों की जगह, अब निर्मल आँसू साफ़-साफ़ झलक रहा था।
मैं, भाव विभोर, उसे जाते हुए एकटक देखती रही। आँखों से आँसू के सैलाब उमड़ पड़े ! आखिर, वो मेरा ख़ास दोस्त जो है, कुछ आँसू उसके सुखी जीवन के लिए भी बनते थे।