गर्द के बादल
गर्द के बादल
आजकल सीमा बहुत डरी डरी सी रहती थी। उसे अपनी बेटी स्वीटी की चिंता दिन रात खाये जाती थी यूं तो स्वीटी बस 5 साल की थी मगर आजकल की घटनाओं को देखते हुए वह हर समय घबराई रहती थी और उसे अपने आँखों के सामने ही रखती थी। राकेश से सीमा का दूसरा विवाह हुआ था, स्वीटी उसके पहले पति की निशानी थी, राकेश भी विधुर था उसकी कोई संतान नहीं थी, दोनो ने अपने हालात से मजबूर होकर शादी का फैसला किया था, सब सही चल रहा था मगर अखबार की एक खबर ने सीमा के मन में शक का कीड़ा डाल दिया।
"सौतेले पिता द्वारा पुत्री का बलात्कार"
अब राकेश स्वीटी को प्यार भी करता तो उसे अजीब लगता, वह स्वीटी को कुछ काम से बुला लेती, उसे लगता राकेश घात लगाये बैठा है, और कभी भी स्वीटी को नोंच डालेगा।
एक दिन अंतरंग क्षणों में, राकेश ने सीमा से कहा ," इस घर बच्चे की कमी थी,और तुमने मेरी वह कमी पूरी कर दी। अब मेरा घर चहकने लगा है। स्वीटी के रूप में तुमने मुझे अनमोल तोहफ़ा दिया है। उसका हाथ हाथ में लेकर कहता है "मैं इसका कर्ज कभी भी उतर नहीं पाऊंगा। अब मैं एक बेटी का पिता हूं तो मुझे जिम्मेदार भी होना चाहिये। उसकी पढ़ाई के लिए अभी से रुपये जोड़ने पड़ेंगे। यह देखो पचास हजार की एफ डी मैंने स्वीटी के लिये करवाई है।"
सीमा, कभी राकेश को तो कभी उन कागजों को देख रही थी, अब उसकी आँखों के सामने आए गर्द के बादल साफ हो चुके थ , और उसे पिता पुत्री का पवित्र रिश्ता नजर आ रहा था ।