स्थापना
स्थापना
मुहल्ले में हलचल मची हुई थी। जोरशोर से सब काम में लगे हुये थे। योजनायें बन रहीं थीं। बेरोज़गार युवाओं को काम मिल गया था। सड़क किनारे पुलिया पर निठल्ले बैठनें की जगह पर वो रचनात्मक कार्य में लग गये थे। सुबह से कब शाम हो जाती पता ही न चलता था। हर बार की तरह इस बार भी मुहल्ला समिति की बैठक बुलाई गयी जिसमें ननकू भाई की यह सलाह “अबकी बार कुछ नया करतें हैं। अपनीं कल्पनाओं को कुछ नयी उड़ान देतें हैं। ”सबनें मिल कर योजना बनाई बजट के अनुसार लोगों से चन्दा भी भरपूर मिला।
तय समय पर मूर्ति स्थापना का दिन भी आया पर यह क्या लोगों ने देखा कि वहाँ विशाल मिट्टी की मूर्ति के स्थान पर फल और सब्ज़ियों से निर्मित मूर्ति युवाओं नें बना कर अपनीं रचनाशीलता का परिचय दिया था और साथ ही देवताओं के गणों के रूप में पास ही मन्दिर के बाहर बैठनें वाले असहायों को तैयार किया था।
उससे भी अधिक आश्चर्य मिश्रित खुशी लोगों को तब हुई जब अचानक पूजा पंडाल से घोषणा हुई कि “पूजन के बाद की एकत्रित धनराशि से सभी असहायों के घर में राशन पानी दिया जायेगा। ”पूजा समिति के लोगों के उद्देश्य को जान कर सभी नें दिल खोल कर दान पुण्य किया। यह स्थापना दिवस वाकई में सभी के लिये एक यादगार दिन बन गया था।