दर्द
दर्द
फेसबुक पर सुमित्रा ने लिखा,
"कल मैंने एक सिनेमा देखा-हाउसफुल-3 जिसमें लँगड़ा, गूँगा और अँधा बनकर सभी पात्रों ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया..."
बस पाँच मिनट ही बीते थे यह लिखे हुए कि इनबॅाक्स की बत्ती जली।
ये तो तुषार का मेसेज है, सोचती हुई सुमित्रा ने मेसेज़ खोला।
"दीदी जी, विकलांग क्या मनोरंजन की वस्तु हैं ? " यह पढ़कर सुमित्रा का दिल धक् से रह गया। तुषार सुमित्रा का फेसबुक मित्र था। दोनों पैरों से लाचार तुषार कलम का धनी था। उसकी लिखी रचनाएँ बहुत लोकप्रिय होती थीं। अभी हाल में ही विकलांग कोटे के द्वारा उसकी नौकरी एक सरकारी विद्यालय में लगी थी।
अभी सुमित्रा सोच ही रही थी कि क्या जवाब दे, तुषार का दूसरा मेसेज़ आ गया।
"दीदी जी, स्वस्थ इंसान विकलांगों के दर्द कभी महसूस नहीं कर सकते तभी तो उनके किरदार निभाकर हास्य पैदा करते हैं।"
सुमित्रा ने कुछ सोचकर कर एक फ़ोटो पोस्ट किया जिसमें वह एक प्यारी सी लड़की के साथ खड़ी थी। उस लड़की की आँखें बहुत सुन्दर थीं।
"बहुत प्यारी बच्ची है दीदी, ये कौन है?"
"मेरी छोटी बहन जो देख नहीं सकती। समय से पूर्व जन्म लेने के कारण बहुत कमजोर थी तो इसे इन्क्युबेटर में रखा गया था। नर्स ने बिना आँखों पर रूई रखे उच्च पावर का बल्ब जलाकर
सेंक दे दिया जिससे इसकी आँखों की रौशनी छिन गई। यह बात तब पता चली जब वह आवाज होने पर अपनी प्रतिक्रिया तो देती थी किन्तु नजरें नहीं मोड़ती। यह पता चलने पर हमारे परिवार पर जो वज्रपात हुआ होगा वह तो तुम समझ सकते हो न तुषार। मैंने फेसबुक पर यह तो नहीं लिखा कि यह सिनेमा देखकर मुझे मजा आया।"
"सॉरी दीदी जी"
"सॉरी की बात नहीं तुषार, दर्द से हास्य पैदा करना ही तो दुनिया की आदत है। अब बताओ तो, विकलांग कौन है? "
तुषार ने खिलखिला कर हँसने वाली बड़ी सी स्माइली भेजी और सुमित्रा ने चैन की साँस ली।