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छोटू झेन्या ने कैसे सीखा

छोटू झेन्या ने कैसे सीखा

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छोटे झेन्या को ‘र्’ कहना नहीं आता था।

उससे कहते: “तो, झेन्या, बोल: ‘तरबूज़’।

और वह कहता: ‘तलबूज़’।

 “बोल : ‘कोकरोच’।

और झेन्या कहता : कोकलोच’।

 “बोल : ‘रीना’।

 और वह कहता : ‘लीना’।

कम्पाउण्ड के सारे बच्चे उस पर हँसा करते।

एक बार झेन्या बच्चों के साथ खेल रहा था, उसने कुछ गलत बोल दिया। और बच्चे उसे चिढ़ाने लगे।

तब झेन्या गुस्सा हो गया और छत पर चढ़ गया।

आँगन में एक छोटा सा कमरा था, एक नीचा गुसलखाना। झेन्या उस गुसलखाने की छत पर लेटा और धीरे-धीरे रोने लगा।

अचानक बागड़ पर एक कौआ उड़कर आया और ज़ोर-ज़ोर से काँव-काँव करने लगा:

 “ ”क् र् र् र् आ आ आ !”

झेन्या ने भी काँव-काँव किया – बस उसके मुँह से निकला : “ क् ल्र् ल् ल् आ आ आ !”

और कौवे ने उसकी तरफ़ देखा, गर्दन टेढ़ी की, अपनी चोंच हिलाई, और अलग-अलग सुर में लगा बार-बार बतियाने: “क् र् र् र् , क् र् आ आ, क् र् र् र्, र् र् र् आ, र् र् र् आ।”

झेन्या के मुँह से निकल रहा था: “क्लाव्ला, क् ल् ल् ल् , क् ल् क् ल् क् ल्।“

झेन्या आधे घण्टे तक कौए की तरह चिल्लाता रहा, अपनी जीभ को मुँह में अलग अलग जगह पर रखता और पूरी ताकत से फूँक मारता।

उसकी जीभ थक गई, और होंठ सूज गए। और अचानक वह एकदम सही-सही चिल्लाया:

 “क् र् र् र् र् र् र् आ आ आ आ !”

इतनी अच्छी तरह से “र् र् र्” निकल रहा था, जैसे कंकड़ों का ढेर विभिन्न दिशाओं में फिसल रहा हो: “र् र् र् र् र्।”

झेन्या ख़ुश हो गया और छत से उतरा। वह जल्दी में है, उतर रहा है और पूरे समय कौए जैसी काँव-काँव कर रहा है जिससे कि “र्” कहना भूल न जाए।

उतरा, उतरा और छत से गिर पड़ा, मगर छत तो गुसलखाने की है, गुसलखाना तो काफ़ी नीचा है, और गिरा वह अंगूर की बेल पर – चोट नहीं आई।

झेन्या उठा, बच्चों की ओर भागा, हँसते हुए, ख़ुश होते हुए और चिल्लाया:

 “मैंने “र् र् ई” बोलना सीख लिया !”

 “ अच्छा, ठीक है,” बच्चे बोले, “ख़ुद ही कुछ बोल।”

झेन्या ने सोचा, सोचा और बोला, “ पावेर् र् र् र् र् र्”

असल में झेन्या कहना चाहता था “पावेल”, मगर कुछ कन्फ्यूज़ हो गया और कितना ख़ुश हो गया !


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