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छलावा भाग 1

छलावा भाग 1

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छलावा    

भाग 1

          शिवकुमार बख़्शी मुम्बई का जाना माना प्राइवेट डिटेक्टिव था। इसके काफी बड़े-बड़े क्लाइंट्स थे। अनेक तलाक के और व्यावसायिक प्रतिद्वंदिता के केसों में इसकी इन्वेस्टिगेशन से उद्योगपतियों को काफी लाभ पहुंचा था और इन्होंने शुक्रगुजार होने के साथ काफी बड़ी-बड़ी रकमें देकर शिवकुमार को इस स्थिति में ला खड़ा किया था कि वह वर्ली सी फेस पर एक शानदार अपार्टमेंट और दादर प्रार्थना समाज पर एक आलीशान ऑफिस का मालिक था और बी एम् डब्लू और मर्सिडीज जैसी गाड़ियाँ अफोर्ड कर सकता था। कई ऐसे लोग जिनकी पकी पकाई खीर में बख्शी के कारण मक्खी पड़ गई थी, वे इसे बिलकुल पसंद नहीं करते थे। वाधवा ग्रुप्स ऑफ़ कम्पनीस के मालिक नारायण वाधवा की भूतपूर्व पत्नी नीलिमा, जिसे शिवकुमार की काबिलियत से चरित्रहीन सिद्ध करके वाधवा साहब ने तलाक पाया था और बदले में उन्हें चिड़िया के चुग्गे जितनी ही कीमत अदा करनी पड़ी थी, बख्शी से खूब खार खाती थी। ऐसे और भी बहुत से लोग थे। शिवकुमार अपनी लाइफ स्टाइल और फिल्मस्टारों जैसी पर्सनालिटी के कारण उच्च वर्ग के दायरे में काफी लोकप्रिय था और आए दिन होने वाली पार्टियों की शान था। जो उसके धंधे के लिहाज से कोई बहुत अच्छी बात नहीं थी क्यों कि जासूसी के धंधे में चुप्पा गुमनाम और अपरिचित व्यक्ति जितना सफल हो सकता था उतना वह व्यक्ति नहीं जिसे हर कोई जानता पहचानता हो। पर बख़्शी बहुत काबिल जासूस था और भेस बदलने में अपना सानी नहीं रखता था एक बार भिखारी का रूप धरकर उसने पंद्रह दिनों तक जासूसी की थी और ड्रग का बड़ा जखीरा पकड़वाया था। 

          मुम्बई पुलिस भी बख़्शी की योग्यताओं की कायल थी और आए दिन उससे मदद लिया करती थी। आज इसी सिलसिले में मुम्बई पुलिस के कमिश्नर सुबोध कुमार ने बख्शी को मिलने बुलाया था। सुबोध कुमार बहुत जहीन और सख्त अफसर थे और मुम्बई को अपराधमुक्त बनाने के लिए कटिबद्ध भी थे। बख़्शी थोड़ी देर उनके ऑफिस के बाहर बैठ कर इंतिजार करता रहा क्यों क़ि सत्तापक्ष के एक भारीभरकम नेता के साथ सुबोध कुमार की मीटिंग लंबी खिंच गई थी फिर जब नेताजी अपने लाव लश्कर के साथ विदा हुए तो सुबोध कमिश्नर साहब के ऑफिस में दाखिल हुआ। कमिश्नर ने गर्मजोशी से उसका स्वागत किया और बोले, आओ भाई बख्शी! माफ़ करना तुम्हे थोड़ा इंतिजार करना पड़ा। जवाब में  मुस्करा कर बख़्शी ने हल्का सा सिर हिलाया और कुर्सी पर बैठ गया। औपचारिक बातों के बाद कमिश्नर साहब मुद्दे की बात पर आ गए। दरअसल मुम्बई में पिछले कुछ दिनों से एक सीरियल किलर का आतंक छाया हुआ था। पिछले एक महीने में अठारह लोग मार डाले गए थे। समूची मुम्बई में त्राहि-त्राहि मची हुई थी। सुबोध कुमार पर ऊपर से भारी प्रेशर पड़ रहा था और पुलिस महकमा भी काफी मेहनत कर रहा था। लगभग हर नोन क्रिमिनल पर पुलिस का शिकंजा कसा जा चुका था और उनसे पूछताछ की जा रही थी परन्तु परिणाम वही ढाक के तीन पात! आखिर हार कर आज कमिश्नर ने बख़्शी को बुलाया था ताकि उसकी सलाहियतों का फायदा उठाया जा सके। बख़्शी ने कमिश्नर साहब को धन्यवाद देते हुए इस काम को करना स्वीकार कर लिया फिर कमिश्नर ने विक्रांत मोहिते नामक एक नौजवान सब इन्स्पेक्टर को बुलाकर बख़्शी साहब को पूरा सहयोग देने का आदेश दिया। फिर सब हाथ मिलाकर मीटिंग बर्खास्त करने ही वाले थे कि एक वर्दीधारी हड़बड़ाया सा भीतर दाखिल हुआ। कमिश्नर ने नजरें उठाई तो जल्दी से सैल्यूट करता हुआ बोला सीरियल किलर ने 19 वां शिकार कर लिया। माहिम की खाड़ी में एक आदमी की लाश मिली है। 

           फ़ौरन बख्शी अपनी आलीशान कार से घटनास्थल की ओर रवाना हुआ और विक्रांत मोहिते की पुलिस जीप सायरन बजाती हुई उसके आगे चल पड़ी। माहिम दादर और बांद्रा के बीच एक निम्नमध्यम वर्गीय लोगों का बहुत बड़ा इलाका था, जहाँ धारावी नाम की एशिया की सबसे बड़ी झोपड़पट्टी भी पाई जाती थी। वहाँ एक समुद्री खाड़ी भी थी जिसे माहिम की खाड़ी कहा जाता था। इसी खाड़ी से एक पचास-पचपन वर्षीय व्यक्ति की लाश निकाली गई थी जिसकी बाईं आँख में बर्फ काटने का सुआ मूठ तक घुसा हुआ था। और यही एक्शन इसे निर्विवाद रूप से सीरियल किलर का शिकार बता रहा था। सीरियल किलर ने अभी तक अपनी हर हत्या बाईं आँख में सुआ घोंप कर ही की थी। शिकार की आँख से रक्त बह कर उसके गालों को भिगोता हुआ गर्दन पर जमा हुआ था। माहिम की खाड़ी में ज्वार के समय ही पानी चढ़ता है और यह दलदल में पीठ के बल गिरा हुआ मिला था तो रक्त के निशान धुले नहीं थे। 

        हर हत्या की तरह ही इसका भी न कोई चश्मदीद गवाह था न ही कोई सबूत। बर्फ काटने के सूए पर भी कोई चिन्ह नहीं था। उसके मार्क को ग्राइंडर से घिस दिया गया था। लाश के कई फोटो लिए गए फिर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। बख़्शी अपने ऑफिस में लौट गया और इस छलावे को पकड़ने की योजना बनाने लगा।

कहानी अभी जारी है ......

क्या थी बख़्शी की योजना ?

पढ़िए भाग 2 में 


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