क्रोध पर विजय
क्रोध पर विजय
पता नहीं क्या था ऐसा ,बहुत क्रोध आता था मुझे हर उस बात पर जो मनमुताबिक न होती अक्सर
सोचती यह गलत है, गुस्से में कुछ ऐसी बातें भी मुख से निकल जाती थीं जो बाद में मन को पछतावा देती ।
कभी कभी सोचती आख़िर क्या है इस मन में ,कुछ भावनाएं जो कभी घुटन की वजह से किसी से अपनी बात न कह पाना ,या आवेश है इसकी वजह ।पर वजह समझ ना पाई ।बच्चे भी क्रोध का शिकार होते ,फिर ज़िन्दगी में एक ऐसा दिन एक ऐसा पल आया जिसने मेरी ज़िंदगी को पूरी तरह से पलटकर रख दिया ।
अपने गुरु से ली नामदान की दौलत । वो एक ऐसा पल था ,जिसने मेरी ज़िंदगी को बदल दिया ।जीवन में आये दुख और सुख को जिसने सम बना दिया ।दुख को सहने की असीम शक्ति मिली ।जितना मेडिटेशन करती मन उतना ही मज़बूत होता गया ,एक संबल मिल गया , सारी आदतें बदल गईं ।लोगो से अपेक्षाएं खत्म हो गईं । किसी ने कुछ किया तो भी ठीक किसी ने नहीं भी पूछा तो भी बुरा नही लगा ।
क्रोध पर विजय पा ली मैंने ,मेरे जीवन की बहुत बुरी आदत थी ये ।कितना आसान हो गया अब गुस्से को पी जाना ,अब महसूस हुआ कि किसी बात पर गुस्सा ही नहीं आ रहा मुझे ।सभी के प्रति ऑटोमैटिक स्नेह की भावना बढ़ती जा रही ,मेरा मन अंदर से उस चीज को महसूस कर रहा है ,और अब जीवन मे वह खुशी मिल रही जिसकी सचमुच में मुझे तलाश थी ।गुरु जी हमेशा सादर नमन करती हूँ जिनकी वजह से मैंने अपने आपको पा लिया है।