पराई बेटी
पराई बेटी
बेटे की पहली सालगिरह थी। पहला बच्चा वो भी बेटा, बड़े धूम धाम से मनाना था। बड़ी दावत थी। बहू के मायके से ससुराल के हर एक आदमी के लिये कपड़े तथा नाती के लिये कपड़े, सोने की चैन और चाँदी के बर्तन और न जाने क्या-क्या आये थे।
भाभी की साड़ी ज्यादा कीमती और कितनी सुंदर लग रही है। बहने, माँ और भाई के आगे रोना रोने लगी। भाई बोला- अभी तो इतनी बड़ी दावत है, उसके उपर घर का लोन। कहाँ से लाऊँ इतने पैसे।
पीछे से भाभी बोल पड़ी, दीदी बस थोड़े दिन रूक जाइए, अगले महीने भाई ला देगें। पापा को पैसों की थोड़ी तंगी है। बीच में ही सासू माँ गोल-गोल आँख दिखाकर बोली- ए, तू क्यूँ हम माँ और बच्चों के बीच में बोलती है। तू पराई बेटी, जा अपना काम कर।
बहू बेचारी छोटा सा मुँह लिए अपने कर्म स्थल मतलब रसोई पर वापस गयी।