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Ashish Dalal

Drama Fantasy

3.7  

Ashish Dalal

Drama Fantasy

दुर्घटना से पहले

दुर्घटना से पहले

12 mins
671



‘ओफ्हो, छोड़ो भी अब अंकुर । ऑफिस के लिए देर हो रही है मुझे ।’ अंकुर की बाहों को अपने कन्धे से हटाते हुए आरती ने कहा ।

‘अरे यार । ये बैंक वाले हर शनिवार बैंक बंद क्यों नहीं रखते ?’ अंकुर ने धीमे से आरती का हाथ खींचकर उसे पुनः अपनी बांहों में भर लिया ।

‘जनाब, हम बैंक वालों को तुम प्रायवेट जॉब वालों से ज्यादा काम होता है । अब हटो भी, देर हो रही है ।’ अंकुर की पकड़ से छूटते हुए आरती ने कहा ।

‘हम प्रायवेट जॉब वालों को कुछ पर्सनल काम भी होते है मोहतरमा ! तुम बैंक वालों की तरह हम केवल रुपयों का ही लेन देन नहीं करते । एक अलायदा दिल भी रखते है ।’ अंकुर ने आरती को शरारतभरी नजरों से देखा ।

‘सब समझती हूं तुम्हारें पर्सनल काम । रात कम थी क्या जो सुबह भी पीछे पड़ गए हो ?’ आरती ने ड्रेसिंग टेबल के आईने अपने बालों को सहलाते हुए में अंकुर का प्रतिबिम्ब देखते हुए कहा ।

‘प्यार अंधा होता है । क्या रात क्या दिन – प्यार के अंधे के लिए सब एक जैसे ही होते है ।’ अंकुर ने पीछे खड़े होकर आरती के गले में अपनी बाहें डाल दी ।

‘अब एक समझदार और आज्ञाकारी पति की तरह ध्यान से सुनो । दूध ठण्डा हो जाए तो फ्रिज में रख देना । खाना डाइनिंग टेबल पर रखा है । सब्जी खाने से पहले गर्म कर लेना ।’ आरती ने पीछे मुड़कर अंकुर से कहा ।

‘और कुछ ?’

‘हां और शाम को चाय बनाओ तो शालिनी को ठण्डी करके ही देना । गर्म चाय उसके सामने रखोगे तो वह अपना मुंह जला लेगी ।’ आरती ने पर्स कंधे पर लटकाकर बैडरूम से बाहर निकलते हुए अंकुर को हिदायत देते हुए कहा ।

‘तुम अपनी बहन को लेकर बहुत ही पजेसिव हो यार ।’ अंकुर ने आरती के पीछे बैडरुम से बाहर आते हुए कहा ।

‘तुम नहीं समझ पाओगे अंकुर । वह खुद समझदार और कुछ करने के काबिल होती तो आज हमारे सहारे रहने की जरूरत थोड़े ही पड़ती उसे ।’ कहते हुए आरती की आंखें नम हो गईं।

‘पगली ! फिर से भावुक हो गई । मेरे कहने का यह मतलब नहीं था । डोन्ट वरी, मैं हूं न ।’ आरती की आंखों में उभर आये आंसुओं को पोंछते हुए अंकुर ने उसे विश्वास दिलाते हुए कहा ।

‘ठीक है । मैं चलती हूं अब ।’ आरती ने दरवाजे की ओर जाते हुए कहा । ‘शालू, अपने जीजा को परेशान मत करना । दोपहर को चुपचाप खाना खाकर सो जाना ।’

सोफे पर बैठी शालिनी ने आरती को देखकर एक बच्चे की तरह हामी भरते हुए सिर हिला दिया ।

आरती के जाते ही अंकुर ने दरवाजा अन्दर से लॉक किया और टीवी ऑन कर म्यूजिक चैनल चालू कर दिया । टेबल पर से अखबार लेकर वह सामने सोफे पर बैठ गया ।

हर पहले और तीसरे शनिवार को आरती के बैंक जाने के बाद अंकुर का एक ही नित्यक्रम होता । आराम से अखबार पढ़ते हुए रोमांटिक गाने सुनना और फिर ग्यारह बजे के लगभग नहाधोकर खाना खा लेने के बाद टीवी पर आ रही कोई पसंदीदा फिल्म देखने बैठ जाना ।

शालिनी खाना खा लेने के बाद अक्सर अपने कमरे में जाकर सो जाती । कुछ बोल न सकने और मानसिक रूप से अविकसित होने की विवशता की वजह से छह महीने पहले अपनी मां के गुजर जाने के बाद आरती उसे अपने पास ही रहने के लिए ले आई थी । अंकुर की जॉब एक मल्टीनेशनल कम्पनी में होने से रविवार के साथ हर शनिवार भी छुट्टी पाता था । आपसी समझौते के आधार पर दोनों के ऑफिस जाने के बाद शालिनी की देखभाल के लिए उन्होंने सुबह से शाम तक एक आया रखी थी । अंकुर शनिवार को अक्सर घर पर ही होता तो उन्होंने आया को शनिवार और रविवार को छुट्टी दे रखी थी ।

शाम को चार बजते ही शालीन चाय पीने के लिए जिद करने लगी । वह ड्राइंगरूम में अंकुर के पास आकर बैठ गई और बार बार उसका हाथ पकड़कर चाय पीने का इशारा करने लगी । फिल्म में चल रहे रोमांटिक दृश्य को अंकुर अधूरा नहीं छोड़ना चाह रहा था पर फिर शालिनी की बढ़ती जिद के आगे हारकर वह उठकर किचन में गया और चाय बनाने के लिए गैस पर चाय का पानी चढ़ाकर उसमें चाय पत्ती और शक्कर डालने लगा । तभी बाहर टीवी पर चल रहे मारपीट के दृश्य को देखकर शालिनी सहम गई और दौड़कर किचन में आकर अंकुर से लिपट गई । अंकुर ने उसे समझाकर बाहर सोफे पर ले जाकर बिठाया और फिर खुद चाय के दो कप लेकर शालिनी के पास आकर बैठ गया । टीवी पर अब फिल्म का क्लाइमेक्स दिखाया जा रहा था । अंकुर बड़े ही ध्यान से टीवी की ओर नजरे गड़ाए हुए था । तभी टेबल पर रखा हुआ गर्म चाय का कप शालिनी ने उठाकर मुंह से लगा लिया । एक चीख के साथ कप उसके हाथ से छूटकर नीचे गिर गया । गर्म चाय उसकी कुर्ती पर गिरने से वह छाती पर हाथ रखकर कराहने लगी ।

अंकुर उसका हाथ पकड़कर उसे बाथरूम में ले गया और पानी के छींटे उसके सीने पर डालकर उसकी जलन को कम करने का प्रयास करने लगा । इसी आपाधापी में शालिनी ने शावर चालू कर दिया । अंकुर के साथ वह खुद काफी हद तक भीग गई । अंकुर ने फुर्ती से शावर बंद किया और बाथरूम से बाहर आ गया । 

शालिनी की ओर एक कुर्ती बढ़ाकर उसे उसने इशारे से गीले हो चुके कपड़े बदलने के लिए समझाया और फिर बाथरूम का दरवाजा बाहर से बंदकर खुद भी अपने कपड़े बदलने चला गया ।

अपने कपड़े बदलकर जब वह वापस आया और बाथरूम का दरवाजा खोला तो शालिनी अब भी गीले कपड़े पहने खड़ी थी । अंकुर के कई बार उसे इशारे से समझाने पर भी वह कुछ समझ नहीं पाई ।

हारकर अंकुर शालिनी के कपड़े बदलवाने में उसकी मदद करने लगा । बेहद संकोच के साथ उसकी कुर्ती उतारते हुए उसने अपनी आंखें बंद कर ली । तभी अंकुर का हाथ पकड़कर शालिनी ने अपने वक्षस्थल पर रख दिया और इशारे से वहां चाय गिरने से हो रही जलन के बारें में बताने लगी । शालिनी की मासूमियतभरी इस हरकत से अंकुर पलभर के लिए विचारशून्य हो गया । फिर अगले ही पल फुर्ती से उसने अपना हाथ वहां से हटाया और शालिनी के गले में कुर्ती डालकर बाहर आ गया ।  

शाम को ६ बजे के लगभग आरती ने जब घर में प्रवेश किया, शालिनी बाहर के कमरें में सोफे पर बैठे टीवी देख रही थी । अंकुर उससे कुछ दूरी बनाकर सोफे पर ही बैठा था । आरती ने अपना पर्स सोफे के सामने रखी टेबल पर रखा और शालिनी के पास ही कुछ देर सुस्ताने की गरज से बैठ गई । 

‘शालू, अपने जीजा को परेशान तो नहीं किया न ?’

आरती ने प्यार से शालिनी के गाल को सहलाते हुए पूछा।

जवाब में शालिनी ने अंकुर की ओर इशारा किया और आरती का हाथ पकड़ कर अपने वक्षस्थल पर रख दिया। आरती को शालिनी का यह व्यवहार समझ नही आया । उसने अंकुर की ओर देखा । तभी अंकुर वहां से खड़ा होकर अन्दर चला गया ।

‘क्या किया अंकुर ने ?’ आरती ने अपना हाथ उसके वक्षस्थल से हटाते हुए घबराकर पूछा ।

‘अं ....आं ....आं....’ कुछ कहने का यत्न करते हुए शालिनी ने एक बार फिर से आरती का हाथ खींचकर अपने वक्षस्थल पर रख दिया ।  

शालिनी की कुछ न कह पाने की असमर्थता और अंकुर का अचानक वहां से उठकर चले जाने से आरती के स्त्री मन में एक शंका का जन्म हो चुका था । उसने शालिनी के सिर पर हाथ रखा और अन्दर के कमरे में चली गई ।

‘शालू क्या कहना चाह रही है अंकुर ?’ अंकुर के पीछे कमरे में आकर आरती ने बिना कुछ भूमिका बांधे अंकुर से पूछा ।

‘उस पर गर्म चाय गिर गई थी ।’ अंकुर ने मोबाइल से ध्यान हटाकर आरती की ओर देखा ।

‘क्या ? मैं कह कर गई थी न उसके सामने गर्म चाय मत रखना ।’ आरती के स्वर में रोष था ।

‘मैंने जानबूझ कर नहीं किया ।’ आरती का शिकायती स्वर सुनकर अंकुर ने अपनी सफाई दी ।

‘जानबूझकर नहीं किया पर तुम्हारी बेदारकारी से ही हुआ न ।’ आरती ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा ।  

‘हो गया आरती । अब छोड़ो भी न । मुझे यह सब करने की आदत नहीं है ।’ अंकुर ने झुंझलाते हुए जवाब दिया ।

‘तुम एक दिन मेरी बहन को नहीं सम्हाल पाए ? उसे कितना दर्द हो रहा होगा ।’ कहते हुए आरती की आंख में आंसू आ गए ।

‘आरती, ऐसा नहीं है । मुझे शालिनी की कोई परवाह नहीं होती तो उसे बाथरूम में ले जाकर कपड़े नहीं बदलवाता ।’ मोबाइल बेड पर रखकर अंकुर आरती के सामने खड़ा हो गया ।

‘क्या ? तुमने उसके कपड़े बदलवाए ?’ आरती ने चौंककर अंकुर की ओर देखा ।

‘हां, उसके हाथ धुलवाने बाथरूम में ले गया तो उसने शावर चालू कर दिया था । इसी से उसके गीले हो चुके कपड़े बदलवाने पड़े ।’ अंकुर ने निर्दोष भाव से कहा ।

‘अच्छा, तभी वह बार बार अपनी छाती पर हाथ रखकर तुम्हारी ओर इशारा कर रही थी ।’ आरती ने शंकाभरी नजरों से अंकुर की ओर देखा ।

‘आरती, मेरे मन में कोई पाप नहीं था । मैं तो आंखें बंद कर खड़ा था शालिनी ने ही मेरे हाथ अपने .....’ कहते हुए अंकुर चुप हो गया ।

‘वो नादान है पर अब बच्ची नहीं रही । तुम तो समझदार थे । सच सच बताओ कब से यह छूटछाट ले रहे हो ?’

‘आरती । तुम अपनी हद पार कर रही हो और मुझ पर गलत इल्जाम लगा रही हो ।’ आरती की बात पूरी होने से पहले ही अंकुर जोर से चिल्ला उठा ।

‘हम औरतें तो होती ही है गलत । तुम जो करों वो सही, वह चाहे किसी की इज्जत ही क्यों न हो ।’ आरती ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा ।

‘आरती । तुम बात को गलत मोड़ पर ले जा रही हो । तुम जो सोच रही हो वैसा कुछ भी नहीं है ।’ अंकुर ने अपने आप पर संयम रखते हुए आरती को समझाने का प्रयत्न किया ।

तभी शालिनी पीछे से आकर अंकुर को लिपट गई । अंकुर ने उसकी पकड़ से छूटने का प्रयास किया । तभी आरती ने आगे बढ़कर शालिनी को अपने पास खींच लिया ।

‘तुम जरुर कुछ छिपा रहे हो ।’ आरती ने अंकुर को घूरते हुए कहा ।

‘ठीक है । तुम्हें जो ठीक लगे वह समझो । मैं तुमसे बहस नहीं करना चाहता ।’ कहकर अंकुर ने अपना मोबाइल उठाया और बाइक की चाबी लेकर कमरे से बाहर निकल गया ।

इस घटना के बाद पूरा एक सप्ताह दोनों ने बात किए बिना ही निकाल दिया । अंकुर ने एक दो बार आरती को समझाने और मनाने की कोशिश की लेकिन उसकी ओर से कोई सहकार न मिलने पर उसने उसे अपने हाल पर छोड़ दिया ।

उस रात अचानक आरती को शालिनी के कपड़ों की पैकिंग करते देख अंकुर से रहा नहीं गया और वह आरती के सामने जाकर खड़ा हो गया ।

‘कहां जाने की तैयारी हो रही है ?’

अंकुर के पूछने पर आरती ने उसे घूरा और चुपचाप कपड़े बैग में रखने लगी ।

‘आरती, प्लीज कुछ तो बोलो । तुम्हारी शंका का एक बीज हमारी सारी जिन्दगी बर्बाद कर देगा । अभी तो हमनें साथ साथ चलना ही सीखा है ।’ अंकुर ने गिड़गिड़ाते हुए आरती को देखा ।

‘इस शंका के बीज का ही इंतजाम कर रही हूं । शालिनी भी अब बच्ची नहीं रही । कुदरत ने भले ही उसका मानसिक विकास रोक दिया है पर उसकी स्त्री देह तो अब सम्पूर्ण आकार ले चुकी है । भले ही तुम्हारें मन में पाप न हो पर हो तो तुम एक पुरुष का अवतार । जाने कब क्या हो जाए ?’ कहते हुए आरती ने अंकुर के चेहरे पर छा रहे मनोभावों को पढ़ने का यत्न किया ।

‘कहना क्या चाहती हो और शालिनी को कहां भेज रही हो ?’ आरती की बात सुनकर अंकुर के चेहरे पर घबराहट छा गई ।

‘नारी आश्रम में बात कर आई हूं । अब से शालिनी वहीं रहेगी । दुख हो रहा है कि मां को दिया हुआ वचन पूरा नहीं कर पा रही हूं और शालिनी को अपने से दूर कर रही हूं पर उसकी सुरक्षा की खातिर यह सब करना ही होगा ।’ सारे कपड़े बैग में रखने के बाद बैग बंद करते हुए आरती ने खड़े होते हुए कहा ।

‘यह सरासर अन्याय है शालिनी के प्रति । उसे खुद का ही होश नहीं है । कैसे रहेगी वह वहां ?’

‘उसे लेकर तुम्हें इतनी पीड़ा क्यों हो रही है ? उसके जैसी बहुत सी लड़कियां है वहां । उसे अब ऐसे ही रहना सीखना होगा ।’ अंकुर की बात सुनकर आरती ने जवाब दिया ।

‘आरती, तुम्हें अब मैं कैसे यकीन दिलाऊं कि घर से बाहर की दुनिया शालिनी के लिए जोखम से भरी हुई है और इस बात की क्या गारण्टी है कि वह इस घर को छोड़कर वहां सुरक्षित रहेगी ? कल का अखबार नहीं पढ़ा ? अंनाथ आश्रम के कथित संचालक ही भक्षक बनकर उसके आसरे रही लड़कियों की अस्मत पर हाथ डाल रहे है ।’ कहते हुए अंकुर रुआंसा हो गया ।

अंकुर की बात सुनकर आरती अन्दर तक हिल गई । उसके मन में घबराहट के साथ एक डर ने जन्म ले लिया । अपने पास खड़ी शालिनी को छाती से लगाकर वह रोने लगी । अंकुर उसे रोता हुआ न देख सका और वहां से चला गया ।

कुछ ही पल में जब वह वापस आया तो उसके हाथ में पूजा की थाली थी । उसने वह थाली शालिनी के हाथों में थमा दी ।

‘ये क्या हरकत है अंकुर ?’ आरती को कुछ समझ न आया ।

‘हमारे आसपास की सृष्टि ही इस तरह से बुनी हुई है कि एक स्त्री और एक पुख्तवय के पुरुष के सम्बन्धों को बिना नाम के कोई स्वीकार नहीं करता और उसे शंका की दीवारों के बीच कैद कर देता है । आज तुम्हारें मन में यह दीवार तुम्हारें और मेरे बीच शालिनी को लेकर बन गई है, तो हो सकता है कल को बाहर के लोग भी मुझे शालिनी को लेकर शंका की नजर से देखे ।’

‘तुम्हारें कहने का मतलब क्या है ?’ अंकुर कहना और करना क्या चाहता है यह आरती अभी भी नहीं समझ पाई ।

‘शालिनी और मेरे रिश्ते को एक नाम दे रहा हूं । इस बार रक्षाबंधन पर जो राखी तुमने अपने घर के मंदिर में विराजमान कृष्ण की मूर्ति को बांधी थी वही पवित्र राखी मैं आज शालिनी से अपनी कलाई पर बंधवा रहा हूं । शंका की दीवार को तोड़ने का और कोई उपाय इस विश्वास के अलावा मुझे नहीं दिख रहा है । मैं शालिनी की जिन्दगी सबकुछ जानकार भी खतरे में नहीं डालना चाहता ।’ कहते हुए अंकुर ने राखी शालिनी की ओर बढ़ा दी ।

शालिनी राखी को अपने हाथ में लेकर उसे उलट पुलट कर देखने लगी । तभी आरती ने वह राखी शालिनी के हाथ से ले ली ।

‘मुझे माफ कर दो अंकुर । मैं भूल गई थी कि एक पुरुष में एक जिम्मेदार पिता और भाई भी मौजूद होता है । अपने मन पर शंका की पट्टी बांधकर मैंने तुम्हें मात्र पुरुष के दायरे में खड़ाकर बहुत बड़ी भूल कर दी । मन में छाये शंका के बादलों के बीच में तुम्हारें मन में रहे विश्वास को नहीं देख पाई । अपनी निर्दोषता और अच्छाई साबित करने के लिए तुम्हें इस डोर का सहारा लेने की जरूरत नहीं है । जो रिश्ते सच्चाई और नि:स्वार्थपन की धुरी पर टिके हो वे कभी भी कमजोर नहीं होते ।’ कहते हुए आरती ने अंकुर के कन्धे पर अपना सिर टिका लिया । शालिनी उन्हें देखकर ताली बजाकर अपनी खुशी व्यक्त करने लगी ।


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