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Vandana Singh

Drama

2.3  

Vandana Singh

Drama

माँ

माँ

4 mins
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रात के 12 बज चुके थे। घर के बाकी सदस्य खाकर सोने जा चुके थे। पर निर्मला की आँखों में नींद कहाँ ? बेचैन सी कभी स्टडी में टहलती तो कभी ड्राइंग रूम में आ बैठती। पर नजरे घड़ी की तरफ और कान दरवाज़े की घंटी की तरफ थे। दो पल अगर ये सोच भी लेती कि सिमरन अब छोटी नहीं रही, बड़ी हो चुकी है और अपना ध्यान खुद रख सकती है तो दूसरे ही पल आय दिन अखबारों की ख़बर से उसका मन काँप उठता। ज़माना कितना ख़राब हो चुका है। लड़का हो या लड़की कोई भी कही भी सेफ नही है। बड़े शहर हो या छोटे दुर्घटना कही भी किसी के साथ भी हो सकती है। यही सब सोचते-सोचते कुर्सी पर बेठे उसकी आँखे लग गयी। पर ना जाने किसी की आहट से, वो सकपका के उठ भी गयी। देखा,कोई नही था। उसने मन को तठस्थ किया... सोना नहीं है।

सिमरन अपने ऑफिस की पार्टी में गयी थी। सामान्यत वो कभी इतनी लेट नहीं होती पर आज कुछ ज्यादा ही लेट हो रहा था। इधर निर्मला का मन भी बैठा जा रहा था। कई बार फ़ोन कर चुकी थी पर माँ का हृदय फ़ोन पर आवाज़ सुनकर नहीं अपने बच्चे को अपनी आँखों से सही सलामत देख कर ही मानता है। ऐसे विचार आते ही निर्मला जैसे अतीत की गहराइयों में खो गयी।

कॉलेज के दोस्तों के साथ घूमते, सैर-सपाटा करते वो भी तो कई बार युहीं लेट हो जाया करती थी। हाँ उस वक़्त रात नहीं पर शाम के 7-8 तो बज ही जाया करते थे। कैसे तब उसकी माँ बेचैन हो जाया करती थी। उस समय तो कोई मोबाइल नाम की चीज़ भी ना हुआ करती थी। माँ कई बार उसे डांटती, समझाती थी। पर उस वक़्त डांटना और समझाना कितना बुरा लगता था उसे। कई बार गुस्से में उसने खाना भी नहीं खाया था और कई बार तो वो माँ से यह तक कह बैठती थी कि भाई को कोई कुछ नहीं बोलता, वो चाहे तो 10 बजे तक भी घुमे। सब उसी को प्यार करते है, मुझसे कोई नही करता। वो लड़का है ना..वगेरह वगेरह। पर क्या उसके कुछ भी बोलने से उसकी माँ पर कोई असर हुआ ? शायद नहीं। शादी के बाद भी या सिमरन के बड़े होने के बाद भी आज भी जब निर्मला जब कही भी सफ़र करती है तो कई बार उसकी माँ फ़ोन करके उसका हाल समाचार लेती रहती है। कई बार निर्मला हँसती हुई माँ को कह देती है कि अब तो रहने दो, अब तो मैं एक बच्चे की माँ हो गयी हूँ, अब तो मेरी चिंता छोड़ दो। पर क्या उसकी माँ ने कभी उसकी बात मानी ? क्या कभी किसी एक रात वो उसकी चिंता किय बगैर सो पाई ? यक़ीनन नहीं।

पुरानी यादों में खोई निर्मला अचानक किसी ग्लानि से भर उठी। जीवन के इतने लम्बे समय में क्या कभी उसे अपनी माँ की व्यथा का आभास हुआ ? इतने वर्षो में तो उसे लगता रहा कि कोई भी उसे प्यार नहीं करता, सब टोकते है और उसकी आज़ादी छीन रहे है। पर आज जाने अनजाने में उसे अपनी माँ की स्थिति का ज्ञान हुआ। क्या इतिहास स्वयं को दोहरा रहा था ? आज वो भी उतनी ही लाचार थी जितनी कभी उसकी माँ हुआ करती थी। उस वक़्त भी माँ घड़ी ताकती रहती थी आज भी माँ घड़ी ही ताका करती है। निर्मला के आँखों से आँसू बहने लगे। उसका हृदय तड़प उठा।फ़ोन लगा कर माँ से बात करने को जी चाहा पर घड़ी की तरफ देखा तो रात के 1.30 बज चुके थे और बनारस में आधी रात हो चुकी होगी, बस यही एक माँ जगी थी और उसके लिय एक-एक पल काटना मुश्किल हो रहा था।

बात उसकी समझ में आ चुकी थी कि बात बच्चे पर विश्वास की नहीं पर बात माँ के कोमल और ममतामयी ह्रदय की थी जो समय, उम्र या जगह नही देखता, देखता है तो बस अपने बच्चे की ख़ुशी और सलामती।

इन्ही भावनाओ से ओत-प्रोत निर्मला ने एक और बार फ़ोन उठाया और सिमरन को फ़ोन लगाया

"ट्रिन-ट्रिन" - घंटी बजी

"हेल्लो, मम्मी डोंट वोर्री आई विल बी बैक इन हाफ आन ऑवर।"

नयी भावनाओ से भरी निर्मला फिर से दरवाज़े की ओर टकटकी बांध कर देखने लगी।


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