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Chayanika Nigam

Abstract

0.8  

Chayanika Nigam

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देसी ब्यूटी

देसी ब्यूटी

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‘घर पर सबलोग 5 बजे ही उठते है?’

‘नहीं, पर तुम्हे उठना होगा’

‘क्यों’

‘बहू हो भई, हमारे घर में बहू का टैग लगते ही लड़की इंसान नहीं रह जाती, वो तो एलियन बन जाती है। मान लिया जाता है कि 

उसको न सोने की जरूरत होगी, न कभी यों हीं बेवक्त भूख लगेगी और न ही अच्छे मौसम को निहारना ही उसे अच्छा लगता होगा।’

‘सालों से मां फिर भाभी को यही करते देखता आ रहा हूं। सब इसे अपनी जिम्मेदारी मानती हैं और खुद की जरूरतें भूल बस, अनकहे 

नियमों को पूरा कर रही हैं। इसीलिए कह रहा था शादी के दो दिन बाद ही हनीमून पर चलते हैं। पर नहीं तुम्हे तो ससुराल का स्वाद 

चखना था।’

अनीश और पूजा की शादी कल ही हुई है। एक बड़े शहर के बड़े से होटल में बेवरेज डिपार्टमेंट का हेड अनीश और उसी बड़े शहर के नामी 

रेडियो स्टेशन में काॅपी राइटर पूजा। चूंकि बात शादी तक पहुंची है इसलिए बताना जरूरी है कि दोनों आखिर मिले कैसे। प्यार-व्यार था 

या फिर घर परिवार का किया धरा है यह सब। 

50-50, कह सकते हैं। दरअसल बात बस 1 महीने पुरानी है। अनीश के अनगिनत दोस्तों में से एक मोहित आज शादी के बंधन में 

बंधने वाला है। दोनों स्कूल में साथ पढ़ा करते थे। दो साल पहले ही मोहित ने बीए खत्म किया और नौकरी मिलते ही अनीश के ही बड़े 

से शहर का हिस्सा बन गया। आज उसी दोस्त को दुल्हा बनते देखने का समय आ गया था, जिसके साथ साइकिल पर टिपलिंग की तो 

कभी छुपते-छुपाते वीडियो गेम खेलने जाया करता था। बहरहाल किसी तरह आज काम से जल्दी निकलकर शादी वाले गेस्ट हाउस पर 

पहुंचना उसके लिए बेहद जरूरी था। पर यह ट्रैफिक जैम अनीश के मुंह से निकल ही गया

‘यार शादियों की सेटिंग आसमान में होती है तो वहीं कर भी लेनी चाहिए न। कितना समय बर्बाद हो रहा है।’ मगर बात खत्म करते-

करते नजरें मानों फ्रीज हो गई हों। बगल की कार से मानों चांद झांक रहा था। 

काले रंग की अमेज कार थी, पिछली सीट पर एक दुल्हन थी, बेहद परेशान और बेहद खूबसूरत। फोन पर बात करती वो दुल्हन इतनी 

परेशान क्यों हैं? 

अनीश के लिए जाम अब अहमियत नहीं रखता था, पता नहीं क्यों बस, दिमाग अब उस प्यारी सी लड़की की उलझन जानने को बेकरार 

था। बेकरारी उस उलझन को झट से खत्म करने की भी थी। ध्यान उसकी खूबसूरती पर भी था। आज उसे समझ आ रहा था कि डस्की 

ब्यूटी किसे कहते हैं। वो गोरी नहीं थी, पर नैन नक्श मानों तराश कर बनाए गए थे। पीच कलर का लहंगा, ढेर सारे गहने और साथ में 

नाक पर लटकती, होंठों को बार-बार छूती बड़ी सी नथ। बालों में भी तो कुछ ज्वेलरीनुमा है। ‘अच्छा तो यह होती है हेड ज्वेलरी’, 

अनीश ने मन ही मन कहा। 

पर यह क्या उस लड़की पर मन ही मन रिसर्च चल ही रही थी कि जाम खुल गया। और देखते ही देखते वो काली अमेज कार न जाने 

कहां खो गई। 

‘सपना समझकर भूल जा’, अनीश ने खुद को समझाया और मोहित की याद कर चल दिया उसकी शादी के वेन्यू पर। 

‘अरे बड़ी शानदार शादी कर रहा है ये तो, खूब दहेज लिया होगा।’, खुद से बातें करता अनीश अब अंदर आ चुका था और सामने 

मोहित भी दिख गया था। ‘पर यार ये इतना परेशान क्यों है।’

‘हाय मोह’

‘अरे यार रुक जरा अभी बात करता हूं’

‘क्या हुआ बता तो’

‘अरे मेरे जीजा जी को नजरों में बस 11 हजार दिए हैं लड़की वालों ने। यू नो न हमारे यहां दीदी जीजा जी को कितना मान दिया जाता 

है।’

‘यार 11 हजार कम तो नहीं होते हैं।’

‘मेरा साल का 20 लाख का पैकेज है। मेरे रुतबे के हिसाब से तो देना ही चाहिए उन्हें’

बात चल ही रही थी कि यह क्या हम दोनों के सामने यह कौन खड़ी है, यह तो वही काली अमेज वाली दुल्हन है। अनीश ने मन में 

सोचा पर कुछ बोलता इससे पहले उधर से बोलना शुरू हो चुका था।

‘आपके जीजा जी की इज्जत बस रुपयों से ही तौली जा सकती है। मेरा पूरा परिवार आपकी खिदमत में लगा है, पर आपको तो पैसों 

की पड़ी है। अगर बहुत कमाते हो तो मांगा ही क्यों। जिस दिन ने शादी की बात शुरू हुई है, उस दिन से यह मांगों का दौर चल रहा है। 

आप होंगे बड़े आदमी, मैं भी कम नहीं। लड़की हूं पर जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए मेहनत आप जितनी ही करती हूं। पैसों का रोना 

रोना है तो जाइए कहीं और जाकर भीख मांगिए।’

और अगले कुछ घंटों में शादी का आयोजन खत्म नहीं अधूरा छोड़ा जा चुका था। और अनीश उसी लड़की के प्यार में पड़ चुका था तो 

उसकी भाभी होते-होते रह गई थी। नाम था पूजा अग्रवाल। मन तो कर रहा था अभी आगे बढ़ कर उसका हाथ थाम ले। मगर फिर 

अपना घर बार याद आया पर सोचा कुछ बड़ा तो अभी ही करना होगा। काफी कमरे खटखटाने, कई लोगों की शक भरी नजरों से गुजरने 

के बाद अनीश पूजा के सामने था। 

ढेर सारा रोने के बाद भी उसकी खूबसूरती में कोई कमी नहीं आई थी। बिना हाय और हैलो किए, वो पूजा के पिता की तरफ मुड़ा और 

‘मैं आपकी बेटी से शादी करना चाहता हूं। अभी नहीं कर सकता क्योंकि परिवार साथ में नहीं है। उनसे बात करके सही तरीके से आपकी 

बेटी को अपना बनाना चाहता हूं। आप मेरा बैकग्राउंड चेक करा लें चाहे तो।’

सबके सब शाॅक में थे और साथ में खुद अनीश भी। पर हां, उस दिन जो हिम्मत दिखाई थी उसी की बदौलत आज पूजा उसकी पत्नी 

है।

और इस वक्त समस्या खुले विचारों वाली पूजा को अपने घर के माहौल से रूबरू कराने की है। 

‘तुम्हे थोड़ी दिक्कत होगी, पर हम लोगों को यहां रहना तो है नहीं, कुछ दिन की बात है’

‘पर अब यह मेरी फैमिली है और यहां किसी भी तरह के गलत को होते मैं नहीं देख सकती। चिंता मत करो, मैं शायद सुधार न पाउं 

पर घर की बहुओं के साथ गलत हो रहा है, यह अहसास जरूर कराकर जाउंगी। किसी को बुरा नहीं लगेगा, मेरा विश्वास करो।’

अगले दो दिन बाद वो लोग हनीमून पर चले गए। पर पूजा एक चिट्ठी छोड़ गई थी अपने ससुर जी के नाम

सारांश कुछ ऐसा था

-मैं आपके घर की नई सदस्य हूं, पर आई होप जल्द ही परिवार में पूरी तरह शामिल हो जाउंगी।

-जब से समझ आई है तब से मैं मानती हूं कि शादी करने का एक बड़ा फायदा होता है कि लड़का और लड़की दोनों के पास ही दो 

माता-पिता हो जाते हैं। इसलिए आज से आप मेरे एक और पापा बन गए हैं। क्या मैं आपकी बेटी बन कर पूरी जिंदगी आपके परिवार 

का हिस्सा बन सकती हूं?

-मुझे बताया गया है कि इस घर में बहुओं के लिए कुछ नियम हैं। विश्वास करिए उन नियमों को आपकी मर्जी के बिना नहीं तोडूंगी। पर 

जानना था यह तो मेरा घर है फिर नियम कैसे। इस तरह की सख्ती से तो बस दूरियां आती हैं। अगर आप और मां मेरे माता-पिता बन 

सकते हैं तो सास-ससुर बनने की क्या जरूरत है। 

-देखिए न मेरी उपलब्धि पर आप भी उतना ही गर्व महसूस करेंगे, जितना मेरे अपने पिता। तो आइए न पल्लू, साड़ी, बाद में खाना, 

जल्दी उठना जैसे नियमों को भूल कर परिवार बन जाएं। अगर आपको सही लगे तो।

-बाकी आपकी इज्जत में मेरी ओर से कभी कोई कमी नहीं होगी, यह मेरा वादा है। 

पूजा के हनीमून पर जाते वक्त लेटर तो पीछे छूट गया था, पर शायद अनीश का परिवार एक कदम आगे बढ़ चला था। 

किसी दूसरे रिश्तेदार के यहां से जींस बदलकर साड़ी पहनने की मेहनत मानों बेकार हो चुकी थी। क्योंकि हनीमून से लौटे इस जोड़े के 

सामने पूरा बदला हुआ परिवार था। सामने सास थीं और अब वो अपने मन की बात पूजा के सामने रख रही थीं,‘तुम्हारी बात हमारे 

समझ में आ गई है बेटा, इस पल्लू को तो मैं पहले से ही नपसंद करती थी। पर परिवार का नियम था सो मैंने किया और तुम्हारी 

जेठानी ने भी। पर तुम्हारे लेटर ने तो पापा की आंखें खोल दीं। अनीश की पसंद तो वाकई डस्की ही सही पर ब्यूटीफुल है।’


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